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अडानी पावर ने बिहार में 2,400 मेगावाट का भागलपुर पावर प्रोजेक्ट जीता

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पटना. अदाणी समूह की कंपनी अदाणी पावर लिमिटेड (Adani Power Ltd.) ने बिहार सरकार के 2,400 मेगावॉट भागलपुर बिजली परियोजना का टेंडर जीत लिया है. कंपनी ने यह सफलता एक बोली प्रक्रिया में हासिल की, जहां कंपनी ने टॉरेंट पावर और जेएसडब्ल्यू एनर्जी के साथ तीन दूसरे बिडर्स की तुलना में सबसे कम बिजली टैरिफ की पेशकश की.

अदाणी समूह द्वारा 30,000 करोड़ रुपए के निवेश से विकसित किया जा रहा भागलपुर (पीरपैंती) पावर प्रोजेक्ट ऐतिहासिक महत्व रखता है. यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह बिहार के लिए भारत के विकास के ग्रिड से जुड़ने और औद्योगिक प्रगति में अपना हिस्सा हासिल करने का अवसर है.

बोली की अहम बातें

  • बिहार सरकार ने राज्य की बढ़ती बिजली मांग को पूरा करने के लिए यह ओपन टेंडर जारी किया था, जिसकी मांग 2034-35 तक दोगुना होकर 17,000 मेगावॉट से अधिक होने का अनुमान है.
  • अदाणी पावर ने 6.075 रुपये प्रति kWh (यूनिट) की सबसे कम बिजली रेट कोट की.
  • इस रेट में 4.165 रुपये प्रति यूनिट फिक्स्ड चार्ज और 1.91 रुपये प्रति यूनिट फ्यूल चार्ज शामिल है.
  • राज्य सरकार ने इस टैरिफ को ‘अत्यधिक प्रतिस्पर्धी’ बताया है, खासकर इसलिए क्योंकि हाल ही में मध्य प्रदेश में हुई एक समान बोली में फिक्स्ड चार्ज इससे ज्यादा (₹4.222 से ₹4.298 प्रति kWh) थे.
बोलीदाता बोली दर (प्रति यूनिट)
अदाणी पावर ₹6.075
टॉरेंट पावर ₹6.145
ललितपुर पावर ₹6.165
जेएसडब्ल्यू एनर्जी ₹6.205

बिहार के लिए परियोजना का आर्थिक महत्व

  • इस परियोजना में अदाणी समूह के लगभग ₹30,000 करोड़ का निवेश किए जाने की योजना है. यह निवेश बिहार के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है:
  • क्षेत्र में होने वाला यह बड़ा निवेश औद्योगिक गतिविधि को बढ़ावा देगा और क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर में हर ₹1 करोड़ का निवेश लगभग 200-250 व्यक्ति-वर्ष का रोजगार पैदा करता है.
  • बिहार आज लगभग 3.4 करोड़ कामगारों को दूसरे राज्यों में भेजता है. इसके युवा दूसरी जगहों पर आजीविका तलाशने को मजबूर हैं क्योंकि राज्य के भीतर उद्योगों विकसित करने की क्षमता नहीं है. यह प्रोजेक्ट बिहार में विश्वसनीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करेगा, जो औद्योगिक विकास और स्थानीय लोगों के पलायन को रोकने के लिए अहम है.

परियोजना लिखेगी प्रदेश की नई कहानी

बिहार में आधी सदी से निजी औद्योगिक गतिविधियां न के बराबर रही हैं. पिछले पांच वर्षों में यहां लगभग कोई भी नई बड़े पैमाने की परियोजनाएं नहीं लगी हैं. राज्य की कृषि पर निर्भरता अभी भी उच्च स्तर पर है और इसकी लगभग 50 प्रतिशत कार्यशील आबादी खेती, वानिकी या मछली पकड़ने में लगी है, जबकि केवल 5.7 प्रतिशत लोग ही विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं. ऐसे में यह परियोजना प्रदेश की नई कहानी लिखने में मददगार साबित हो सकती है.

साभार : एनडीटीवी

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