– प्रहलाद सबनानी
अर्थ के कई क्षेत्रों में आज भी पूरे विश्व में चीन का दबदबा कायम है जैसे चीन विनिर्माण के क्षेत्र में विश्व का केंद्र बना हुआ है। विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) के शेयर बाजार के आकार के मामले में भी चीन का दबदबा लम्बे समय से कायम रहा है। परंतु, अब भारत उक्त दोनों ही क्षेत्रों, (विनिर्माण एवं शेयर बाजार), में चीन को कड़ी टक्कर देता दिखाई दे रहा है तथा हाल ही में तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार सम्बंधी इंडेक्स में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।
दरअसल पूरे विश्व में संस्थागत निवेशक विभिन्न देशों, विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं, के शेयर बाजार में पूंजी निवेश करने के पूर्व वैश्विक स्तर पर इस संदर्भ में जारी किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण इंडेक्स पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। अथवा, यह कहा जाय कि इन इंडेक्स के आधार पर अथवा इन इंडेक्स की बाजार में चाल पर ही वे इन देशों के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन संस्थागत निवेशकों में विभिन्न देशों के पेन्शन फंड, सोवरेन फंड, निवेश फंड आदि शामिल रहते हैं जिनके पास बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी की उपलब्धता रहती है एवं वे अपनी आय बढ़ाने के उद्देश्य से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं। इस संदर्भ में MSCI Emerging Market IMI (Investible Market Index) Index का नाम पूरे विश्व में बहुत विश्वास के साथ लिया जाता है। विश्व प्रसिद्ध निवेश कम्पनी मोर्गन स्टेनली ने अपने प्रतिवेदन में बताया है कि इस इंडेक्स में 24 तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) की 3,355 कम्पनियों के शेयरों को शामिल किया गया है।
पिछले 15 वर्षों से यह प्रचलन चल रहा है कि इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स (IMI) में चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है परंतु धीरे धीरे अब चीन की भागीदारी इस इंडेक्स में कम हो रही है एवं इस वर्ष अब भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस इंडेक्स में प्रतिशत में चीन की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है और भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इस इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से बढ़ते हुए चीन से आगे निकल आई है और भारत की हिस्सेदारी अब 22.27 प्रतिशत से अधिक हो गई है एवं चीन की हिस्सेदारी कम होकर 21.58 रह गई है। यह इतिहास में पहली बार हुआ है और इसका आशय यह है कि जो निवेशकर्ता इस इंडेक्स के आधार पर अपना निवेश तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में करते हैं वे अब भारत की ओर अपना रूख करेंगे। दूसरे, पिछले कुछ वर्षों से विदेशी निवेशक भारत से निवेश बाहर निकालते रहे हैं क्योंकि उनको भारतीय शेयर मंहगे लगाने लगे थे। परंतु, अब यह विदेशी निवेशक भी भारत की ओर रूख करेंगे। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। भारत का वेट बढ़ने से इस प्रकार के निवेशक भी भारत में आएंगे ही और भारत में 400 से 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नया निवेश करेंगे। एक अन्य MSCI वैश्विक सूचकांक में भी भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 2 प्रतिशत हो गई है। परंतु, MSCI इमर्जिंग मार्केट इननवेस्टिबल फड इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत से अधिक हो गई है। वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाले बड़े फंड्ज का निवेश सम्बंधी आबंटन भी इसी हिस्सेदारी के आधार पर होने की सम्भावना है। इन्हीं कारणों के चलते अब आने वाले समय में भारत के शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा अपना निवेश बढ़ाए जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
वैसे भी चीन की अर्थव्यवस्था में अब विकास दर कम हो रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से चीन लगातार कुछ आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है। चीन की विदेश नीति में भी बहुत समस्याएं उभर रही हैं विशेष रूप से चीन के अपने लगभग समस्त पड़ौसी देशों के साथ राजनैतिक सम्बंध ठीक नहीं हैं। चीन के शेयर बाजार में देशी निवेशक ही अधिक मात्रा में भाग ले रहे थे और वे भी अब अपना पैसा शेयर बाजार से निकाल रहे हैं। इन समस्याओं के पूर्व MSCI इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में चीन ओवर वेट था और भारत अंडर वेट था। परंतु, पिछले दो वर्षों के दौरान स्थिति में तेजी से परिवर्तन हुआ है। चीन की अर्थव्यवस्था में आई समस्याओं के चलते चीन का इस इंडेक्स में खराब प्रदर्शन