जयपुर, 21 दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय गौ सेवा प्रमुख अजीत महापात्र ने कहा कि वर्तमान समय में गौ सेवा को भावनात्मक नहीं, बल्कि नीतिगत, सामाजिक और व्यवहारिक आधार पर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। गौ संरक्षण केवल गौशालाओं तक सीमित न रहकर घर, मंदिर, कृषि और सरकारी नीतियों से जुड़ा विषय बनना चाहिए।
रविवार को पाथेय कण संस्थान के नारद सभागार में आयोजित हस्तीमल जी स्मृति ईश्वर सृष्टि सम्मान एवं अमृतमयी गौ भारती ग्रंथ के विमोचन समारोह में उन्होंने कहा कि देश में बड़ी संख्या में गौभक्त, संत, मठ-मंदिर और गौशालाएं मौजूद हैं, इसके बावजूद देशी गौवंश की स्थिति चिंताजनक है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि गौशालाओं में देशी गौवंश और विदेशी नस्लों के पशुओं की स्पष्ट पहचान की जाए तथा उनके लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं हों। देशी गौवंश के संरक्षण और संवर्धन को प्राथमिकता देना सरकार का दायित्व है।
उन्होंने कहा कि कृषि, दुग्ध उत्पादन और धार्मिक अनुष्ठानों में गौ आधारित उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों और कृत्रिम संसाधनों के स्थान पर प्राकृतिक एवं जैविक खेती को अपनाने से न केवल स्वास्थ्य, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
उन्होंने समाज से आह्वान किया कि गौ सेवा को जन आंदोलन का स्वरूप दिया जाए। गौ सम्मान से जुड़े कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार तक मांग-पत्र पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है, ताकि नीतिगत स्तर पर ठोस निर्णय हो सकें। गौ आधारित जीवनशैली अपनाने से देश की सांस्कृतिक पहचान मजबूत होगी और आत्मनिर्भर भारत बनेगा।
उन्होंने कहा कि गौ माता केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और सामाजिक संतुलन से जुड़ा आधार स्तंभ है। समाज और सरकार, दोनों को मिलकर गौ संरक्षण के लिए दीर्घकालिक और प्रभावी कदम उठाने होंगे।
आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रदीप शेखावत ने हस्तीमल जी के जीवन के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि संघ के प्रचारक का जीवन पूर्ण समर्पण, अनुशासन और त्याग पर आधारित होता है। प्रचारक समाज के बीच रहकर स्वयं को पीछे रखता है और दूसरों को मार्गदर्शन देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यपद्धति में प्रचारक संगठन की इच्छा और योजना को सर्वोपरि मानते हुए कार्य करता है। यह जीवन व्यक्तिगत इच्छाओं के त्याग और राष्ट्रहित को सर्वोच्च मानने की भावना से जुड़ा होता है। संघ कार्य का पहला आयाम संगठन को जीना है। प्रचारक का जीवन इसी विचारधारा का जीवंत उदाहरण है, जो समाज निर्माण और राष्ट्र सेवा में निरंतर प्रेरणा प्रदान करता है।
निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर श्यामशरण देवाचार्य जी ने कहा कि गौ माता के बिना सनातन संस्कृति और सृष्टि की कल्पना संभव नहीं है। आज के समय में गौ सेवा को केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक और वैज्ञानिक दृष्टि से अपनाने की आवश्यकता है। शास्त्रों के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी गौ आधारित उत्पादों की उपयोगिता और स्वास्थ्यवर्धक गुणों को स्वीकार कर रहा है। भारतीय गौवंश और ए-2 दुग्ध की वैश्विक मांग इसका प्रमाण है। उन्होंने कहा कि महानगरों में रहने वाले लोग भी गौ संरक्षण, संवर्धन और जागरूकता के माध्यम से गौ सेवा में योगदान दे सकते हैं। गौ सेवा को राष्ट्र, समाज और पर्यावरण के कल्याण से जुड़ा विषय बताते हुए इसे जनआंदोलन बनाने का आह्वान किया।
सीकर के चंद्रमादास महाराज जी को श्री हस्तीमल जी स्मृति ईश्वर सृष्टि सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में ईश्वर सृष्टि के अध्यक्ष कमलेश पारीक ‘कमल’ ने ईश्वर सृष्टि प्रकल्प, अमृतमयी गौ भारती ग्रंथ और नंदिनी गौ सेवा संवर्धन संस्थान के संबंध में जानकारी दी। समारोह के अंत में आयोजन समिति के संयोजक पुष्कर उपाध्याय ने आभार ज्ञापित किया।
साभार : विश्व संवाद केंद्र
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