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ऊर्जा ,संस्कृति, पर्यटन, और पवित्रता है उत्तराखंड की थाती, पर अभी भी विकास की राह देख रहा है पहाड़

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डॉ  घनश्याम बादल

22 साल पहले 9 नवंबर, 2000 को देश के सत्ताईसवें राज्य के रूप में उत्तरांचल नाम से आज के उत्तराखंड का जन्म पहाड़ को पहचान दिलाने  व विकसित करने के सपने के साथ हुआ , शुरु में केवल 10 जिले थे जो बाद में बढ़कर 13 हो गए इनमें से 7 गढ़वाल में, देहरादून , उत्तरकाशी , पौड़ी , नई टिहरी , चमोली , रूद्रप्रयाग और हरिद्वार और 6 कुमाऊँ मंडल में हैं जिनमें अल्मोड़ा , रानीखेत , पिथौरागढ़ , चम्पावत , बागेश्वर और उधमसिंहनगर शामिल हैं जबकि और तीन जिलों की मांग पूरी करना अभी भी शेष है ।  उत्तराखंड की संस्कृति संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृतियों में मानी जा सकती है। इस भूमि की पवित्रता एवं प्राकृतिक विशेषता के कारण ही इसे देवभूमि का विशेषण दिया गया है ।

पौराणिक ग्रन्थों में यह क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर को बताया गया है । कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे।

देवभूमि है उत्तराखंड ‌ :

हिमालय पर्वत की बर्फ से अच्छादित चोटियाँ तथा ऋतुओं के परिवर्तन के अद्वितीय सौंदर्य को देखकर देवता भी यही अभिलाषा रखते हैं कि वे अपना निवास इसी पवित्र धरती को बनाएं। देवभूमि के विशेषण से विख्यात  इस प्रदेश के निवासी ईमानदार, शांत स्वभाव, निश्छल, कर्मशील एवं ईश्वर प्रेमी हैं। 55845 कि. मी. में फैले उत्तराखंड में लगभग एक करोड़ जनसंख्या निवास करती है।

दिलकश प्रकृति, पवित्र तीर्थ  :

उत्तराखंड मेंं बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चारों धाम भारतीय संस्कृति के समन्वय की अद्भुत मिसाल हैं, ये चारों धाम भारतवासियों के ही नहीं विश्व जनमास के श्रद्धा व विश्वास के धर्म स्थल हैं। यहाँ भिन्न- भिन्न प्रजातियों के पशु-पक्षी, गंगा, यमुना, काली, रामगंगा, भागीरथी, अलकनन्दा, कोसी, गोमती, टौंस, मंदाकिनी, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर , नयार आदि छोटी- बड़ी साफ़ सुथरी नदियां हैं । प्राकृतिक झरने, बाँस, बुरांस, देवदार के आसमान छूते उच्च वृक्ष हैं और पर्वत चोटियों पर सिद्धपीठ, प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर शहर, हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे धार्मिक नगर, गंगा जैसी पवित्र नदियाँ अपनी कल-कल ध्वनि करती हुई युगों से लाखों जीवों की प्राण रक्षा का भार उठाते हुए सम्पूर्ण मलिनताओं को धोते हुए अंतिम गंतव्य तक पंहुचती हैं।

अति प्राचीन  इतिहास:

उत्तराखंड का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मानव जाति का। यहाँ कई शिलालेख, ताम्रपत्र व प्राचीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। जिससे गढ़वाल की प्राचीनता का पता चलता है। गोपेश्नर में शिव-मंदिर में एक शिला पर लिखे गये लेख से ज्ञात होता है कि कई सौ वर्ष से यात्रियों का आवागमन इस क्षेत्र में होता आ रहा है। मार्कण्डेय पुराण, शिव पुराण, मेघदूत व रघुवंश महाकाव्य में यहाँ की सभ्यता व संस्कृति का वर्णन हुआ है। बौधकाल, मौर्यकाल व अशोक के समय के ताम्रपत्र भी यहाँ मिले हैं।

