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भारत के मार्च 2026 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के संकेत

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– प्रहलाद सबनानी

भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.93 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। जबकि, जापान के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.21 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है एवं जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.59 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष बनी हुई है और जापान एवं जर्मनी की आर्थिक विकास दर लगभग स्थिर है अथवा इसके ऋणात्मक रहने की भी प्रबल सम्भावना है। इस दृष्टि से मार्च 2025 तक भारत जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं मार्च 2026 तक भारत जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हाल ही के समय में जर्मनी एवं जापान की अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न प्रकार की समस्याएं दृष्टिगोचर हैं, जिनके कारण इन दोनों देशों की आर्थिक विकास दर आगे आने वाले वर्षों में विपरीत रूप से प्रभावित रह सकती है।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात लगातार 4 दशकों तक जर्मनी पूरे यूरोपीयन यूनियन में तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहा। इस दौरान विनिर्माण इकाईयों के बल पर जर्मनी ने अपने आप को विश्व में विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर लिया था एवं विभिन्न उत्पादों, विशेष रूप से कार, मशीनरी एवं केमिकल उत्पादों का निर्यात पूरे विश्व को भारी मात्रा में किया जाने लगा था। पिछले 20 वर्षों के दौरान जर्मनी पूरे यूरोपीयन यूनियन के विकास का इंजिन बना हुआ था। चूंकि चीन की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से विकास कर रही थी अतः पिछले 20 वर्षों के दौरान चीन, जर्मनी से  लगातार मशीनरी, कार एवं केमिकल पदार्थों का भारी मात्रा में आयात करता रहा है। परंतु, अब परिस्थितियां बदल रही हैं क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था भी हिचकोले खाने लगी है और चीन ने विभिन्न उत्पादों का जर्मनी से आयात कम कर दिया है। अतः अब जर्मनी अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। आज बदली हुई परिस्थितियों में चीन, जर्मनी में निर्मित विभिन्न उत्पादों का आयात करने के स्थान पर वह जर्मनी का प्रतिस्पर्धी  बन गया है और इन्हीं उत्पादों का निर्यात करने लगा है।

दूसरे, पिछले लगभग 2 वर्षों से रूस ने भी ऊर्जा की आपूर्ति यूरोप के देशों को रोक दी है, रूस द्वारा निर्यात की जाने वाली इस ऊर्जा का जर्मनी ही सबसे अधिक लाभ उठाता रहा है। तीसरे, जर्मनी में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और एक अनुमान के अनुसार जर्मनी में आगे आने वाले एक वर्ष से कार्यकारी जनसंख्या में प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की कमी आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इससे उपभोक्ता खर्च पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। चौथे, जर्मनी में नागरिकों की उत्पादकता भी कम हो रही है। जर्मनी में प्रत्येक नागरिक वर्ष भर में केवल 1300 घंटे का कार्य करता है जबकि OECD देशों में यह औसत 1700 घंटे का है। पांचवे, यूरोपीयन यूनियन में वर्ष 2035 में पेट्रोल एवं डीजल पर चलने वाले चार पहिया वाहनों के उत्पादन पर रोक लगाई जा सकती है जबकि इन कारों का निर्माण ही जर्मनी में अधिक मात्रा में होता है तथा जर्मनी की कार निर्माता कम्पनियों ने बिजली पर चलने वाले वाहनों के निर्माण पर अभी बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया है। साथ ही, जर्मनी ने नवाचार पर भी कम ध्यान दिया है एवं स्टार्ट अप विकसित करने में बहुत पीछे रहा है आज इन क्षेत्रों में अमेरिका एवं चीन बहुत आगे निकल गए हैं एवं जर्मनी आज अपने आप को असहाय सा महसूस कर रहा है। अतः जर्मनी अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव आगे आने वाले लम्बे समय तक चलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

वैश्वीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव भी जर्मनी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है एवं अब पूरे विश्व में गैरवैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। आज प्रत्येक विकसित एवं विकासशील देश अपने पैरों पर खड़ा होकर स्वावलंबी बनना चाहता है। अतः जर्मनी जैसे देशों से मशीनरी एवं कारों का निर्यात कम हो रहा है साथ ही इन उत्पादों की तकनीकि भी लगातार बदल रही है जिसे जर्मनी की विनिर्माण इकाईयां उपलब्ध कराने में असफल सिद्ध हुई हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान जर्मनी अर्थव्यवस्था में विकास दर हासिल नहीं की जा सकी है। जर्मनी में सितम्बर 2023 माह में वोक्सवेगन (Volkswagen) कम्पनी ने अपनी दो विनिर्माण इकाईयों को बंद करने का निर्णय लिया है। यह कम्पनी जर्मनी में 3 लाख से अधिक रोजगार के प्रत्यक्ष अवसर उपलब्ध कराती है तथा अन्य लाखों नागरिकों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती हैं। इस कम्पनी ने जर्मनी में अपनी विनिर्माण इकाईयों में उत्पादन कार्य को काफी हद्द तक कम कर दिया है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से इस कम्पनी के उत्पादों की बिक्री लगातार कम हो रही है। पिछले 5 वर्षों के दौरान इस कम्पनी की बाजार कीमत आधे से भी कम रह गई है। इस कम्पनी की उत्पादन इकाईयों में चार पहिया वाहनों का निर्माण किया जाता रहा है परंतु अब इन उत्पादन इकाईयों में बिजली पर चलने वाली कारों के निर्माण में बहुत परेशानी आ रही है।

