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वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी की शंका के बीच मजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था

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– प्रहलाद सबनानी

कोरोना महामारी के बाद पूरे विश्व में, विशेष रूप से विकसित देशों में, लगातार तेजी से बढ़ रही मुद्रा स्फीति (महंगाई) को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में की जा रही वृद्धि के चलते अब इन देशों में आर्थिक मंदी आने की सम्भावना व्यक्त की जाने लगी है। आर्थिक मंदी से तात्पर्य वस्तुओं के मंहगे होते जाने से इनकी मांग में कमी होना एवं आर्थिक विकास की दर का स्थिर हो जाना अथवा कुछ समय के लिए इसके ऋणात्मक हो जाने से है। यह स्थिति किसी भी देश के लिए अच्छी नहीं मानी जा सकती है क्योंकि आर्थिक चक्र के रुक जाने से वस्तुओं का उत्पादन कम होने लगता है और रोजगार के अवसर भी कम होने लगते हैं जिससे बेरोजगारी की समस्या और भी गम्भीर होने लगती है। आर्थिक गतिविधियों के कम हो जाने से सरकारों की आय में कमी होने लगती है एवं सरकारों को अपने तंत्र को चलाने के लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एक विकसित देश में आर्थिक मंदी यदि लम्बे समय तक चले तो यह छुआछूत की बीमारी की तरह इस देश के साथ विदेशी व्यापार करने वाले अन्य देशों के माध्यम से पूरे विश्व को भी अपनी चपेट में ले सकती है।

कुछ देशों में आर्थिक मंदी की गम्भीर शंका व्यक्त की जा रही है परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों में लगातार सुधार देखा जा रहा है। यह केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों (विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, आदि) द्वारा लिए जा रहे आर्थिक निर्णयों के चलते एवं विभिन्न स्तरों पर सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचा विकसित करने के उद्देश्य से लगातार बढ़ाए जा रहे पूंजीगत व्यय तथा सामाजिक सेवाओं में लगातार किए जा रहे सुधार के कारण सम्भव हो रहा है। बीते 8 वर्षों में केंद्र सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया है। इन 8 वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा विकास और सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों पर लगभग 100 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2021-22 के बीच केंद्र सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए 26 लाख करोड़ का पूंजीगत व्यय किया गया है। भोजन, उर्वरक और ईंधन सब्सिडी के लिए 25 लाख करोड़ रुपए और सामाजिक सेवाओं पर 10 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की गई है जो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 6.6 प्रतिशत की रही थी। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों यथा कृषि, उद्योग एवं सेवा में कोरोना महामारी के बाद से लगातार सुधार दृष्टिगोचर है। विनिर्माण के क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2021-22 में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह ऋणात्मक 0.6 प्रतिशत रही थी। इसी प्रकार खनन के क्षेत्र में 11.5 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की गई है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में ऋणात्मक 8.6 प्रतिशत रही थी। न केवल वित्तीय वर्ष 2021-22 में इन क्षेत्रों में वृद्धि दर अच्छी रही है बल्कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के अप्रेल एवं मई माह में भी यह तेजी बनी हुई है। देश के प्रमुख 8 कोर उद्योगों की वृद्धि में जबरदस्त उच्छाल आया है। कोर क्षेत्र में अप्रेल 2022 के 9.3 प्रतिशत की तुलना में मई 2022 में 18.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

जबकि मार्च 2022 में यह वृद्धि दर 4.9 प्रतिशत की रही थी। वाणिज्य और उद्योग विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, मई 2022 माह में कोयला उद्योग में 25.1 प्रतिशत (अप्रेल 2022 माह में 28.8 प्रतिशत), उर्वरक उद्योग में 22.8 प्रतिशत (8.7 प्रतिशत), सीमेंट उद्योग में 26.3 प्रतिशत (8 प्रतिशत), बिजली क्षेत्र में 22 प्रतिशत (10.7 प्रतिशत), रिफाइनरी क्षेत्र के उत्पादन में 16.7 प्रतिशत (9.2 प्रतिशत), प्राकृतिक गैस के उत्पादन में 7 प्रतिशत और स्टील उत्पादन में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में अब केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों का ध्यान रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित करने की ओर है। सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रेल 2022 माह में देश में 88 लाख लोगों को रोजगार मिला है।

