नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग रिसर्च मामले में आज फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले को एसआईटी या सीबीआई को ट्रांसफर करने की मांग खारिज कर दी। इसके बजाय चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अगुवाई वाली बेंच ने मार्केट रेगुलेटर सेबी को अडानी ग्रुप पर लगे दो मामलों की जांच तीन महीने के भीतर पूरा करने का आदेश दिया। कोर्ट का फैसला रिपोर्ट्स की सत्यता के आंकलन और सेबी के न्याय क्षेत्र पर आधारित है। बेंच ने जॉर्ज सोरोस से जुड़ी संस्था ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर संदेह जताते हुए कहा कि स्वतंत्र रूप से आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकती है और इन्हें सही जानकारी नहीं माना जाना चाहिए। ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट्स में अडानी ग्रुप पर शेयरों की कीमत के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था।
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफपीआई से जुड़े नियमों में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। आरोप लगाया गया था कि अडानी ग्रुप ने शेयरों की कीमत बढ़ाने के लिए इन नियमों का सहारा लिया था। कोर्ट ने कहा कि इन नियमों को निरस्त करने का कोई ठोस आधार नहीं है। यानी इन नियमों में कोई खामी नहीं है। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने इन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी के सदस्यों पर हितों के टकराव का आरोप लगाया था लेकिन कोर्ट ने कहा कि इन दावों में कोई दम नहीं है। बार-बार इस तरह के आरोप लगाए गए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें खारिज करते हुए एसआईटी के सदस्यों की निष्पक्षता पर मुहर लगाई।
चीफ जस्टिस ने क्या कहा
चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि कोर्ट के पास सेबी के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में दखल देने का सीमित अधिकार है। उन्होंने कहा, ‘सेबी के नियामकीय ढांचे में दखल देने की इस अदालत की शक्तियां सीमित हैं।’ यह बयान सेबी जैसी नियामकीय संस्थाओं की स्वायतता और विशेषज्ञता के बारे में सुप्रीम कोर्ट की सोच को दिखाता है। कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी के सदस्यों के हितों के टकराव के बारे में भी याचिकाकर्ता की इस दलीलों को खारिज कर दिया। उसने कहा कि कानूनी कार्यवाही में ओसीसीआरपी की रिपोर्ट जैसी अपुष्ट थर्ड पार्टी रिपोर्ट्स पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने सेबी को अपनी जांच पूरी करने के साथ ही सरकार और मार्केट रेगुलेटर को यह आदेश भी दिया कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने कानून का कोई उल्लंघन तो नहीं किया है और अगर ऐसा कुछ हुआ है तो इस पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने साथ ही सुझाव दिया कि भारतीय निवेशकों के हितों को मजबूत करने के लिए कमेटी के सुझावों को लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए।
भविष्य के लिए नजीर है यह फैसला
यह फैसला भारतीय न्यायक्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर है। सुप्रीम कोर्ट ने सेबी जैसी नियामकीय संस्थाओं की विशेषज्ञता के प्रति सम्मान दिखाया है और उनके कार्यक्षेत्र में दखल देने से परहेज किया है। इस फैसले ने न केवल सेबी की अथॉरिटी को बरकरार रखा है बल्कि लीगल प्रॉसीडिंग्स में पुष्ट जानकारी की अहमियत को भी दिखाया है। इस फैसले ने भविष्य में आने वाले जटिल वित्तीय मामलों से जुड़े मामलों के लिए एक नजीर पेश की है।
साभार : नवभारत टाइम्स
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