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केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों में लेटरल एंट्री का विज्ञापन किया रद्द

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नई दिल्ली. लेटरल एंट्री से यूपीएससी के जरिए उच्च पदों पर नियुक्ति मामले में केंद्र सरकार ने यूटर्न ले लिया है. केंद्र में कार्मिक विभाग के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी को पत्र लिखकर फैसला वापस लेने के लिए कहा है. कहा जा रहा है कि सिंह के इस पत्र के बाद यूपीएससी नोटिफिकेशन वापस लेने का औपचारिक आदेश जारी करेगी. 3 दिन पहले यूपीएससी ने संयुक्त सचिव और निदेशक स्तर के 45 पदों के लिए लेटरल एंट्री से भर्ती का विज्ञापन निकाला था. यूपीएससी के इस विज्ञापन पर पूरे देश में बवाल मच गया. विपक्ष ने इस विज्ञापन को संविधान, दलित और आदिवासियों के हकमारी से जोड़ दिया. सरकार के सहयोगी दल भी इस पर खुलकर मैदान में उतर गए. आखिर में 72 घंटे तक चले रस्साकसी के बाद केंद्र ने इस आदेश को वापस लेने का ऐलान कर दिया.

72 घंटे में आदेश वापस, पढ़िए पूरी क्रोनोलॉजी

1. यूपीएससी ने जारी किया था नोटिफिकेशन

17 अगस्त 2024 को यूपीएससी ने लेटरल एंट्री को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी किया था. इस नोटिफिकेशन के मुताबिक केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में 10 संयुक्त सचिव स्तर के और 35 निदेशक और उपचसचिव स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति के लिए भर्ती का आवेदन मंगवाया गया था. आवेदन की आखिरी तारीख 17 सितंबर थी. सभी पदों का कार्यकाल 5 वर्षों का था. हालांकि, परफॉर्मेंस के आधार पर इसे बढ़ाने और घटाने का भी जिक्र किया गया था. लेटरल एंट्री के जरिए जिन विभागों में नियुक्तियां होनी थी. उनमें वित्त, इस्पात, कृषि, सूचना प्रसारण जैसे अहम विभाग को शामिल किया गया था. आयोग के नोटिफिकेशन के मुताबिक इन पदों के लिए न्यूनतम और अधिकतम आयु सीमा क्रमशः 40 और 55 वर्ष रखा गया है.

2. खरगे ने विरोध का झंडा उठाया

17 अगस्त को लेटरल एंट्री पर यूपीएससी का नोटिफिकेशन आने के तुरंत बाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसका विरोध किया. खरगे ने अपने पोस्ट में लिखा- मोदी सरकार ने केंद्र में संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव के कम से कम 45 पद लेटरल द्वारा भरने का विज्ञापन निकाला है. क्या इसमें एससी, एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण है? खरगे ने आगे लिखा- सोची समझी साजिश के तहत बीजेपी की सरकार जानबूझकर नौकरियों में ऐसे भर्ती कर रही है, ताकि आरक्षण से दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों को दूर रखा जा सके.

अगले दिन राहुल गांधी ने यूपीएससी के इस फैसले का विरोध जताया. राहुल ने कहा- नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जरिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल ने अपने पोस्ट में सेबी, संविधान, मोदी की गारंटी जैसे शब्द का प्रयोग करते हुए केंद्र के इस फैसले को संविधान विरोधी बताया. उन्होने कहा कि अगर इंडिया गठबंधन लेटरल एंट्री का विरोध करेगा.

3. उत्तर से दक्षिण तक शुरू हुआ विरोध

यूपीएएसी के इस नोटिफिकेशन का उत्तर भारत से लेकर दक्षिण तक विरोध शुरू हो गया. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कमीशन के इस फैसले असंवैधानिक बताया. लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी यूपीएससी नोटिफिकेशन का विरोध किया. अखिलेश ने कहा- बीजेपी अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाजे से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साजिश कर रही है, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अखिलेश ने फैसला वापस न लेने पर देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया था. तमिलनाडु की डीएमके ने भी लेटरल एंट्री का विरोध किया. तमिल के सीएम एमके स्टालिन ने कहा- लेटरल एंट्री सामाजिक न्याय पर सीधा हमला है, जो योग्य एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक अधिकारियों को शीर्ष पद पर जाने से वंचित करता है. केंद्र इस सिस्टम पर तुरंत रोक लगाए.

4. सहयोगियों ने भी शुरू कर दिया विरोध

विपक्षी दलों के साथ-साथ एनडीए के सहयोगी दलों ने भी लेटरल एंट्री से नियुक्ति सिस्टम का विरोध किया. केंद्र में मंत्री और लोजपा (आर) के प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि हम इस फैसले के विरोध में हैं और सही मंच पर इसे उठाएंगे. चिराग ने कहा कि सरकारी नौकरी में आरक्षण की जरूरत है और वो होनी चाहिए. बिहार से केंद्र में एक और मंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि कैबिनेट में इस मुद्दे को उठाया जाएगा. एनडीए की सरकार किसी के भी आरक्षण छीनने के पक्ष में नहीं है. यहां दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग को सम्मान मिल रहा है. जेडीयू भी सरकार के इस फैसले के विरोध में थी. जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा था कि इस फैसले से विपक्ष को एक मुद्दा मिल जाएगा. हम लोग शुरू से ही आरक्षण के हिमायती रहे हैं. सरकार को इस पर विचार करने की जरूरत है.

चुनाव में मुद्दा बनने का डर भी था

हरियाणा और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है. हरियाणा में अभी बीजेपी सरकार में है और यहां दलित और पिछड़े वर्ग की आबादी करीब 75 प्रतिशत है. हाल ही में लोकसभा चुनाव में संविधान बचाओ का मुद्दा बना था, जिसमें बीजेपी हरियाणा में हाफ हो गई थी. उसे 10 में सिर्फ 5 सीटों पर ही जीत मिली. चुनाव के वक्त में यूपीएससी के इस नोटिफिकेशन से पार्टी को फिर से संविधान का मुद्दा बनने का डर था. कांग्रेस यूपीएससी के इस आदेश को संविधान पर ही हमला बता रही थी. हरियाणा में कांग्रेस विपक्ष में है. कहा जा रहा है कि चुनावी वक्त में बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

साभार : टीवी9 भारतवर्ष

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