नई दिल्ली. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने आज पूरी तरह से इथेनॉल ईंधन (Ethanol Fuel) से चलने वाली टोयोटा की कार (Ethanol Based Toyota Car) पेश की है. इस कार और इस प्रकार की और कारों के कुछ समय में बाजार में आने के बाद न केवल पर्यावरण पर असर पड़ने वाला है बल्कि देश के आर्थिक हालात पर भी इसका असर देखने को मिलने वाला है. इसके साथ ही सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी इसका असर देखने को मिलेगा. कारण साफ है कि देश की सरकारों के सामने सबसे बड़ी समस्या किसानों की आय को बढ़ाना है, और गांवों से लोगों का शहर की ओर पलायन रोकना है. समझा जा सकता है कि इस प्रकार से इथेनॉल के प्रयोग से चलने वाली गाड़ियां जब सड़कों पर रफ्तार भरेंगी तो किसानों की आय भी रफ्तार भरेगी.
नितिन गडकरी के इथेनॉल बेस्ड कार को लॉन्च करने के इस कदम को न केवल सरकार का मास्टरस्ट्रोक समझा जाए बल्कि भारत के लिए कई अन्य पहलुओं के हिसाब से भी यह एक गेमचेंजर साबित होने वाला है. प्रदूषण और पर्यावरण के हिसाब से भी यह कदम एक तरह से देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डालेगा. रोजगार के अवसर बनेंगे और देश पर वर्तमान में जो तेल आयात का बोझ है वह भी कम होगा. नितिन गडकरी ने कहा है कि जैव ईंधन चमत्कार कर सकता है और पेट्रोलियम के आयात पर खर्च होने वाली बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचा सकता है.
इथेनॉल उत्पादन में भारत की क्षमता
गौरतलब है कि देश में इथेनॉल उत्पादन क्षमता 1244 करोड़ लीटर के ऑल टाइम हाई पर रही है. इस साल 11 जून 2023 तक ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को डिस्टलरीज की रिकॉर्ड सप्लाई 310 करोड़ लीटर पर पहुंची. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि देश 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा था कि इस प्रोग्राम के कार्यान्वयन में मक्के की फसल महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. उन्होंने कहा कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (OMCs) को इथेनॉल की आपूर्ति 2013-14 में 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2021-22 में 408 करोड़ लीटर हो गई है.
यहां पर आंकड़े बता रहे हैं कि वर्तमान में ही इथेनॉल आधारित ईंधन की खपत कई गुना बढ़ती जा रही है. खास बात यह रही है कि भारत सरकार ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए पेट्रोल में इथेनॉल को मिलाने पर जोर दे रही है, जो घरेलू स्तर पर किया जा सकता है क्योंकि देश अपनी तेल जरूरतों का लगभग 85 फीसदी आयात करता है. यह अलग बात है कि अब नितिन गडकरी पूरी तरह से इथेनॉल आधारित गाड़ियों की वकालत कर रहे हैं. अमेरिका, ब्राजील, यूरोपीय संघ (ईयू) और चीन के बाद भारत दुनिया में इथेनॉल का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक है.
वर्तमान में सरकार के इथेनॉल ब्लैंडिंग कार्यक्रम का निर्णय है कि पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल की ब्लेंडिंग की जाए. साफ है कि सरकार के इस निर्णय के कई लाभ हो रहे हैं और आगे यह फायदे भी तेजी से आगे बढ़ेंगे. आगे जब पूरी तरह से इथेनॉल पर गाड़ियां दौड़ेंगी तो इससे किसानों की आमदनी बढ़नी तय है, गांव-कस्बे में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. गांव तक आर्थिक मजबूती होगी और गांवों का विकास भी इससे संभव होगा. कुल मिलाकर देखा जाए तो देश की समग्र अर्थव्यवस्था का विकास इस योजना के आधार में देखा जा सकता है.
