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राष्ट्रपति भवन का दरबार हॉल अब हुआ गणतंत्र मंडप, अशोक हॉल का नाम भी बदला

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नई दिल्ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में दो कक्षों के नाम बदल दिए हैं. ऐतिहासिक तौर पर हमेशा उल्लेख किए जाने वाले दरबार हॉल को अब गणतंत्र मंडप कहा जाएगा तो अशोक हॉल को अशोक मंडप. इन दोनों हॉल की अपनी कहानी रही है. इन दोनों मंडपों की उम्र 92 साल हो चुकी है. सर एडविन लुटियंस ने इस भव्य राष्ट्रपति भवन को 1911 में बनाना शुरू किया और 1932 में खत्म किया.

आजादी से पहले दरबार हॉल को थोर्न हॉल कहा जाता था. फिर इसे नया नाम मिला दरबार हॉल के रूप में. दरबार यानि वो कक्ष जहां प्रमुख अपने सहयोगियों और दरबारियों के साथ बैठकर सभा या मीटिंग कर सके. दरबार हॉल की भी अपनी एक कहानी है. ये हमारे सुनहरे क्षणों का भी गवाह रहा है. यहीं भारत रत्नों को अवार्ड मिलता रहा है, यहीं कई तरह की अवार्ड समारोह होते आए हैं.

दरबार हॉल पहले था थॉर्न हॉल 
जब 1932 में ये भवन बनकर तैयार हुआ तो इसे वायसराय हाउस कहा जाता था. तब इस हॉल को थोर्न हॉल का नाम दिया गया. लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो इस कक्ष को दरबार हॉल नाम दिया गया. हालांकि इसका एक और नाम भी रहा है – सिंहासन कक्ष, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. हालांकि दरबार की जगहें काफी बड़ी होती हैं लेकिन ये हॉल छोटा है – इतना छोटा कि पदभार ग्रहण समारोह और शपथ ग्रहण समारोह के लिए जगह कम पड़ जाती है.

केंद्रीय गुंबद के ठीक नीचे है ये हॉल 
दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन के सबसे भव्य कमरों में एक है, ये विशाल केंद्रीय गुंबद के नीचे ठीक नीचे बना बना मुख्य हॉल है. 1947 में देश की आजाद की रात जवाहरलाल नेहरू ने यहीं देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. फिर 1950 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने यहीं राष्ट्रपति पद की शपथ ली.

यहीं फखरुद्दीन अली अहमद का पार्थिव शरीर भी रखा गया
यही वो स्थान भी है, जहां फरवरी 1977 में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का पार्थिव शरीर रखा गया. यहीं पर सरकार दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी करती है. यहीं पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 107 वर्षीय सालूमरदा थिमक्का से आशीर्वाद प्राप्त किया, जिन्हें ‘वृक्ष माथे’ के नाम से जाना जाता है.

इस कक्ष का प्रभाव सम्मोहित करने वाला
ये 42 फीट ऊंची संगमरमर की दीवारों वालों से घिरा गोलाकार कक्ष है. ब्रिटिश वास्तुकला के विशेषज्ञ क्रिस्टोफर हसी ने 1953 में अपनी किताब द लाइफ ऑफ सर एडविन लुटियंस में लिखा, “इस हॉल का प्रभाव जबरदस्त और पूरी तरह से खामोश करने वाला और तुरंत सम्मोहित करने वाला होता है.

दो टन का बेल्जियम ग्लास का झूमर लटकता है
ये हॉल पीले जैसलमेर संगमरमर के स्तंभों से घिरा हुआ है, जिसके शीर्ष और आधार सफ़ेद हैं. अटारी में 12 संगमरमर की जालियों से हॉल में सूरज का प्रकाश आता है. फर्श मकराना और अलवर के सफ़ेद संगमरमर और इटली से आयातित गहरे चॉकलेटी रंग के संगमरमर का मिश्रण है. इन सबके बीच दो टन का बेल्जियम ग्लास का झूमर नीचे चमकता है.

