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आर्थिक क्षेत्रों मे विमानों की खरीद और नेपाल में हवाई अड्डों का निर्माण के समझौते

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काठमांडू. हाल के वर्षो मे नेपाल ने चीन के साथ व्यापार और परिवहन क्षेत्र में कई समझौते किए हैं। इसमें  चीनी बंदरगाहों का उपयोग तेल पाइपलाइन के माध्यम से संयोजन विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना विमानों की खरीद और नेपाल में हवाई अड्डों का निर्माण करने संबंधित कई समझौते किए गये हैं । उम्मीद थी कि इन आर्थिक सौदों में से कुछ नेपाल को तेज़ी से प्रगति करने में मदद करेंगे। हालांकि इनमें से अधिकांश समझौते या तो काल्पनिक थीं या नेपाल पर भारी आर्थिक नुकसान थोपने वाली थी। इस संदर्भ में एक बिंदु ये है कि नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की अप्रैल 2016 में चीन की यात्रा के दौरान नेपाल और चीन के बीच व्यापार और ट्रांज़िट से जुड़ा समझौता हुआ था।
इस संदर्भ में एक बिंदु ये है कि नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की अप्रैल 2016 में चीन की यात्रा के दौरान नेपाल और चीन के बीच व्यापार और ट्रांज़िट से जुड़ा समझौता हुआ था। इस मौके पर चीन ने नेपाल को तीन भूमि बंदरगाह लांजो ल्हासा और शिगात्से को छोड़ कर तियानजिन शेनझेन लियान्यूनगांग और झांजियांग समेत बंदरगाह के इस्तेमाल की अनुमति प्रदान की ताकि वे तीसरी दुनिया के साथ ट्रेड व्यापार कर सके। इस समझौते ने नेपाल को उसके और चीन के बीच स्थित छह सीमा बिंदुओं के माध्यम से सार्वजनिक यातायात करने और सामानों के आयात करने की अनुमति दी।

