जम्मू. जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में स्थित तुलमुल्ला गांव के खीर भवानी मंदिर में इन दिनों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। ज्येष्ठ अष्टमी के मौके पर शुरू हुए खीर भवानी मेले ने एक बार फिर इस मंदिर को सुर्खियों में ला दिया है। कश्मीरी पंडितों के लिए यह मंदिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से बेहद खास है। हाल ही में कई बड़े नेताओं के दौरे और आतंकी हमले के बावजूद भक्तों की अटूट आस्था ने इस मंदिर की महत्ता को और बढ़ा दिया है। आइए, इस मंदिर के इतिहास, महत्व, हाल के दौरे, और चर्चा में होने की वजहों पर एक नजर डालें।
क्यों चर्चा में है खीर भवानी मंदिर?
खीर भवानी मंदिर इस साल कई वजहों से चर्चा में है। सबसे बड़ी वजह है ज्येष्ठ अष्टमी (3 जून 2025) पर आयोजित होने वाला वार्षिक खीर भवानी मेला, जिसमें देशभर से कश्मीरी पंडित और अन्य भक्त शामिल हो रहे हैं। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भी भक्तों का हौसला कम नहीं हुआ। इसके अलावा, मंदिर में हाल ही में कई बड़े नेताओं के दौरे ने भी इसे सुर्खियों में रखा है। यह मेला कश्मीरी पंडितों की सांस्कृतिक पहचान को फिर से स्थापित करने का प्रतीक बन रहा है, जो कश्मीर घाटी से विस्थापित हुए लोगों के लिए बेहद अहम है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भी मेले की तैयारियों और नेताओं के दौरे की खबरें वायरल हो रही हैं।
इस साल कौन-कौन से नेता मंदिर गए?
इस साल खीर भवानी मंदिर में कई प्रमुख नेताओं ने दर्शन किए हैं:
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा: 3 जून 2025 को ज्येष्ठ अष्टमी के मौके पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन्होंने शांति, समृद्धि और सभी नागरिकों की खुशहाली के लिए प्रार्थना की।
डॉ. कर्ण सिंह: 2 जून 2025 को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और एक जमाने में जम्मू-कश्मीर के सदर-ए-रियासत रहे डॉ. कर्ण सिंह ने मंदिर में दर्शन किए। उन्होंने मेले की तैयारियों की समीक्षा की और इसे संतोषजनक बताया। उन्होंने भक्तों से खीर भवानी मेला और अमरनाथ यात्रा में हिस्सा लेने की अपील की।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला: 20 मई 2025 को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने वरिष्ठ अधिकारियों और स्थानीय नेताओं के साथ मंदिर में पूजा की। कश्मीरी पंडितों के लिए इस मंदिर के गहरे आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए उनके इस दौरे को काफी अहम माना गया।
PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती: जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने भी 3 जून 2025 को खीर भवानी मंदिर में पूजा-अर्चना की।
कब हुआ था मंदिर का निर्माण?
खीर भवानी मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। यह मंदिर माता रागन्या देवी (दुर्गा का एक रूप) को समर्पित है, जिन्हें खीर भवानी के नाम से पूजा जाता है। मंदिर तुलमुल्ला गांव में एक पवित्र झरने के पास बना है, जिसके पानी का रंग बदलना माता का चमत्कार माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब देश या क्षेत्र में कोई विपदा आने वाली होती है, तो झरने का पानी काला या लाल हो जाता है। मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में हुआ था, लेकिन इसका धार्मिक महत्व बहुत पुराना है। श्रद्धालुओं का मानना है कि माता खीर भवानी कश्मीर की रक्षक हैं। यह मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है, और विस्थापन के बाद भी वे हर साल इस मेले में हिस्सा लेने आते हैं।
मंदिर की क्यों है इतनी मान्यता?
खीर भवानी मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और भावनात्मक पहचान का प्रतीक है। यहां भक्त खीर (दूध से बनी मिठाई) चढ़ाते हैं, जो माता को प्रिय है, और इसी वजह से मंदिर का नाम ‘खीर भवानी’ पड़ा। मंदिर का पवित्र झरना भक्तों के लिए चमत्कारी माना जाता है। झरने के पानी का रंग बदलना भविष्य की घटनाओं का संकेत माना जाता है, जो मंदिर की रहस्यमयी शक्ति को और बढ़ाता है। यह मंदिर कश्मीरी पंडितों के लिए एकजुटता का प्रतीक है, खासकर 1990 के दशक में घाटी से उनके विस्थापन के बाद। हर साल ज्येष्ठ अष्टमी पर होने वाला मेला उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इस मेले में हजारों भक्त शामिल होते हैं, जो अपनी आस्था और संस्कृति को जीवित रखने का संदेश देता है।
साभार : इंडिया टीवी
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