यह भी समझ आ रहा है कि भारत में इथेनॉल (Ethanol) को एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है और यह भविष्य के ईंधन के रूप में देखने में भी विकसित किया जा रहा है. बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की तेजी से बिक्री होना आरंभ हो चुकी है. लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के साथ कुछ चुनौतियां भी आ रही हैं. ऐसे में इथेनॉल आधारित वाहन बाजार में हाथों हाथों अपनी जगह बनाने में कामयाब होंगे. इससे सरकार की लोगों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की मंशा को भी आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
चीनी उद्योग को मिलेगा बड़ा सहारा
देश में कई शहरों में चीनी मिल बंद हो गई थीं. यह अलग बात है कि सरकारों को चीनी मिल चालू करने का दबाव झेलना पड़ा और फिर सरकार ने इसे चालू भी कराया. लेकिन यदि बिजनेस मुनाफे वाला हो तो यह आगे स्वत: बढ़ जाता है. ऐसे में इथेनॉल आधारित वाहनों के जमाने में चीनी मिलों को बड़ा सहारा मिलेगा और इनका काम भी बढ़ेगा. चीनी मिलें घाटे से उबर जाएंगी. यह लगने लगा है कि चीनी उद्योग को जोरदार बढ़ावा मिलने के आसार हैं. जैसे ही इथेनॉल की मांग बढ़ेगी, इसके माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था आगे चलने लगेगी. देश की बड़ी आबादी आज भी ग्रामीण अंचल में रहती है.
इथेनॉल उत्पादन के लिए भारत में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होने वाली है. देश में गन्ना या शीरा के अलावा अन्य खेती के उत्पादों की कमी नहीं है. देश में प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य – महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश पर्याप्त मात्रा में गन्ना उगाते हैं. आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में ही करीब 30 लाख हेक्टेयर जमीन में गन्ना बोया जाता है. देश के कुल 70 में से 55 इथेनॉल डिस्टिलरी यूपी में हैं.
रोजगार के अवसर
एथेनॉल की अधिक मांग से यह तय है कि गांवों और कस्बों में अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे. ऐसा होने पर ग्रामीण इलाकों से पलायन रुकेगा क्योंकि उन्हें उनके घर के पास ही रोजगार मिलना संभव हो पाएगा. यह देखा गया है कि एक तरह की इंडस्ट्री के आने पर आस-पास दूसरे किस्म के रोजगार और कारोबार के अवसर पैदा होते हैं और पूरे क्षेत्र को इसका लाभ मिलता है.
विदेशी मुद्रा की बचत
अधिक इथेनॉल पर आधारित वाहनों के परिचलान से हमारे देश में विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी. इथेनॉल की ब्लेंडिंग पेट्रोल में हो रही है और इथेनॉल आधारित वाहनों के पूर्ण संचालन का लाभा भारतीय आयात पर पड़ेगा. वर्तमान में भारत अपनी तेल जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है और इस पर काफी मात्रा में विदेशी मुद्रा का नुकसान होता है. साफ है कि विदेशों से कम तेल आयात करना होगा.
प्रदूषण रहा है खतरा
बीबीसी में छपी रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत हुई है. इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण देश को 260,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान भी हुआ है. यह जानकारी केंद्र सरकार की संस्था आईसीएमआर की एक रिपोर्ट में दी गई थी.देश की राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार समेत भारत का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय से लगातार वायु प्रदूषण की चपेट में है.
गौरतलब है कि बारिश के महीनों को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में रहने वाले लोग लगभग पूरे साल प्रदूषण की मार झेलते हैं. सरल शब्दों में कहें तो दिल्ली से लेकर लखनऊ (पीएम 2.5 – 440) में रहने वाले लोग इस समय जिस हवा में साँस ले रहे हैं वो स्वस्थ लोगों को भी बीमार बना सकती है और पहले से बीमार लोगों के लिए गंभीर ख़तरे पैदा कर सकती है.
प्रदूषण से भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत
इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 1990 से 2019 तक 64 फ़ीसदी की कमी आई है लेकिन इसी बीच हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 115 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है. शोधकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में लोगों की मृत्यु, उनकी बीमारियों और उनके प्रदूषित वातावरण में रहने की अवधि का अध्ययन किया है.
इथेनॉल पर चलने वाले वाहन करते हैं कम प्रदूषण
इथेनॉल चलित वाहनों से प्रदूषण भी कम होता है. यह एक प्रकार से हरित ऊर्जा है. इससे पर्यावरण में प्रदूषण कम होगा. पेट्रोल डीजल की तुलना में यह 20% कम हाइड्रोकार्बन और कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करता है. यानी प्रदूषण कम करता है. बता दें कि देश में प्रदूषण में 40 फीसदी हिस्सेदारी फॉसिल फ्यूल यानी पेट्रोल डीजल के वजह से होती है. यह भी स्पष्ट है कि इथेनॉल पर चलने वाले वाहनों के आने के बाद प्रदूषण की बड़ी समस्या भी काफी हद तक नियंत्रित होगी. अब यह आने वाला समय बताएगा कि टोयोटा की गाड़ी कितनी कारगर साबित होती है और कितनी जल्दी इस प्रकार की और गाड़ियां बाजार में आती हैं और विस्तार करती हैं.
साभार : एनडीटीवी
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