पटना. राजनीति के चाणक्य कहे जाने नीतीश कुमार हर दिन अपनी राजनीति के अलग रंग दिखाते रहते हैं। कभी भाजपा की बड़ाई कर महागठबंधन के नेताओं को परेशान कर देते हैं तो कभी अचानक राज भवन जाकर लालू यादव की धड़कन तक रोक देते हैं। अब नीतीश कुमार ने नया पैंतरा दिखाते उन भाजपाइयों को संशय में डाल दिया है। खासकर उन भाजपाइयों को जिन्हें भर-भर कर उम्मीद थी आगामी लोकसभा चुनाव जदयू और भाजपा साथ साथ लड़ेंगे। दरअसल, हुआ यह कि सीएम नीतीश कुमार ने राहुल गांधी की एक जनसभा में जाने के लिया हां कह दी है। वह अपने करीबी नेताओं के साथ 30 जनवरी को पूर्णिया में आयोजित आम सभा में शामिल हो कर राहुल गांधी के हाथ को मजबूत करेंगे। दूसरी तरफ सीएम नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने पर अपने पहले ट्वीट का डिलीट कर दोबारा से ट्वीट किया और उसमें खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुक्रिया कहा।
दवाब की राजनीति का यह अगला दांव
यह दीगर कि राजनीतिक गलियारों में राहुल गांधी की मौजूदगी में पूर्णिया की आम सभा में नीतीश कुमार के शामिल होने पर संशय है। कांग्रेस के एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्रा के बयान के बाद जदयू नेता खालिद अनवर ने इस बात की पुष्टि नहीं की है। पर नीतीश कुमार की तरफ से आधिकारिक बयान नहीं आने पर राजनीति गलियारों में यह चर्चा है कि यह सब एनडीए के ऊपर दवाब बनाने की राजनीति का अगला कदम मान रहे हैं। कहा यह जा रहा है कि एनडीए में शामिल होने की जितनी शर्त रखी गई हैं, उनमें अधिकांश भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को स्वीकार है। पर जदयू की एक महत्वपूर्ण शर्त पर भाजपा की ना नुकुर चल रही है। दरअसल, जदयू की तमाम शर्त के साथ एक बड़ी और अनिवार्य मांग यह है कि राज्य में विधान सभा और लोकसभा का चुनाव साथ-साथ हो।
क्यों चाहते हैं साथ-साथ चुनाव?
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि नीतीश कुमार को बिहार विधान सभा में तीसरी बड़ी पार्टी बन जाना काफी अखर गया है। 115 विधायकों की संख्या वाली जदयू वर्तमान में 43 विधायकों के साथ आगामी कोई राजनीतिक डील नहीं करना चाहती। हो यह रहा है कि कम विधायकों के बाद भी सीएम नीतीश कुमार बन तो गए, पर राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा ज्यादा हुई कि भाजपा बड़े भाई की भूमिका में रहते हुए भी इस फैसले के लिए कैसे तैयार हो गई।
महागठबंधन में शामिल होने के बाद भी यह दंश साथ रहा। राजद के प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने तो साफ कहा कि लालू प्रसाद के आशीर्वाद से बिहार के सीएम हैं। लेकिन निराशा तब और हाथ लगी जब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने लोक सभा सीटों के बंटवारे का आधार विधायकों की संख्या का फॉर्मूला मान्य किया। तर्क यह दिया गया कि 2014 की लोकसभा चुनाव में जदयू मात्रा दो सीट पर जीत पाई थी। पर 2019 में विधायकों की संख्या का आधार बनाकर 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़े थे। यहां भी विधायकों की संख्या के आधार पर महागठबंधन में 16 सीट नहीं मिलता दिख रहा है। यही वजह भी है कि दवाब की राजनीति करते जदयू के शीर्ष नेताओं ने 17 लोकसभा सीट जदयू के लिए लॉक कर दी। हालांकि इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर जदयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह का बयान आया कि अगले तीन हफ्ते में सीट शेयरिंग हो जायेगा। इंडिया गठबंधन में ऑल इज वेल है।
साभार : नवभारत टाइम्स
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