8 अप्रैल को मंगल पाण्डेय को फांसी दी जा चुकी थी। इससे अंग्रेजों की मुश्किल कम होने की जगह बढ़ती चली गई। बैरकपुर से शुरू हुई यह क्रांति सबसे पहले आस-पास के क्षेत्रों में फैली। धन सिंह उस समय मेरठ की सदर कोतवाली के प्रमुख थे। मेरठ से कोतवाल धन सिंह ने 10 मई 1857 को एक बड़ा विद्रोह किया। उन्होंने सबसे पहले अंग्रेज सरकार के विश्वासपात्र सैनिकों को कोतवाली के भीतर ही रहने का आदेश दिया। इसके बाद रात 2 बजे जेल से 836 कैदियों को छोड़ दिया और जेल में आग लगा दी। ये कैदी भी अंग्रेजों से संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। इनमें से कई क्रांतिकारी मेरठ के आस-पास अंग्रेजों से होने वाले संघर्षों में शामिल रहे। लेकिन अंग्रेजों ने इस घटना के लिए कोतवाल होने के कारण धन सिंह को जिम्मेदार मानते हुए 4 जुलाई 1857 को फांसी दे दी।
मेरठ गजेटियर के अनुसार 4 जुलाई को ही पांचली में विद्रोह को दबाने के लिए 56 घुड़सवार, 38 पैदल सैनिक और 10 तोपों के साथ अंग्रेजों ने हमला कर सैकड़ों किसानों को मौत के घाट उतार दिया। यह नरसंहार दशहरे तक निरंतर चलता रहा। एक उल्लेख से पता चलता है कि अंग्रेजों ने दशहरे के दिन ग्राम गगोल को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और उसी दिन 9 ग्रामीणों को पकड़कर फांसी दे दी। पहले मंगल पाण्डेय और फिर कोतवाल धन सिंह इन दोनों के बलिदान ने उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन में नई ऊर्जा का संचार किया। धन सिंह गुर्जर समाज से आते थे, इसलिए उनका दमन करने के चक्कर में अंग्रेजों ने बड़े स्तर पर इस समाज को नाराज कर दिया। इसके बाद यह भी देखने को मिला कि 1857 में जहां भी गुर्जर समाज सशक्त था, उसने वहां अंग्रेजों से लोहा लिया।