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केद्र के अध्यादेश पर केजरीवाल का समर्थन नेहरू का विरोध : कांग्रेस नेता

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नई दिल्ली. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने कहा कि दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं से संबंधित केंद्र के अध्यादेश के विषय पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का समर्थन करने का मतलब पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर जैसे नेताओं के उन विवेकपूर्ण निर्णयों के खिलाफ खड़ा होना होगा जो उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी के संदर्भ में कभी लिए थे.

‘केजरीवाल इतनी अव्यवस्था क्यों फैला रहे हैं’
उन्होंने सवाल किया कि अगर दिल्ली के सभी पूर्व मुख्यमंत्री बिना कोई हंगामा किए अपनी भूमिका का निर्वहन करते रहे थे तो केजरीवाल इतनी अव्यवस्था क्यों फैला रहे हैं? दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष माकन ने यह बयान उस वक्त दिया है जब केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों से आग्रह किया है कि वे केंद्र के अध्यादेश से संबंधित विधेयक का संसद में विरोध करें. कांग्रेस के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने सोमवार को कहा था कि इस बारे में उनकी पार्टी ने अभी कोई निर्णय नहीं लिया है तथा समान विचार वाले दलों तथा कांग्रेस की राज्य इकाइयों से विचार-विमर्श करके ही कोई फैसला होगा.

‘केजरीवाल का समर्थन करके हम…’
माकन ने बयान में कहा, ‘‘केजरीवाल का समर्थन करके हम पंडित जवाहरलाल नेहरू और अपने कई अन्य सम्मानित नेताओं की ओर से समय-समय पर लिए गए विवेकपूर्ण निर्णयों के विरोध में खड़े नजर आएंगे…यदि इस अध्यादेश से जुड़ा विधेयक पारित नहीं होता है, तो केजरीवाल को एक अद्वितीय विशेषाधिकार प्राप्त होगा, जिससे शीला दीक्षित, मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज जैसे पूर्व के मुख्यमंत्रियों को वंचित रहना पड़ा था.’’

उनके मुताबिक, ‘‘दिल्ली में प्रशासन के जटिल मुद्दों पर विचार करते हुए बाबासाहेब आम्बेडकर के नेतृत्व में गठित एक समिति ने 21 अक्टूबर, 1947 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इस समिति की सिफारिशों के अनुसरण में पंडित नेहरू और सरदार पटेल ने दिल्ली को 1951 के एक अधिनियम के माध्यम से एक मुख्य आयुक्त के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत रखा. 1956 में राज्य पुनर्गठन समिति की रिपोर्ट की समीक्षा करने पर नेहरू ने मौजूदा विधान सभा को एक नगर निगम में बदल दिया, जिससे यह राजधानी क्षेत्र विधायी शक्तियों से रहित हो गया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘1964 में और फिर 1965 में प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री जी ने बिना विधायी शक्तियों के किसी प्रावधान के दिल्ली को एक महानगरीय परिषद प्रदान की. 1991 में नरसिंह राव जी ने दिल्ली के लिए प्रशासन के वर्तमान स्वरूप की स्थापना की तथा एलजी को ‘कार्य संचालन नियमों’ के माध्यम से अधिकारियों को स्थानांतरित और पद स्थापित करने की सभी शक्तियां प्रदान कीं.’’

‘जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर केजरीवाल ने बीजेपी का समर्थन किया’

माकना का कहना है कि आजादी के बाद से किसी भी प्रधानमंत्री ने दिल्ली की निर्वाचित सरकार को अधिकारियों को स्थानांतरित और पदस्थापित करने की शक्तियां प्रदान नहीं की. उन्होंने कहा, ‘‘केजरीवाल ने कांग्रेस पार्टी का समर्थन मांगा है. हालांकि, उनकी कुछ पिछली राजनीतिक गतिविधियां सवालों के घेरे में हैं. उनकी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के साथ एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से हमारे प्रिय नेता राजीव गांधी जी से भारत रत्न वापस लेने का अनुरोध किया. केजरीवाल ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह बीजेपी का समर्थन किया.’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘केजरीवाल ने विभिन्न आरोपों पर भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने के दौरान भी बीजेपी का समर्थन किया. केजरीवाल विवादास्पद किसान विरोधी कानूनों को लागू करने वाले पहले व्यक्ति थे. आम आदमी पार्टी ने गुजरात, गोवा, हिमाचल, असम, उत्तराखंड में बीजेपी की मदद की.’’ उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले का पैरा 95 केंद्र सरकार को कानून में संशोधन करने की अनुमति प्रदान करता है.

अजय माकन ने कहा, ‘‘केजरीवाल का समर्थन करना और अध्यादेश का विरोध करना अनिवार्य रूप से पंडित नेहरू, बाबासाहेब आम्बेडकर, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव के नैसर्गिक विवेक और निर्णयों के विरुद्ध खड़ा होने जैसा होगा.’’ केंद्र ने आईएएस और दानिक्स कैडर के अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के लिए शुक्रवार को अध्यादेश जारी किया. यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर अन्य सेवाओं का नियंत्रण सौंपने के एक सप्ताह बाद आया.

साभार : एबीपी न्यूज़

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