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सुप्रीम कोर्ट में उठी मोहम्मद बिन कासिम के हमलों के पहले की स्थिति बहाल करने की मांग

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नई दिल्ली. प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान, वकील विष्णु शंकर जैन ने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. उन्होंने इस कानून के खिलाफ अपनी आपत्ति जताते हुए कहा, “हमने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. हम यह कहते हैं कि जामियत-उलमा-ए-हिंद की ओर से इस एक्ट की जो व्याख्या दी गई है कि राम मंदिर के अलावा किसी अन्य मामले में कोर्ट में नहीं जा सकते, वह असंवैधानिक है.”

कट-ऑफ डेट को लेकर आपत्ति

जैन ने इस एक्ट में 15 अगस्त 1947 को कट-ऑफ डेट के रूप में तय किए जाने पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट में जो कट-ऑफ डेट 15 अगस्त 1947 निर्धारित की गई है, वह असंवैधानिक है. यह कट-ऑफ डेट 712 ईस्वी होनी चाहिए, जब मोहम्मद बिन कासिम ने पहले आक्रमण किया और यहां के मंदिरों को नष्ट किया.”

संसद की शक्ति पर उठाया सवाल

इसके अलावा, जैन ने यह भी कहा कि संसद को ऐसा कानून बनाने का अधिकार नहीं है जो लोगों के कोर्ट में जाने के अधिकार को समाप्त कर दे. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह एक्ट संविधान के मौलिक ढांचे का उल्लंघन करता है और यह अनुच्छेद 14, 15, 19, 21, और 25 का भी उल्लंघन है. उन्होंने कहा, “संसद के पास ऐसा कानून बनाने की विधायी क्षमता नहीं है जो लोगों से अदालत जाने का अधिकार छीन सके. यह अधिनियम संविधान की मूल संरचना और अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 25… का उल्लंघन है. 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार यह कानून लेकर आई थी, जिसे संसद से पास भी कराया गया. यह कानून 15 अगस्त, 1947 यानी देश की आजादी से पहले अस्तित्व में किसी भी धार्मिक पूजा स्थल की यथास्थिति बरकारर रखने की शक्ति देता है, साथ ही पूजा स्थलों को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में बदलने से रोकता है.अगर ऐसा कोई करता है तो उसे एक से तीन साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। इस एक्ट में कुद महत्वपूर्ण धाराओं को शामिल किया गया है.”

साभार : एबीपी न्यूज

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