मनोरंजन डेस्क (मा.स.स.). विवादित फिल्म निदेशक लीना मणिमेकलाई लगातार हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हैं. इसके बाद भी माफ़ी मांगने के स्थान पर वो इसे सही साबित करने का प्रयास भी कर रही हैं. जब विभिन्न हिन्दू संगठन इस पर अपनी आपत्ति व्यक्त करते हैं, तो वो सुरक्षित माहौल न होने का आरोप लगाती हैं.
लीना ने हाल ही में अपनी एक फिल्म काली का विवादित पोस्टर शेयर किया था. इसके बाद चारों ओर इसका विरोध होने लगा. लेकिन कुछ लोग समर्थन में भी आये और इसे क्रियेटिविटी कह कर बचाव किया. खुद को मिले इस समर्थन से उत्साहित लीना ने इस बार भगवान शिव और माता पार्वती का अभिनय करने वाले कलाकारों का धुम्रपान करते हुए फोटो शेयर किया. उन्होंने लिखा कि हिन्दू देवी-देवताओं का अभिनय करने वाले कलाकार इसी प्रकार चिल (मस्ती) करते हैं.
उन्होंने एक अन्य पोस्ट में लिखा कि जिस तरह उनका विरोध हो रहा है, वो कहीं भी सुरक्षित अनुभव नहीं कर रही हैं. नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले लोगों के गले काटे जा रहे हैं. नूपुर समर्थक हिन्दुओं को जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. लेकिन फिर भी हिन्दू शोषण करने वाले हैं. लीना कनाडा में हैं और वो अब भारतीय नागरिक भी नहीं हैं. ऐसे में भारत से इतनी दूर लीना जैसे लोग सुरक्षित माहौल की मांग कर रहे हैं. साथ ही यह भी लिखते हैं कि वो अपना विरोध करने वालों से डरते नहीं हैं.
यदि नूपुर शर्मा दावा करे कि मुस्लिमों के धार्मिक ग्रंथ हदीस में पैगंबर के बारे में ऐसा-ऐसा लिखा है, तो इसे नबी का अपमान माना जाता है. लेकिन अपनी बात को सही साबित करने के लिए लगातार हिन्दू धर्म का अपमान करना सही है. यदि हम यह अपेक्षा रखते हैं कि हिन्दू किसी दूसरे संप्रदाय के बारे में ऐसा न बोले या लिखे, जिससे उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस लगे. तो फिर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को क्यों आहत किया जाता है. वो मान्यताएं सही हैं या गलत इस पर क्यों बहस की जाती है या तर्क दिया जाता है. ऐसी विवादित बातों को क्रियेटिविटी या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बाम पर प्रोत्साहित क्यों किया जाता है?
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