रहा है, उससे चीन की हिस्सेदार इस इंडेक्स में कम हुई है। दूसरा, भारत अपने आप में विभिन्न आयामों वाला शेयर बाजार है क्योंकि यहां निवेशकों को सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा एवं गैस, अधोसंरचना, स्वास्थ्य, होटेल, बैंकिंग एवं वित्त आदि जैसे लगभग समस्त क्षेत्र मिलते हैं। इसके विपरीत ताईवान के शेयर बाजार में सेमीकंडक्टर क्षेत्र की कम्पनियों की 60 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी है, इसी प्रकार, सऊदी अरब में तेल कम्पनियों की 90 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी है। इस प्रकार ये देश पूर्णत: केवल एक अथवा दो क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं जबकि भारत में विदेशी निवेशकों को कई क्षेत्रों में निवेश का मौका मिलता है। भारत एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था शीघ्र ही पांचवे स्थान से आगे बढ़कर तीसरे स्थान पर आने की तैयारी में है। भारत में सशक्त वित्तीय प्रणाली के साथ ही सशक्त प्राइमरी मार्केट भी है। भारत में स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है, इन स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियों को भी तो वित्त की आवश्यकता है, जिनमें विदेशी निवेशक अपनी पूंजी का निवेश कर सकते हैं। इस प्रकार यह स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियां भी निवेशकों को निवेश के लिए अतिरिक्त बेहतर विकल्प प्रदान कर रही हैं।
साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का कम्पन भी स्पष्टत: दिखाई दे रहा हैं और भारत में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि हो रही है। भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं इससे भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग में और अधिक वृद्धि होगी तथा इससे विभिन्न कम्पनियों की लाभप्रदता में भी अधिक वृद्धि होगी और अंततः इन कंपनियों के शेयरों में निवेश करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों को भी भारत में निवेश करने में और अधिक लाभ दिखाई देगा। दूसरे, भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 60 प्रतिशत जनसंख्या का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 18 प्रतिशत तक ही है, इसे बढ़ाए जाने के लगातार प्रयास केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के चलते ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों की आय में भी वृद्धि दर्ज होगी। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में निवासरत नागरिकों को उद्योग एवं सेवा के क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं ताकि ग्रामीण इलाकों एवं कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या का दबाव कम हो। भारत की जनसंख्या की औसत आयु 27 वर्ष हैं, चीन की जनसंख्या की औसत आयु 40 वर्ष है और जापान की जनसंख्या की औसत आयु 53 वर्ष है। इस प्रकार भारत आज एक युवा देश है क्योंकि भारत में युवा जनसंख्या, चीन एवं जापान की तुलना में, अधिक है जो भारत के लिए, आर्थिक दृष्टि से, लाभ की स्थिति उत्पन्न करता है।
भारतीय युवाओं को यदि रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने लगते हैं तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में और अधिक तेज गति से वृद्धि सम्भव होगी। चीन में आज बेरोजगारी की दर जुलाई 2024 में बढ़कर 5.20 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो जून 2024 में 5 प्रतिशत थी। वर्ष 2002 से वर्ष 2024 तक चीन में बेरोजगारी की औसत दर 4.75 प्रतिशत रही है। हालांकि फरवरी 2020 में यह 6.20 प्रतिशत के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई थी। अब पुनः धीरे धीरे चीन में बेरोजगारी की दर आगे बढ़ रही है। जबकि भारत में वर्ष 2023 में बेरोज़गारी की दर (15 वर्ष से अधिक आयु के नगरिको की) कम होकर 3.1 हो गई है जो हाल ही के समय में सबसे कम बेरोज़गारी की दर है। वर्ष 2022 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.6 प्रतिशत थी एवं वर्ष 2021 में 4.2 प्रतिशत थी। इस प्रकार धीरे धीरे भारत में बेरोजगारी की दर में कमी आने लगी है। कुल मिलाकर अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में चीन की तुलना में भारत की स्थिति में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है जिससे MSCI इंडेक्स में भारत की स्थिति में भी लगातार सुधार दिखाई दे रहा है जो आगे आने वाले समय में भी जारी रहने की सम्भावना है। इस प्रकार, अब भारत, चीन को अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में धीरे धीरे पीछे छोड़ता जा रहा है।
लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.
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