आर्य भूमि

उत्तराखंड की मूल जातियों में किरात, यक्ष, गंधर्व, नाग, खस, नाथ आदी जातियों का विशेष उल्लेख मिलता है। आर्यों की एक श्रेणी गढ़वाल में आई थी जो खस कहलाई। यहाँ की कोल भील, जो जातियाँ थी कालांतर में स्वतंत्रता प्राप्ति के बात हरिजन कहलाई। देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग यात्री के रूप में बद्रीनारायण के दर्शन के लिए आए उनमें से कुछ यहाँ बस गये और उत्तराखंड को अपना स्थायी निवास बना लिया।

समृद्ध लोकसंस्कृति:

उत्तराखंड की संस्कृति उत्तराखंड की में संगीत का एक अहम स्थान रहा है। यहां के लोक गीत, लोक गाथायें, वाद्य, नृत्य इत्यादि यहां के जीवन का अभिन्न अंग हैं। इन लोक गीत को जब यहां के परम्परागत वाद्यों हुड़का, बादी, औजी, मिरासी, डौर-थाली आदि के तान के साथ जब गाया जाता है तो अद्भुत समां बंध जाता है। यह लोकगीत जीवन के हर पहलू से जुड़े हुए हैं इसी आधार पर इनको कुछ भागों में विभाजित किया जा सकता है जैसे – संस्कार गीत, धार्मिक गीत, ऋतु गीत इत्यादि।

लटका राजधानी का  प्रश्न :

देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है,  राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। महज 22 साल में ही 9 मुख्यमंत्री व पांच राज्यपाल देखने वाले उत्तराखंड में आज पहाड़वाद व प्लेनवाद की पीड़ादायी कसक इसके विकास में बाधक बनी है ।

विकास की राह देख रहे पहाड़

पहाड़ आज भी विकास की राह देख रहे हैं तो मैदानी लोग मूलनिवास आदि के लिए भेदभाव का खुला आरोप लगा रहे हैं । कभी गोविंद बल्लभ पंत जैसे आदर्श व हेमवतीनंदन बहुगुणा जैसे चतुर नेता देने वाले राज्य के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले नरायणदत्त तिवारी उपेक्षित होकर स्वर्ग सिधारे , तो लग्भग हर सरकार ने बस सपने दिए मगर पूरे कौन करेगा इस की प्रतीक्षा देख रहा है उत्तराखंड ।

कैसे रुकें पानी और जवानी?

आज उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार है , पुष्कर सिंह धामी  पर  नरेंद्र मोदी की खास कृपा है , भाजपा की सरकार है , पांचों सांसद उसी के हैं पर उत्तराखंड आज भी बजट के अभाव से जूझ रहा है , प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, पर विकास है कि गति नहीं पकड़ पा रहा है , सड़कें बदहाल हैं , कर्मियों की कमी है , उनमें असंतोष भी पनप रहा है , पहाड़ पर न डॉक्टर हैं न शिक्षक , सुविधाएं भी अपेक्षानुरूप नहीं हैं , पहाड़ का पानी व जवानी आज भी पलायन कर रहा है ।

छोटे और पहाडी राज्य की मांग पूरी हुए तो  22 साल हो गए पर अब तक हिमाचल व हरियाणा की तरह विकास क्यों नहीं हो पाया , पहाड़ पर पानी व जवानी क्यों नहीं रुके, पहाड़ पर विकास क्यों नहीं चढ़ा और मैदान असंतुष्ट क्यों है ? इन सारे प्रश्नों के उत्तराखंड आज भी मांग रहा है ।देखें कब तक युवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार उत्तराखंड के सपनों को साकार कर पाती है ?

लेखक उत्तराखंड निवासी वरिष्ठ स्तंभकार है.

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