जैसा कि हम पहले भी यह बता चुके हैं कि समय-समय पर देश के अलग-अलग भागों में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष होते रहे। ऐसा ही एक मुक्ति संग्राम महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में चलाया गया था। वासुदेव का जन्म 4 नवंबर 1845 को हुआ था। वो बहुत कम आयु में ही अंग्रेजों के किसानों पर हो रहे अत्याचारों से व्यथित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। उनका मानना था कि अंग्रेजों को देश से निकालकर यहां स्वराज्य स्थापित करने के बाद ही भारतीयों को राहत मिल पायेगी। इसके लिए उन्होंने सशस्त्र आंदोलन को चुना। फड़के छापामार युद्ध के सहारे अंग्रेजों पर हमले करते और उन्हें बड़ी हानि पहुंचा कर फिर गायब हो जाते। उन्होंने इस प्रकार के हमलों के लिए रामोशी के नाम से संगठन बनाकर नाईक, धनगर, कोली और भील आदि जातियों के लोगों को अपने साथ लिया था। इस मुक्ति संग्राम का परिणाम यह हुआ कि कुछ दिनों तक पुणे नगर उनके कब्जे में आ गया था। अंग्रेजों को यह पता चल चुका था कि वासुदेव बलवंत फड़के को युद्ध में हराना संभव नहीं है। इसलिए अंग्रेजों ने 1879 को बीजापुर में सोते समय पकड़कर उन्हें काला पानी की सजा सुना दी। यहां अंग्रेजों ने फड़के को इतने कष्ट दिए कि उन्हें 17 फरवरी 1883 वीरगति प्राप्त हुई।