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सूडान में सत्ता के संघर्ष के गृह युद्ध में बदलने के बाद अब तक लाखों लोगों की हो चुकी है हत्या

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खार्तूम. सूडान साल 2023 से गृह युद्ध की आग में जल रहा है. इसकी शुरुआत दो प्रतिद्वंद्वी जनरल के बीच झगड़े से हुई और गृह युद्ध एक भीषण संघर्ष में बदल गया. इस दौरान व्यापक पैमाने पर नरसंहार हो चुका है. दोनों ही ओर के लाखों लोग मारे जा चुके हैं. इससे भी कई गुना ज्यादा लोग गृह युद्ध से प्रभावित हुए हैं. सूडान से बड़ी संख्या में लोग पड़ोसी देशों में पलायन कर चुके हैं.

इन सबके बीच आरोप लग रहा है कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) सूडान गृह युद्ध में एक पक्ष को समर्थन देकर दूसरे के खिलाफ हिंसा के लिए भड़का रहा है. सूडानी सेना ने अंतरराष्ट्रीय अदालत में यूएई के खिलाफ मामला भी दर्ज कराया था, पर उसे खारिज कर दिया गया. आइए जान लेते हैं कि सूडान में नरसंहार की असली कारण क्या है और यूएई क्यों पर्दे के पीछे से खेल कर रहा है?

सत्ता के लिए दो जनरलों की जंग

सूडान में लंबे समय तक तानाशाह रहे उमर अल बशीर को महीनों चले विरोध प्रदर्शनों के बाद साल 2019 में सत्ता से हटाकर सेना ने नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया था. सेना ने देश में लोकतंत्र लाने का वादा किया था पर इसे पूरा नहीं किया गया. तब सूडानी शस्त्र बल (एसएएफ) के जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान और अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) के कमांडर मोहम्मद हमदान दगालो (हेमदती) सहयोगी थे.

हालांकि, साल 2023 आते-आते सूडान की सत्ता पर कब्जे के लिए ये दोनों दुश्मन बन गए. इनके बीच संघर्ष के कारण सूडान में गृह युद्ध शुरू हुआ जो अब तक का सबसे भीषण मानवीय संकट बन चुका है और लाखों लोग मारे जा चुके हैं. कम से कम 1.2 करोड़ लोग विस्थापित हो चुके और करीब 2.5 करोड़ लोग खाने-पीने की वस्तुओं की कमी के कारण अकाल जैसी स्थिति झेल रहे हैं.

सेना और अर्धसैनिक बल के अपने-अपने दावे

एक ओर सूडानी सेना जहां सत्ता पर फिर से नियंत्रण करने और देश को बचाने की कोशिश में लगी है. वहीं, सेना ने आरएसएफ को आतंकवादी करार दिया है. सूडान की सेना का देश के उत्तरी क्षेत्र और लाल सागर तट के अधिकतर हिस्से पर कब्जा है. दूसरी ओर, अर्धसैनिक बल आरएसएफ देश के हाशिए पर पड़े क्षेत्रों और लोकतंत्र की स्थापना के लिए लड़ने का दावा कर रहा है. हालांकि, आरएसएफ का व्यवहार किसी मिलिशिया साम्राज्य की तरह है. आरएसएफ ने व्यापारियों पर टैक्स लगा दिया है. खदानों का दोहन करवा रहा है और लोगों को डरा रहा है.

नरसंहार के बाद अल फशर पर आरएसएफ का कब्जा

सूडान में चल रहे इस खूनी संघर्ष में एक और अहम मोड़ 26 अक्तूबर 2025 को तब आया, तब करीब डेढ़ साल की घेराबंदी के बाद दारफूर में स्थित सेना के अंतिम गढ़ अल फशर पर आरएसएफ ने कब्जा कर लिया. अल जजीरा की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की सत्ता पाने के लिए सूडान की सेना से लड़ ही आरएसएफ ने 26 अक्तूबर 2025 तक केवल तीन दिनों में कम से कम 1500 लोगों का कत्ल-ए-आम किया है. जान बचाने के लिए शहर छोड़कर भाग रहे लोगों पर भी हमला किया गया. सूडान के गृह युद्ध पर नजर रख रहे सूडान डॉक्टर्स नेटवर्क का दावा है कि आरएसएफ की ओर से किया गया यह असली नरसंहार है.

इस बीच येल विश्वविद्यालय ने उत्तरी दारफुर के इस सूडानी शहर अल फशर की सैटेलाइट से ली गईं तस्वीरें जारी की हैं. इनमें अल फशर की जमीन खून से लाल दिख रही है. सैटलाइट की तस्वीरों में 27 अक्तूबर (2025) को आरएसएफ की गाड़ियां और टी-55 टैंक दारफूर में दिखाई दे रहे हैं.