ये कक्ष कुछ छोटा है
1970 के दशक में शपथ ग्रहण समारोहों के लिए दरबार हॉल का उपयोग कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था. तब कहीं बड़े अशोक हॉल का इस्तेमाल किया जाने लगा. हालांकि अंग्रेज वाइसरायों को भी लगता था कि ये हॉल कुछ छोटा है.

जब नेहरू ने यहां शपथ ली…
जब नेहरू ने दरबार हॉल में शपथ ली थी, तो राष्ट्रपति भवन के विशाल प्रांगण के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी थी, जो परिसर के अंदर जाने की कोशिश कर रही थी. हाल ही में, 2014 और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिपरिषद ने शपथ ग्रहण समारोह दरबार हॉल के बजाय राष्ट्रपति भवन के खचाखच भरे प्रांगण में आयोजित किए गए थे. अब इस हॉल को गणतंत्र मंडप के नाम से जाना जाएगा. हालांकि पहले इसे सिंहासन कक्ष के नाम से ही जाना जाता था, जब सी. राजगोपालाचारी ने 1948 में इसमें भारत के गर्वनर जनरल की शपथ ली, तब शायद उन्होंने ही इसका नाम दरबार हॉल रख दिया.

शानदार पेंटिंग्स 
इस कक्ष में दीवार के सामने लाल मखमली पृष्ठभूमि पर भगवान बुद्ध की 5वीं शताब्दी की मूर्ति रखी गई है. इस मूर्ति के सामने राष्ट्रपति की कुर्सी रखी गई है। पहले इस स्थान पर दो सिंहासन रखे जाते थे, एक वायसराय और दूसरा वायसरीन के लिए. इस हॉल के गलियारे में देशभर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों द्वारा गढ़ी गई पूर्व भारतीय राष्ट्रपतियों की प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं. इसमें कई शानदार पेंटिंग्स भी लगी हैं. राष्ट्रपति भवन के सबसे आकर्षक और अलंकृत कमरों में से एक अशोक हॉल है.

अशोक हॉल कभी था बॉलरूम 
अब आइए अशोक हॉल के बारे में भी जान लेते हैं, इसका नाम अब अशोक मंडप हो गया है. वैसे भारतीय स्थापत्यकला के संदर्भ में स्तंभों पर खड़े बाहरी हाल को मंडप कहते हैं, जिसमें कई तरह कार्यकलाप होते हैं. अशोक हाल का इस्तेमाल वायसराय के दौर में स्टेट बॉलरूम के रूप में होता था, ये बड़ा हॉल है. अशोक हॉल का उपयोग विदेशी देशों के मिशन प्रमुखों द्वारा परिचय पत्र प्रस्तुत करने और राष्ट्रपति द्वारा आयोजित राजकीय भोज के लिए भी होता रहा है.

इसकी छत और फर्श का अलग आकर्षण
इस कमरे की छत और फर्श दोनों का अपना अलग आकर्षण है. फर्श पूरी तरह से लकड़ी का बना है. इसकी सतह के नीचे स्प्रिंग लगे हैं. अशोक हॉल की छतें तेल चित्रों से सजी हैं.

यहां फारस के शासक की बड़ी सी पेंटिंग
छत के बीच में चमड़े की एक पेंटिंग है, जिसमें फतह अली शाह का घुड़सवार चित्र है, जो फारस के सात कजर शासकों में दूसरे थे, अपने बाइस बेटों के साथ एक बाघ का शिकार कर रहे हैं. यह पेंटिंग, जिसकी लंबाई 5.20 मीटर और चौड़ाई 3.56 मीटर है. हालांकि लेडी विलिंगटन को ये पेंटिंग पसंद नहीं थी. ये भी सम्मोहित कर देने वाला हॉल है. अशोक हॉल में कई उल्लेखनीय कलाकृतियां हैं. जो बहुमूल्य हैं. कहा जाता है अशोक हाल में जो कालीन बिछा है, उसको बनाने में दो साल तक 500 बुनकर लगे थे. ये कालीन गहरे लाल रंग का है. फूल और पेड़ों की आकृतियां हैं.

साभार : न्यूज़18

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