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एक सप्ताह में सुरक्षाबलों ने 5 मुठभेड़ों में ठेर किये 8 आतंकवादी

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जम्मू. कश्मीर घाटी में इस महीने के पहले हफ्ते में विभिन्न जिलों में सुरक्षाबलों और मिलिटेंट्स के बीच 5 बड़ी मुठभेड़ देखी गई, जिसमें सुरक्षाबलों ने 8 मिलिटेंट्स को ढेर करने में सफलता हासिल की हैं. सुरक्षाबलों ने जिन 8 के 8 मिलिटेंटस को मारा वो कोई न कोई टॉप रैंक के थे और प्रारंभिक जांच में यह पाया गया हैं कि इन 8 मिलिटेंटस में से 7 विदेशी मूल के थे, पाकिस्तानी थे. श्रीनगर के खानयार में सुरक्षाबलों ने लश्कर (TRF) के बड़े कमांडर उस्मान लश्करी को 2 नवंबर को मार गिराया, यह पाकिस्तानी मूल का कमांडर था और लश्कर के साथ बीते 20 वर्षों से जुड़ा हुआ था. इसी दिन अनंतनाग के लारनू कोकरकरनाग में सुरक्षाबलों ने 2 मिलिटेंटस को मार गिराया जिन में एक अरबाज नामी स्थानीय मिलिटेंट और एक पाकिस्तानी मूल का मिलिटेंट था. अरबाज पहले जम्मू और फिर कश्मीर में जैश के शैडो नेटवर्क PAFF के साथ जुड़ा हुआ था.

8 आंतकवादी ढेर

नॉर्थ कश्मीर के बांडीपोरा के केट्सन में एक मुठभेड़ में सेना ने एक पाकिस्तानी मूल के मिलिटेंट को मार गिराया जिस के पास से अमरीकी राइफल एम4 भी बरामद हुई जोकि टॉप कमांडरस के पास आम तौर पर हुआ करती हैं. 5 नवंबर को ही कुपवाड़ा के लोलाभ जंगलों में एक और मुठभेड़ में सेना ने एक पाकिस्तानी मूल के मिलिटेंट को मार गिराया जिसके पास से असलह बारूद की एक बड़ी खेप बरामद की गई. 7 नवंबर को बारामुला के सोपोर के पानीपोरा में सुरक्षाबलों और मिलिटेंटस के बीच मुठभेड़ में अभी तक 2 मिलिटेंट मारे गए हैं. प्रारंभिक जांच में पता चल पाया है कि यह स्वाभाविक तौर पर पाकिस्तानी मूल के हैं.

आखिर क्यों मारे जा रहे विदेशी आतंकी?

कश्मीर में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के बीच कोई भी मिलिटेंट घटना नहीं देखी गई, जबकि 2019 के बाद से छुटपुट घटनाओं का मिलिटेंसी ग्राफ सबसे डाउन रिकॉर्ड हुआ जोकि जानकारों के अनुसार मिलिटेंट संगठनों के बीच काफी खल रहा हैं और उनके द्वारा कोशिश की जा रही हैं कि इस माहौल को खराब किया जाए. सुरक्षा जानकारों की माने तो अब सर्दी का मौसम जैसे-जैसे करीब आरहा हैं सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशें तेज होंगी. वहीं पर जो मिलिटेंट कमांडर यहां बचे हुए हैं उन पर सीमा पार से दबाव बनाया जा रहा हैं कि वह अपनी गतविधियों को तेज करें जिसके नतीजे में वह मजबूत सुरक्षा चक्र में फंस रहे हैं और मारे जा रहे हैं. सुरक्षा जानकारों के अनुसार अभी स्थानीय लोगों की मिलिटेंट संगठनों में भर्ती ना के बराबर देखी जारही हैं और पुराने बचे लोकल मिलिटेंट भी बहुत कम हैं जिस से कहीं न कहीं इन विदेशी मिलिटेंटस पर दिन ब दिन दबाव बढ़ रहा हैं.

साभार : टीवी9 भारतवर्ष

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