घर में घुसकर लोगों की हत्या, औरतों का रेप

अल फशर शहर उत्तरी दारफूर की राजधानी है. यहां पर आठ लाख से ज्यादा लोग रहते थे. 18 महीनों तक आरएसएफ की घेराबंदी के बाद यहां दवा, खाना और पानी जैसी मूलभूत चीजों की कमी हुई तो शहर छोड़कर लोग भागने लगे. पिछले महीनों ही आरएसएफ ने यहां कब्जा किया था और अब यहीं पर नरसंहार की बात सामने आई है. यूएन के रिलीफ को-ऑर्डिनेटर टॉम फ्लेचर ने सिक्योरिटी काउंसिल को बताया है कि अल फशर में घर-घर जाकर लोगों का कत्ल किया जा रहा है. औरतों और लड़कियों का ब्लात्कार हो रहा है. यहां का आखिरी बड़ा हॉस्पिटल भी आरएसएफ ने बर्बाद कर दिया है.

एक और विभाजन की आशंका

इस महत्वपूर्ण शहर पर कब्जे के बाद आशंका गहराने लगी है कि एक बार फिर सूडान का विभाजन हो सकता है. इससे पहले 2011 में सूडान के मुस्लिम बहुल उत्तरी हिस्से और ईसाई-अश्वेत बहुल दक्षिणी हिस्से के बीच संघर्ष हुआ था. इसका नतीजा सूडान विभाजन के रूप में सामने आया था और दक्षिणी सूडान का गठन हुआ था.

सत्ता के साथ ही जातीय जंग

कहा जा रहा है कि सूडान का संघर्ष केवल गृह युद्ध या सैन्य लड़ाई नहीं, बल्कि अब सत्ता और संसाधन के साथ जातीय दुश्मनी की जंग बन चुकी है. आरएसएफ जहां अरब जनजातियों से जुड़ा है, वहीं, एसएफ गैर अरब समुदायों का समर्थन करता है. ह्यूमन राइट्स वॉच का भी दावा है कि यह जातीय हिंसा है. अल फशर शहर में गैर अरब मसालित जनजाति को निशाना बनाया जा रहा है. दूसरी ओर आरएसएफ के मुखिया हेमदती ने कहा है कि बेकसूरों की हत्या हुई है तो इसकी जांच होगी.

यूएई पर उठ रहीं उंगलियां

कुछ रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि विदेशी शक्तियां भी भी इस युद्ध को बढ़ावा दे रही हैं. सूडान की सेना को मिस्र का समर्थन मिला है. वह नील नदी में अस्थिरता के भय से सूडान की आधिकारिक सेना का समर्थन करता है. ईरान और तुर्किये भी सेना के साथ थे पर अब मिश्रित भूमिका में दिख रहे हैं. यूएई और लीबिया आरएसएफ को समर्थन दे रहे हैं.

सूडान का आरोप है कि यूएई इस युद्ध में आरएसएफ का समर्थन कर रहा है. सूडान का दावा है कि यूएई कथित तौर पर आरएसएफ को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है. साथ ही भाड़े के सैनिकों की भर्ती में भी मदद की है. यूएई की ओर से आरएसएफ को दी गई सैन्य और वित्तीय सहायता से ही गैर अरब समुदायों, खासकर दारफूर में मसालित लोगों की सामूहिक हत्या की गई. इसके साथ ही जबरन विस्थापन और यौन हिंसा को भी वहां हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया.

अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य सारा जैकब्स ने भी यूएई पर दोष मढ़ा है. ह्यूमन राइट्स वाच के पूर्व कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ ने एक्स पर लिखा है कि यूएई को बेचे गए ब्रिटेन के हथियार सूडान में मिल रहे हैं. यूएई वहां आरएसएफ को नरसंहार के लिए हथियार दे रहा है.

यूएई आरोपों से कर रहा इनकार

वहीं, यूएई इन आरोपों का खंडन करता रहा है. सूडान ने इस मामले में यूएई के खिलाफ मुकदमा किया तो हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला था कि यह मामला आगे नहीं बढ़ सकता, क्योंकि यूएई ने नरसंहार कन्वेंशन के अनुच्छेद-9 से बाहर रहने का विकल्प चुना है. इसका मतलब यह है कि अन्य देश यूएई पर नरसंहार के आरोपों को लेकर कोई मुकदमा नहीं चला सकते.

साभार : टीवी9 भारतवर्ष

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