बिजली पर चलने वाली कारों का जर्मनी में उत्पादन बढ़ाने के स्थान पर चीन से इन कारों का बहुत भारी मात्रा में आयात किया जा रहा है। अपनी आर्थिक परेशानियों को ध्यान में रखते हुए जर्मनी ने यूक्रेन को टैंकों की आपूर्ति भी रोक दी है। दरअसल कोरोना महामारी के बाद से ही, वर्ष 2020 के बाद से, जर्मनी की अर्थव्यवस्था अभी तक सही तरीके से पूरे तौर पर उबर ही नहीं सकी है। एक अनुमान के अनुसार जर्मनी अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2024 में भी कम होने जा रहा है, यह वर्ष 2023 में भी कम हुआ था और इसके वर्ष 2025 में भी सुधरने की सम्भावना कम ही दिखाई दे रही है। जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2024 के दौरान 0.1 प्रतिशत की कमी की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। बेरोजगारी की दर भी 6.1 प्रतिशत के स्तर तक ऊपर जा सकती है। जर्मनी अर्थव्यवस्था केवल चक्रीय ही नहीं बल्कि संरचनात्मक क्षेत्र में भी समस्याओं का सामना कर रही है। इसमें सुधार की कोई सम्भावना आने वाले समय में नहीं दिख रही है। हालांकि यूरोपीयन यूनियन में जर्मनी की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है परंतु फिर भी भारत, उक्त कारणों के चलते, जर्मनी की अर्थव्यवस्था को मार्च 2026 तक पीछे छोड़ देगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

इसी प्रकार, पिछले लगभग 30 वर्षों के दौरान जापान की अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति, ब्याज दरें एवं येन की कीमत स्थिर रही है। परंतु, हाल ही के समय में येन का अंतरराष्ट्रीय बाजार में अवमूल्यन हो रहा है एवं यह 160 येन प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आ गया है, जो वर्ष 2009 के बाद से कभी नहीं रहा है।  जापान की अर्थव्यवस्था कई उत्पादों के आयात पर निर्भर करती है। जापान अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं का 90 प्रतिशत एवं खाद्य सामग्री का 60 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। जापान द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से जापान में भी आयातित मुद्रा स्फीति की दर बढ़ रही है जो पिछले एक दशक के दौरान लगातार स्थिर रही है। वर्ष 1955 से वर्ष 1990 के बीच जापान की अर्थव्यवस्था औसत 6.8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से आगे बढ़ती रही। वर्ष 1990 तक जापान का स्टॉक मार्केट लगातार बढ़ता रहा एवं अचानक वर्ष 1990 में यह बुलबुला फट पढ़ा और जापान में आवासीय मकानों की कीमत 50 प्रतिशत तक गिर गई एवं व्यावसायिक मकानों की कीमत 85 प्रतिशत तक गिर गई। जापान के पूंजी बाजार में निक्के स्टॉक सूचकांक भी 75 प्रतिशत तक गिर गया।

जापान की अर्थव्यवस्था में तेजी के दौरान आस्तियों की बढ़ी हुई कीमत पर ऋण लिए गए थे परंतु जैसे ही इन आस्तियों की कीमत बाजार में कम हुई, नागरिकों को ऋणराशि की किश्तें चुकाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा और इससे भी जापान में आर्थिक समस्याएं बढ़ी थी। दिवालिया होने वाले नागरिकों की संख्या बढ़ी और देश में अपस्फीति की समस्या प्रारम्भ हो गई थी। जापान की सरकार ने आर्थिक तंत्र में नई मुद्रा की मात्रा बढ़ाई और ब्याज दरों को लगभग शून्य कर दिया। इन समस्त उपायों से भी जापान में आर्थिक समस्याओं का हल नहीं निकल सका। वर्ष 2022 में जापान में भी विश्व के अन्य देशों की तरह मुद्रा स्फीति बढ़ने लगी थी परंतु जापान ने ब्याज दरों को नहीं बढ़ाया। अब कुल मिलाकर जापान अपनी आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है एवं वहां पर आगे आने वाले समय में आर्थिक विकास के पटरी पर आने की सम्भावना कम ही नजर आती है अतः भारत जापान की अर्थव्यवस्था को मार्च 2025 तक पीछे छोड़कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन सकता है।

लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.

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