कांग्रेस में गांधीजी के आने के बाद भी बाल गंगाधर तिलक की 1920 में मृत्यु तक गरम दल के लोगों का प्रभाव अधिक था। इस कारण बाल-लाल-पाल की तिकड़ी कई मुखर होकर कार्य करने वालों को कांग्रेस में प्रवेश कराने में सफल हुई। इन्हीं में से एक नाम था एनी बेसेंट का। आयरिश मूल की एनी बेसेंट का विवाह एक पादरी से हुआ था, जिन्हें उन्होंने स्वयं पसंद किया था, किन्तु अपने पति के धार्मिक विचारों से असहमत होने के कारण उनका तलाक हो गया। बेसेंट की भारत को नजदीक से देखने और कार्य करने की उनकी इच्छा उन्हें 1893 में भारत ले आई। वो भारत एक समाजसेवी के रूप में आई थीं। लेकिन बाद में उनका संपर्क बाल गंगाधर तिलक से हुआ। उनसे प्रभावित होकर वो कांग्रेस से भी जुड़ गईं। क्रांतिकारी विचारों की समर्थक एनी बेसेंट 1917 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्ष बनी।
भगत सिंह की तरह ही एनी बेसेंट भी गांधीजी के आंदोलन चलाने के तरीकों और उसके उद्देश्यों से सहमत नहीं थीं। भगत सिंह ने जहां इस ओर अधिक ध्यान न देते हुए अलग क्रांति का रास्ता अपना लिया, तो वहीं एनी बेसेंट ने गांधीजी की खुली निंदा करने में भी संकोच नहीं किया। भारत आने से पहले ही गांधीजी के बारे में जो सकारात्मक माहौल बनाया गया था, उनके वक्तव्य उस पर बड़ा तमाचा थे, लेकिन दुर्भाग्य से इस मामले में किसी ने उनका साथ नहीं दिया या संभव है की 1920 में तिलक की मृत्यु के बाद कोई चाह कर भी उनका साथ नहीं दे सका। एनी बेसेंट के अनुसार, “ गांधीजी के आन्दोलन अराजकतावादी तथा घृणा पैदा करने वाले हैं। गांधीजी के दर्शन एवं नेतृत्व स्वतंत्रता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हैं। गांधीजी अस्पष्ट स्वराज देखने वाले और रहस्यवादी राजनीतिज्ञ हैं। गांधीजी के सच्चे हृदय से पश्चाताप, उपवास, तपस्या आदि पर मुझे विश्वास नहीं होता है, यह संदेह पैदा करते हैं। मैं भारत की जनता को चेतावनी देती हूं कि यदि गाँधीवादी प्रणाली को अपनाया गया, तो देश पुनः अराजकता के खड्ड में जा गिरेगा।” स्वतंत्रता के समय एनी बेसेंट की ये भविष्यवाणियां सही होती दिखी।