यह कोरोना महामारी के बाद से किसी भी एक माह में सर्वाधिक नौकरियों की संख्या है। इससे  देश में कुल श्रम शक्ति बढ़कर 43.72 करोड़ हो गई है। उद्योग जगत के अंदर विनिर्माण क्षेत्र में 30 लाख नए रोजगार सृजित हुए, जबकि कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में लगभग 40 लाख नए रोजगार प्राप्त हुए। इसी प्रकार आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2022-23 में रोजगार के ढेरों अवसर निर्मित होने वाले हैं। केवल दो कम्पनियों टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज और इंफोसिस ने 90,000 इंजीनियरों की भर्ती करने की योजना बनाई है। इसी प्रकार, अन्य कम्पनियों द्वारा भी भारी मात्रा में रोजगार के नए अवसर निर्मित किए जा रहे हैं। देश में आजकल रोजगार के प्रकार में भी बदलाव देखने में आ रहा है। छोटे छोटे प्राजेक्ट्स में छोटी अवधि के लिए पेशेवर/अनुभवी/कुशल लोगों के लिए रोजगार के अवसर निर्मित हो रहे हैं, एवं परियोजना के पूर्ण होते ही रोजगार भी समाप्त हो जाता है, इसे “गिग” अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

नीति आयोग के अनुसार भारत में वर्ष 2030 तक गिग अर्थव्यवस्था में 2.35 करोड़ लोगों को रोजगार मिलने की सम्भावना है जबकि वित्तीय वर्ष 2020 में 68 लाख व्यक्ति इस क्षेत्र में कार्यरत थे। विभिन्न सरकारी संस्थानों में भी खाली पड़े पदों को भरने का कार्य जोरशोर से शुरू किया जा रहा है एवं लगभग 10 लाख नई भर्तियां शीघ्र ही की जा रही है। केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय द्वारा हाल ही में लागू की गई अग्निपथ योजना के माध्यम से भी आगे आने वाले समय में रोजगार के लाखों अवसर निर्मित होने वाले हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अंतर्गत  14 क्षेत्रों में 2.34 लाख करोड़ रुपए के निवेश के नए प्रस्ताव मिले हैं। जिससे स्थापित की जा रही इन नई विनिर्माण इकाईयों के माध्यम से उत्पादन बढ़ने के साथ साथ रोजगार के नए  अवसर भी बढ़ेंगे। केंद्र सरकार के अनुसार इस योजना से अगले 5 वर्षों में 60 लाख 45 हजार नई नौकरियां उत्पन्न होंगी।

विभिन्न देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए जा रहे हैं जिससे इन देशों को भारत से निर्यात बढ़ेंगे और भारत में ही उत्पादन की गतिविधियां बढ़ेंगी। अभी हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और आस्ट्रेलिया से यह समझौते लागू किए गए हैं एवं यूरोपीयन यूनियन एवं अमेरिका से भी चर्चाएं जारी हैं। ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के 14वें शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स बिजनेस फोरम को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत में बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था, बुनियादी क्षेत्रों का विकास, बढ़ते स्टार्ट अप्स, ड्रोन, हरित ऊर्जा और अंतरिक्ष सहित हर क्षेत्र में नवाचार ने भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि महामारी से उत्पन्न आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए भारत ने सुधार और परिवर्तन का मंत्र अपनाया हुआ है। जिससे वर्ष 2025 तक भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी।

डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ साथ भारत ने पिछले 8 वर्षों के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भी सबसे तेज वृद्धि दर्ज की है। वर्ष 2014 से भारत ने सौर ऊर्जा में 18 गुना से अधिक वृद्धि दर्ज की है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा में 1.97 गुना वृद्धि दर्ज की है। वर्ष 2013 में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता 27,542 मेगावाट थी जो 8 वर्षों में 156,608 मेगावाट हो गई है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी प्रकार भारत ने आगामी 8 वर्षों में अपनी स्थापित बिजली का 40 प्रतिशत हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, आगामी 8 वर्षों में भारत में सौर और पावन ऊर्जा की संयुक्त स्थापित क्षमता 51 प्रतिशत हो जाएगी, जो अभी 23 प्रतिशत है। भारत की अर्थव्यवस्था लगातार सुदृढ़ हो रही है यह इससे भी सिद्ध होता है कि देश का वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण जून 2022 में वार्षिक आधार पर 56 प्रतिशत बढ़ा है। सरकार को इस वित्त वर्ष जून 2022 में जीएसटी से कुल 1.44 लाख करोड़ की राशि प्राप्त हुई है। यह कलेक्शन के मामले में दूसरा सबसे अच्छा महीना है। इसके पहले मई 2022 में 1.41 लाख करोड़ रुपए की उगाही हुई थी।

लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.

लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.

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