शुक्रवार, दिसंबर 05 2025 | 11:37:10 PM
Breaking News
Home / अंतर्राष्ट्रीय / शिव मंदिर के लिए भिड़े कंबोडिया और थाईलैंड, अंतरराष्ट्रीय कोर्ट भी दे चुका है दखल

शिव मंदिर के लिए भिड़े कंबोडिया और थाईलैंड, अंतरराष्ट्रीय कोर्ट भी दे चुका है दखल

Follow us on:

बैंकाक. दक्षिण पूर्व एशिया के दो पड़ोसी मुल्कों की सेना आमने-सामने आ चुकी है। दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव अब सैन्य संघर्ष में बदल चुका है। हम बात कर रहे हैं भारत से करीब 5,000 किलोमीटर दूर थाईलैंड और कंबोडिया की। इस संघर्ष में अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है। सवाल ये है कि दोनों देश आखिर लड़ क्यों रहे हैं? जवाब है एक प्रीह विहार मंदिर  (Preah Vihear Temple dispute) पर अपना अधिकार हासिल करने के लिए। दोनों देशों के बीच कई सालों से सीमा विवाद का मुद्दा चल रहा है।

सीमा विवाद की वजह

दरअसल, फ्रांस ने 1863 से लेकर 1953 तक कंबोडिया पर शासन किया था। फ्रांस ने ही दोनों देशों के बीच 817 किलोमीटर की लंबी सीमा निर्धारित की थी। नक्शे के मुताबिक, डांगरेक पर्वत श्रृंखला पर स्थित प्रीह विहियर मंदिर को कंबोडियाई इलाके में शामिल किया गया था, जिसपर थाईलैंड ने आपत्ति जताई थी। मंदिर विवाद समय के साथ गहराता चला गया। 1907 में फ्रांस ने दोनों देशों के बीच सीमा बनाया था। नक्शे के मुताबिक, 11 वीं शताब्दी के प्रीह विहियर मंदिर को कंबोडियाई क्षेत्र में दिखाया गया। फ्रांस के फैसले पर कंबोडिया ने नाराजगी जाहिर की। इसके बाद कंबोडिया के मैदान पर हावी पठार के किनारे बन भगवान शिव को समर्पित प्रीह विहार मंदिर को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद की शुरुआत हो गई। सिर्फ मंदिर ही नहीं, सीमा के आसपास के कई इलाके ऐसे हैं, जिस पर दोनों देश अपना दावा करते आए हैं।

क्या है मंदिर का इतिहास?

जानकारों की मानें तो मंदिर को 9वीं से 11वीं सदी के दौरान बनाया गया था। शुरूआती समय में यहां पर भगवान शिव की पूजा होती थी, लेकिन बाद में यह बौद्ध धार्मिक परिसर में तब्दील हो गया। यह मंदिर उस ऐतिहासिक खमेर साम्राज्य के समय का है, जिसकी सीमाएं आधुनिक कंबोडिया के अलावा थाईलैंड के कुछ हिस्सों तक फैली थीं।मंदिर के सटे इलाके पर दोनों देश अपना दावा करता आए हैं।  थाईलैंड का दावा है कि यह उसका सुरीन प्रांत का हिस्सा है। वहीं, कंबोडिया इसे अपना हिस्सा मानता है।

जब ICJ पहुंचा था मंदिर का मुद्दा

कंबोडियो ने मंदिर विवाद का मुद्दा साल 1959 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में घसीटा। कोर्ट ने फैसला कंबोडिया के पक्ष में सुनाया। भले ही थाईलैंड ने उस समय फैसले को स्वीकार कर लिया लेकिन साथ ही यह कहा कि मंदिर के आसपास की सीमाएं अभी भी विवादित हैं। इसके बाद साल 2008 में मंदिर का मुद्दा और भड़क उठा। इस साल यूनेस्को (UNESCO) ने मंदिर को विश्व धरोहर यानी हेरिटेज साइट का दर्जा दे दिया। थाईलैंड का आरोप था कि उसके देश के ऐतिहासिक धरोहरों को छीना जा रहा है। साल 2011 में दोनों देशों के बीच जबरदस्त संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में 18 लोगों की मौत हुई। वहीं, हजारों लोग विस्थापित हुए। इसके बाद मंदिर विवाद को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट का रुख किया। 2013 में इंटरनेशनल कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मंदिर के आसपास वाली जमीन पर कंबोडिया का अधिकार होना चाहिए।

बात करें ताजा संघर्ष की तो गुरुवार सुबह थाईलैंड के सुरीन प्रांत और कंबोडिया के ओद्दार मीनची प्रांत की सीमा पर दोनों तरफ से फायरिंग हुई। थाईलैंड की सेना ने कहा है कि मंदिर के पास के इलाके में कंबोडिया ने भारी हथियारों से लैस सैनिकों को भेजा है। थाईलैंड ने ये भी कहा था कि कंबोडिया ने क्षेत्र में सर्विलांस ड्रोन भी भेजा था।कोबंडियाई सरकार ने दावा किया कि थाई प्रांत सुरिन और कंबोडिया के ओद्दार मीनची के बीच के बॉर्डर पर दो मंदिरों के पास गुरुवार सुबह फिर से हिंसा भड़क उठी। समाचार एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक, थाईलैंड ने उबोन रत्चथानी से छह F-16 जेट विमान दागे और कंबोडिया के दो सैन्य ठिकानों पर हमला किया। जवाब में कंबोडिया ने सुरिन प्रांत में रॉकेट और तोपखाने दागे।

कंबोडिया ने क्या दावा किया?

कंबोडिया के रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता माली सोचीता ने एक बयान में कहा, “थाई सेना ने देश के संप्रभु क्षेत्र की रक्षा के लिए तैनात कंबोडियाई बलों पर सशस्त्र हमला करके कंबोडिया साम्राज्य की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन किया है। जवाब में कंबोडियाई सशस्त्र बलों ने थाई घुसपैठ को विफल करने और कंबोडिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार पूर्ण आत्मरक्षा के अपने वैध अधिकार का प्रयोग किया।” थाईलैंड की सेना ने इस संघर्ष के लिए कंबोडियाई सैनिकों को दोषी ठहराया। दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि थाईलैंड के दूतावास ने अपने नागरिकों से कंबोडिया छोड़ने का आग्रह किया है। थाईलैंड ने कहा कि सभी नागरिक जितनी जल्दी हो कंबोडिया छोड़ दें। कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि मंदिर को लोगों ने अभिमान का मुद्दा बना लिया है।

साभार : दैनिक जागरण

भारत : 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि) व/या भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं

सारांश कनौजिया की पुस्तकें

ऑडियो बुक : भारत 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि)

मित्रों,
मातृभूमि समाचार का उद्देश्य मीडिया जगत का ऐसा उपकरण बनाना है, जिसके माध्यम से हम व्यवसायिक मीडिया जगत और पत्रकारिता के सिद्धांतों में समन्वय स्थापित कर सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें आपका सहयोग चाहिए है। कृपया इस हेतु हमें दान देकर सहयोग प्रदान करने की कृपा करें। हमें दान करने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें -- Click Here


* 1 माह के लिए Rs 1000.00 / 1 वर्ष के लिए Rs 10,000.00

Contact us

Check Also

रूस के राष्ट्रपति के साथ जॉइंट प्रेस वक्तव्य के दौरान प्रधानमंत्री का प्रेस वक्तव्य

Your Excellency, My Friend, राष्ट्रपति पुतिन, दोनों देशों के delegates, मीडिया के साथियों, नमस्कार! “दोबरी …