नेपाल चीन संबंध

नेपाल में कई लोगों को यह मानने पर विवश कर दिया गया है कि चीन के साथ व्यापार और ट्रांज़िट समझौता भारत पर उनकी निर्भरता को कम करने में मदद करेगा। साथ ही यह नेपाल को चीनी पाइपलाइन के माध्यम से कजाख़स्तान से पेट्रोलियम उत्पाद आयात करने में भी मदद करेगी। चीन में नेपाली दूतावास में राजदूत महेश मास्की ने आश्वस्त करते हुए कहा कि उन्हें इस बात का यकीन है कि वे बेहतर तरीके से कजाख़स्तान के साथ पेट्रोलियम समस्याओं पर बात कर लेंगे। उस समय नेपाल ने कम से कम 30 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पादों की कुल आवश्यकताओं को चीनी पाइपलाइन के माध्यम से कजाख़स्तान से आयात करने की उम्मीद बांध रखी थी। लेकिन नेपाल में एक भी बूंद पेट्रोलियम उत्पाद का पहुंचना संभव नहीं हो सका। नेपाल ने वर्ष 2012 में चीन की एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन से छह नागरिक विमान खरीदने से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। जिसकी कीमत 667 अरब भारतीय रुपए है।
एक अन्य मामले में नेपाल ने वर्ष 2012 में चीन की एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन से छह नागरिक विमान खरीदने से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। जिसकी कीमत 6.67 अरब भारतीय रुपए है। इन छह विमानों में से एक विमान वर्ष 2018 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। बाद में पता चला कि उन विमानों में इस्तेमाल किये गये उपकरण सब्स्टैन्डर्ड या औसत से नीचे स्तर के थे। साथ ही चीनी पायलट्स का इस्तेमाल उन विमानों को उड़ान भरने के लिए करना नेपाल के लिये बहुत महंगा साबित हुआ। इस वजह से 2020 में नेपाल एयरलाइंस के बोर्ड सदस्यों ने सर्वसम्मती से निर्णय लिया कि वह सभी पांच मेड इन चाइना विमानों को जिन्हें 2014 से 2018 के बीच चीन से लिया गया था। उन सब का इस्तेमाल बंद कर देगें। इन्हें बंद करने से पहले नेपाल की कुल संचित नुकसान पहले ही 1.9 अरब भारतीय रुपये तक पहुंच चुका था। बांग्लादेश ने चीन से उन विमानों की खरीददारी को पहले ही मना कर दिया था। परंतु नेपाल ने आगे बढ़कर उन्हें खरीद लिया था।
इसके अतिरिक्त नेपाल ने 2017 में दहल शासन के दौरान चीन के साथ बेल्ट और रोड इनिशिएटिव समझौते पर सहमति बनायी थी। समझौते के बाद यह दृष्टिकोण सामने आया कि नेपाल का व्यापार बीआरआई सदस्य देशों के साथ चार गुणा होगा क्योंकि चीन नेपाल को अपने क्षेत्र के माध्यम से व्यापार की सुविधा प्रदान करेगा। इसके तहत न केवल चीन के साथ के द्विपक्षीय बल्कि चीनी सीमा से लगे अन्य तृतीय देशों के साथ व्यापार को बढ़ाने और सुविधाजनक बनाने के लिए सीनो.नेपाल सीमा के समीप के केरुंग चीन और नुवाकोट नेपाल में विशिष्ट आर्थिक जोन सेज  स्थापित किए जा सकें। लेकिन वास्तविकता यह थी कि इसके बाद नेपाल की चीन के साथ व्यापार काफी कम हो गई। सीमा के दो प्रमुख व्यापार बिंदुओं को बार बार बंद किये जाने की वजह से दोनों देशों के बीच भूमि मार्गों के माध्यम से कार्गो गतिविधियाँ पिछले तीन वर्षों में काफी हद तक बंद रह गईं थी। बल्कि इसलिये नेपाली व्यापारियों और सामान भेजने वाले कामगारों जो काफी बड़ी संख्या में चीन के साथ व्यापार कर रहे थे। उन्हें सड़क रास्ते के ज़रिए चीन से सामानों के आयात में काफी परेशानी आ रही थी। इसके विपरीत उन्हें कोलकाता और विशाखापटनम स्थित भारतीय बंदरगाहों के रास्ते चीनी सामानों का आयात करना ज्य़ादा सुविधाजनक पड़ रहा था।
काफी शोरगुल के बाद आठ वर्षों के अंतराल के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार के लिए चीन ने इस साल 1 मई को ततोपानी सीमा बिंदु को दोबारा खोल दिया। यह सीमा बिंदु चीन के साथ व्यापार के लिए मुख्य भूमि.मार्ग है और काठमांडू से लगभग 115 किलोमीटर उत्तर.पश्चिम में है। हालांकि चीन ने ततोपानी सीमा बिंदु के खोलने के दिन के बाद से ही प्लास्टिक बर्तनों से भरे तीन कंटेनरों की सीमा क्षेत्र में प्रवेश रोक दी थी। चूंकि उन कंटेनरों को उस दौरान कस्टम यार्ड में रखा गया तो इस दरम्यान नेपाली निर्यातकों को सीमा शुल्क के रूप में प्रतिदिन 5000 से 10000 भारतीय रुपये का भुगतान पेनाल्टी के तौर पर कस्टम को देना पड़ा। अप्रैल 2015 के भूकंप के कारण ततोपानी सीमा बिंदु बंद होने से पहले नेपाल अपने हस्तशिल्प के सामान जड़ी.बूटियां नूडल्स और अन्य उत्पादों को तिब्बत स्थित खासा शिगात्से और ल्हासा के बाज़ारों में निर्यात किया करता था। उस समय तक नेपाल सरकार को इस सीमा बिंदु के माध्यम से प्रतिदिन करीब 15 करोड़ भारतीय रुपये से अधिक के राजस्व का फायदा होता था।
इसलिये समझौते पर हस्ताक्षर करते समय वैक्सीन की कीमत नहीं खुली। बाद में पता चला कि एक खुराक की वैक्सीन की कीमत 10 अमेरिकी डॉलर थी। इस समझौते से पहले नेपाल ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कोविशील्ड को भारतीय सीरम इंस्टीट्यूट से प्रति खुराक केवल 4 अमेरिकी डॉलर की कीमत पर प्राप्त किया था।
हाल ही में इस साल 1 जनवरी को पश्चिम नेपाल के पोखरा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के उदघाटन वाले दिन चीन ने यह दावा करके कि यह हवाई अड्डा चीन की प्रमुख परियोजना बीआरआई के तहत बनाया गया है।एक नया और ताज़ा विवाद खड़ा कर दिया है। लेकिन नेपाल ने तुरंत ही चीनी दावे को ख़ारिज कर दिया। नेपाल ने इस हवाई अड्डे के निर्माण के लिए चीन के एक्ज़िम बैंक से कर्ज़ लिया था लेकिन इसका निर्माण बीआरआई के तहत नहीं किया गया था। नेपाल के लिए जो बात और भी चिंताजनक है वो यह है कि इस हवाई अड्डे पर उदघाटन के बाद अब तक कोई भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान नहीं आयी है। इस नये एयरपोर्ट के सफल संचालन के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि यहां से कम से कम 100 घरेलू और 50 अंतरराष्ट्रीय उड़ानें इस हवाई अड्डे से नियमित तौर पर चलायी जा सकें। नेपाल और चीन के बीच किए गए आर्थिक समझौतों और सौदों की विफलता के पीछे का कारण क्या है । जिसके कारण नेपाल को बड़े आर्थिक नुकसान झेलने पड़े हैं। क्या यह नेपाल की ओर से पर्याप्त गृहकार्य की कमी के कारण हुआ।
अब यह समय आ गया है कि इस बात का आकलन किया जाये कि नेपाल और चीन के बीच किए गए आर्थिक समझौतों और सौदों की विफलता के पीछे का कारण क्या है जिसके कारण नेपाल को बड़े आर्थिक नुकसान झेलने पड़े हैं। क्या यह नेपाल की ओर से पर्याप्त गृहकार्य की कमी के कारण हुआ या क्या यह राष्ट्रीय नुकसानों की कीमत पर किसी एक व्यक्ति की छोटे निजी स्वार्थों के कारण हो रहा था। सच चाहे जो भी हो नेपाल को अब उन कारकों का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है जिस वजह से उन्हें इतने बड़े आर्थिक नुकसान झेलने पड़े हैं संबंधित एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी विदेशी देश के साथ किए गए किसी भी आर्थिक समझौते में राष्ट्रीय हित को सबसे उपर रखा जाये।
मा.स./विक्रम सिंह
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