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सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा पर फैसला रखा सुरक्षित

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नई दिल्ली. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से दाखिल याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है. जस्टिस दीपंकर दत्ता और एजी मसीह की बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को लेकर सवाल उठाए थे. जस्टिस वर्मा की याचिका में सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी गई है. जस्टिस वर्मा की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें पेश की जबकि वहीं वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने मामले पर सुनवाई टालने की मांग करते हुए कहा कि इस पर अगले हफ्ते सुनवाई की जानी चाहिए. लेकिन कोर्ट ने सुनवाई जारी रखी. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि आपने मुझे संवैधानिक मुद्दों पर बिंदु तैयार करने को कहा था, जो मैंने तैयार कर लिए हैं. जस्टिस वर्मा की याचिका में कहा गया कि तीन जजों की आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार दिया जाए.

पद से हटाने की सिफारिश असंवैधानिकः सिब्बल

साथ ही उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता तथ्य परखने की प्रक्रिया के लिए वैध तंत्र के रूप में आंतरिक जांच प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे रहे हैं, बशर्ते कि वह प्रक्रिया कार्यवाही की शुरुआत की ओर न ले जाए. जस्टिस संबंधित जस्टिस को न्यायिक कार्य आवंटित नहीं करने का निर्देश देने के मुख्य न्यायाधीश के अधिकार को भी चुनौती नहीं देते. साथ ही कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि आंतरिक जांच समिति का जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश करना असंवैधानिक है. साथ ही कोर्ट की ओर से जांच समिति की रिपोर्ट के खिलाफ पहले आने से जुड़े सवाल पर सिब्बल ने कहा, कि जस्टिस वर्मा ने पहले संपर्क नहीं किया क्योंकि टेप जारी हो चुका था और उनकी छवि पहले ही खराब हो चुकी थी.

SC ने याचिका पर उठाया था सवाल

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा से उनकी उस याचिका को लेकर सवाल किए, जिसमें उन्होंने घर से कैश बरामदगी मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी. कोर्ट ने जस्टिस से सवाल किया कि इस प्रक्रिया में भाग लेने के बाद अब वह इस पर सवाल कैसे उठा सकते हैं. आंतरिक जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आवास से कैश बरामदगी मामले में उन्हें कदाचार का दोषी पाया था. यह घटना मार्च की है, तब उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में जले हुए नोट मिले थे. इस दौरान जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस थे.

याचिका में जस्टिस वर्मा की पहचान नहीं

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी. मसीह की बेंच ने जस्टिस वर्मा से सवाल किया कि वह जांच पूरी होने और फिर रिपोर्ट जारी होने तक का इंतजार क्यों कर रहे थे. बेंच ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से कई सवाल पूछे, “वह जांच समिति के सामने क्यों पेश हुए? आपने जांच पूरी होने और रिपोर्ट जारी होने का इंतजार क्यों किया? क्या आप कोर्ट इसलिए आए थे कि वीडियो हटा दिया जाए? क्या आप जांच समिति के समक्ष यह सोचकर आए थे कि फैसला आपके पक्ष में आ सकता है?” इस सवाल पर सिब्बल ने कहा कि जांच समिति के सामने पेश होना उनके (जस्टिस वर्मा) खिलाफ नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा, “वह इसलिए उपस्थित हुए, क्योंकि उन्हें लगा कि समिति यह पता लगाएगी कि कैश किसका है.” शीर्ष अदालत जस्टिस वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार देने का अनुरोध किया गया है क्योंकि इस रिपोर्ट में उन्हें कदाचार का दोषी पाया गया है. दाखिल याचिका में जस्टिस वर्मा की पहचान का खुलासा नहीं किया गया है और इस केस का टाइटल है, “एक्स एक्स एक्स बनाम भारत संघ.”

तत्कालीन CJI की सिफारिश रद्द करने की मांग

साथ ही बेंच ने यह भी कहा, “यह याचिका ऐसे दायर नहीं की जानी चाहिए थी. आप देखें कि यहां पक्षकार रजिस्ट्रार जनरल है, न कि महासचिव. पहला पक्षकार सुप्रीम कोर्ट है, क्योंकि आपकी शिकायत जांच प्रक्रिया के खिलाफ है. हम वरिष्ठ वकील से यह अपेक्षा नहीं करते कि वह केस के टाइकल पर गौर करेंगे.” जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना की ओर से 8 मई को की गई उस सिफारिश को भी रद्द किए जाने का अनुरोध किया, जिसमें उन्होंने (CJI खन्ना) संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की बात कही थी.

साभार : टीवी9 भारतवर्ष

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