गुरुवार, नवंबर 14 2024 | 09:19:36 PM
Breaking News
Home / अंतर्राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय छात्रों की कमी के कारण ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों की हालत खराब

अंतरराष्ट्रीय छात्रों की कमी के कारण ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों की हालत खराब

Follow us on:

लंदन. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटीज को पैसे की कमी होने लगी है, जिसकी मुख्य वजह सरकार की अंतरराष्ट्रीय छात्रों को लेकर बनाई गई नीतियां हैं। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटीज को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में गिना जाता है। मगर वीजा प्रतिबंधों की वजह से अब कम संख्या में विदेशी छात्र यहां पढ़ने आ रहे हैं। इस वजह से यूनिवर्सिटीज को आर्थिक नुकसान हो रहा है। चार साल पहले यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के बाद से ये समस्या और बढ़ गई है।

2022 में ब्रिटेन की यूनिवर्सिटीज में 7,60,000 विदेशी छात्र पढ़ाई कर रहे थे। विदेश में पढ़ाई के मामले अमेरिका के बाद ब्रिटेन दूसरा सबसे लोकप्रिय देश रहा है। ब्रिटेन में पढ़ने आने वाले ज्यादातर छात्र भारत, चीन और नाइजीरिया से हैं। इन देशों से लाखों छात्र ब्रिटेन में पढ़ने आ रहे थे। मगर पिछले साल से स्टूडेंट वीजा में पांच फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। इस साल जुलाई से सितंबर के बीच, पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में स्टूडेंट वीजा एप्लिकेशन में 16% की कमी आई है।

ब्रिटिश छात्रों से ज्यादा फीस देते हैं विदेशी छात्र

छात्रों की संख्या में गिरावट ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के लिए चिंता की बात है, क्योंकि विदेशी छात्र ब्रिटिश छात्रों की तुलना में ज्यादा फीस देते हैं। 20 वर्षीय लियो ज़ुई चीन से हैं। उन्होंने सितंबर में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में जनसंख्या और स्वास्थ्य विज्ञान की पढ़ाई शुरू की। विदेश में दाखिला लेने के बारे में उन्होंने कहा, “यह मेरे करियर के लिए अच्छा है।” उनकी फीस 31,000 पाउंड (33 लाख रुपये) है। इंग्लैंड की यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाले ब्रिटिश छात्र 2017 से अधिकतम 9,250 पाउंड (10 लाख रुपये) फीस दे रहे हैं।

विदेशी छात्रों पर निर्भर हैं ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज

लेबर सरकार ने ऐलान किया है कि अगले साल से इंग्लैंड में पढ़ने वाले ब्रिटिश छात्रों को 9,535 पाउंड फीस भरनी पड़ेगी। यूनिवर्सिटीज सरकार के फैसले से खुश हैं। 141 ब्रिटिश उच्च शिक्षा संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले यूनिवर्सिटीज यूके (UUK) ने सितंबर में अपने सम्मेलन में चेतावनी दी थी कि प्रति छात्र फंडिंग 2004 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर है। इसका अनुमान है कि महंगाई की वजह 9,250 पाउंड की फीस की कीमत 6,000 पाउंड से कम है, जिससे पढ़ाने और रिसर्च में घाटा हो रहा है।

UUK की अध्यक्ष सैली मैपस्टोन ने सम्मेलन में कहा, “हम सभी आर्थिक तंगी महसूस कर रहे हैं।” बजट के अंतर को पूरा करने के लिए यूनिवर्सिटीज ने और अधिक विदेशी छात्रों को एडमिशन दिया है, यहां तक कि कई तो आर्थिक रूप से उन पर निर्भर हैं। एक संसदीय रिपोर्ट के अनुसार, लंदन यूनिवर्सिटी ऑफ आर्ट्स और ब्रिटिश राजधानी के ठीक उत्तर में स्थित एक विज्ञान और इंजीनियरिंग संस्थान, क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी में आधे से ज्यादा छात्र विदेशी हैं।

फाइनेंशियल टाइम्स ने इस साल की शुरुआत में रिपोर्ट दी थी कि यॉर्क सहित कुछ यूनिवर्सिटीज ने विदेशों से अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए अपने एलिजिबिलिटी क्राइटीरिया को आसान बनाया है। इन यूनिवर्सिटीज में जबसे विदेशी छात्रों ने पढ़ने आना बंद किया है, तब से ही इन्हें आर्थिक रूप से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

साभार : नवभारत टाइम्स

भारत : 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि) व/या भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं

सारांश कनौजिया की पुस्तकें

मित्रों,
मातृभूमि समाचार का उद्देश्य मीडिया जगत का ऐसा उपकरण बनाना है, जिसके माध्यम से हम व्यवसायिक मीडिया जगत और पत्रकारिता के सिद्धांतों में समन्वय स्थापित कर सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें आपका सहयोग चाहिए है। कृपया इस हेतु हमें दान देकर सहयोग प्रदान करने की कृपा करें। हमें दान करने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें -- Click Here


* 1 माह के लिए Rs 1000.00 / 1 वर्ष के लिए Rs 10,000.00

Contact us

Check Also

चीन अपने नागरिकों के लिए पाकिस्तान में तैनात करना चाहता है अपने सुरक्षाकर्मी

बीजिंग. पाकिस्तान में लगातार चीनी नागरिकों पर बढ़ रहे हमलों की वजह से अब ड्रैगन …