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20,000 करोड़ रुपये के समुद्री क्षेत्र निवेश कोष के साथ समुद्री विकास निधि को मंजूरी दी गई

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में समुद्री क्षेत्र के सामरिक और आर्थिक महत्व को स्वीकार करते हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज भारत के जहाज निर्माण और समुद्री इको-सिस्टम को पुनर्जीवित करने के लिए 69,725 करोड़ रुपये के एक व्यापक पैकेज को मंज़ूरी दी। यह पैकेज घरेलू क्षमता को मजबूत करने, दीर्घकालिक वित्तपोषण में सुधार करने, ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड शिपयार्ड विकास को बढ़ावा देने, तकनीकी क्षमताओं और कौशल को बढ़ाने के साथ-साथ एक मज़बूत समुद्री इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने हेतु कानूनी, कराधान और नीतिगत सुधारों को लागू करने के लिए डिजाइन किए गए चहुंमुखी पहल को प्रस्तुत करता है।

इस पैकेज के तहत, जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (एसबीएफएएस) को 31 मार्च 2036 तक बढ़ाया जाएगा और इसकी कुल राशि 24,736 करोड़ रुपये होगी। इस योजना का उद्देश्य भारत में जहाज निर्माण को प्रोत्साहित करना है और इसमें 4,001 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ एक शिपब्रेकिंग क्रेडिट नोट भी शामिल है। सभी पहलों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय जहाज निर्माण मिशन भी स्थापित किया जाएगा।

इसके अलावा, इस क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करने हेतु 25,000 करोड़ रुपये की राशि के साथ समुद्री विकास निधि (एमडीएफ) को मंजूरी दी गई है। इसमें भारत सरकार की 49 प्रतिशत भागीदारी वाला 20,000 करोड़ रुपये का समुद्री निवेश कोष और ऋण की प्रभावी लागत कम करने तथा परियोजना की बैंकिंग क्षमता में सुधार हेतु 5,000 करोड़ रुपये का ब्याज प्रोत्साहन कोष शामिल है। इसके अलावा, 19,989 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय वाली जहाज निर्माण विकास योजना (एसबीडीएस) का उद्देश्य घरेलू जहाज निर्माण क्षमता को सालाना 4.5 मिलियन सकल टन भार तक बढ़ाना, मेगा जहाज निर्माण समूहों को सहायता प्रदान करना, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करना, भारतीय समुद्री विश्वविद्यालय के अंतर्गत भारत जहाज प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना करना और जहाज निर्माण परियोजनाओं के लिए बीमा सहायता सहित जोखिम कवरेज प्रदान करना है।

इस समग्र पैकेज से 4.5 मिलियन सकल टन भार की जहाज निर्माण क्षमता का विकास होने, लगभग 30 लाख रोजगार सृजित होने और भारत के समुद्री क्षेत्र में लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है। अपने आर्थिक प्रभाव के अलावा, यह पहल महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं और समुद्री मार्गों में अनुकूलन लाकर राष्ट्रीय, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत करेगी। यह भारत की भू-राजनीतिक दृढ़ता और रणनीतिक आत्मनिर्भरता को भी सुदृढ़ करेगा, आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाएगा और भारत को वैश्विक नौवहन एवं जहाज निर्माण के क्षेत्र में एक प्रतिस्पर्धी शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।

भारत का एक लंबा और गौरवशाली समुद्री इतिहास रहा है, जिसमें सदियों पुराना व्यापार और समुद्री यात्रा इस उपमहाद्वीप को दुनिया से जोड़ती रही है। आज, समुद्री क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है, जो देश के लगभग 95 प्रतिशत व्यापार को मात्रा के हिसाब से और 70 प्रतिशत मूल्य के हिसाब से सहारा देता है। इसके मूल में जहाज निर्माण है, जिसे अक्सर “भारी इंजीनियरिंग की जननी” कहा जाता है, जो न केवल रोज़गार और निवेश में महत्वपूर्ण योगदान देता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, रणनीतिक स्वतंत्रता और व्यापार एवं ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं के अनुकूलन को भी बढ़ाता है।

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