नई दिल्ली (मा.स.स.). सॉफ्टवेयर से चलने वाले रेडियो (एसडीआर) के स्वदेशीकरण के लिए रक्षा मंत्रालय ने प्रक्रिया तेज कर दी है। अब देश का अग्रणी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, सशस्त्र बलों द्वारा की जाने वाली इन रेडियो की मांगों को पूरा करेंगे। सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील एसडीआर तकनीक और उत्पादों के लिए “समग्र उत्पाद जीवनचक्र प्रबंधन फ्रेमवर्क” की जरूरत है। इसके लिए स्वदेशी; डिज़ाइन, विकास, निर्माण, टेस्टिंग, प्रमाणन और प्रबंधन के परितंत्र की जरूरत होती है।
एसडीआर तकनीकी के स्वदेशीकरण को उच्च प्राथमिकता देते हुए रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार ने कहा कि सुरक्षित रेडियो संचार की दिशा में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह कोशिश महत्वपूर्ण साबित होगी। स्वदेशी एसडीआर तकनीकी के दो अहम तत्व- मानकीकृत ‘ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर एनवॉयरनमेंट (ओई)’ और एप्लीकेशन (जिन्हें वेवफॉर्म्स के नाम से भी जाना जाता है) हैं। इन एप्लीकेशन का वेवफॉर्म कोष और परीक्षण सुविधा केंद्रों से जुड़ा होना जरूरी है। मानकीकृत ओई होने से अलग-अलग विक्रेताओं के एसडीआर रेडियो में आपसी संचालन और ‘वेवफॉर्म पोर्टबिलिटी’ सुनिश्चित हो पाती है।
इस दिशा में रक्षा मंत्रालय ने भारत आधारित ऑपरेटिंग इकोसिस्टम से संबंधित चीजों की व्याख्या करने वाले ‘इंडिया सॉफ्टवेयर कम्यूनिकेशन आर्किटेक्चर (एससीए) प्रोफाइल या इंडियन रेडियो सॉफ्टवेयर आर्किटेक्चर” को लाने का फैसला किया है। रक्षा मंत्रालय द्वारा बनाई गई एससीए समिति के अध्यक्ष और आईआईटी कानपुर के निदेशक डॉ. अभय करनाडिकर ने “भारत एससीए प्रोफाइल” का विचार सामने रखा था। डीईएएल/डीआरडीओ ने एसडीआर के स्वदेशी विकास के लिए रोडमैप और समय-सीमा दर्शाने वाली ड्रॉफ्ट प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाई थी।
डीआरडीओ, अकादमिक व उद्योग जगत के साथ मिलकर, रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले ‘रक्षा उत्पादन में मानकीकरण’ के निदेशक (डीओएस) की निगरानी में आईआरएसए को विकसित किया जाएगा। इसके तहत तीन से छ: महीने में परिभाषा जारी की जाएगी, जबकि अगले 18 महीने संदर्भ व्याख्याएं, परीक्षण और अनिवार्य प्रमाणन उपकरणों को बनाने में दिए जाएंगे।
आईआरएसए की उपलब्धता से भारतीय सॉफ्टवेयर विक्रेताओं को एसडीआर उत्पादन, उन्हें आपस में क्रियान्वयन युक्त बनाने के साथ-साथ सुरक्षा पैमानों के स्तर योग्य एसडीआर के निर्माण में मदद मिलेगी। रक्षा मंत्रालय आईआरएसए को संसूचित करेगा और इसे औद्योगिक जगत के साथ साझा करेगा, ताकि भारतीय सुरक्षाबलों के उपयोग के लिए मानकीकृत एसडीआर का निर्माण हो पाए और मित्र देशों को इनका निर्यात किया जा सके।
विकास की इस प्रक्रिया में शामिल तीन संस्थान- डीईएएल/डीआरडीओ, आईआईटी-कानपुर और रक्षा मंत्रालय हैं, यह संस्थान डीपीआर के मुताबिक अपना काम शुरू कर चुके हैं। रक्षा सचिव डॉ. अजय पटेल ने सभी संस्थानों पर भरोसा जताया और कहा कि इससे अहम रक्षा उपकरणों के स्वदेशी निर्माण की दिशा में नए प्रतिमान स्थापित होंगे। अब तक इन उपकरणों को विदेश से ही आयात किया जाता रहा है। इससे ‘आत्मनिर्भरता’ की कोशिशों को बल मिलेगा और आयात का बजट कम होगा, साथ ही सशस्त्र बलों के लिए सुरक्षित रेडियो नेटवर्क का निर्माण भी हो पाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि एक निश्चित समयसीमा में इन सभी कोशिशों को पूरा किया जाएगा।