रायपुर. छत्तीसगढ़ में चुनावी साल चल रहा है। कांग्रेस और बीजेपी में शह-मात का खेल जारी है। इस बीच नेताओं के आने-जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। प्रदेश में बीजेपी का कद्दावर चेहरा सरगुजा क्षेत्र के आदिवासी नेता नंदकुमार साय की कांग्रेस में एंट्री हो चुकी है। वैसे तो साय ने खुद कहा है कि बीजेपी के लोग ही उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सियासी मामलों को समझना इतना आसान नहीं है। साय का कांग्रेस में शामिल होने के पीछे भी कई दांव-पेच हो सकते हैं। खासकर इसलिए भी कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के दमदार नेता टीएस सिंहदेव सरगुजा क्षेत्र से ही आते हैं। सूत्रों की माने तो सरगुजा में टीएस बाबा को कमजोर करने के लिए नंदकुमार साय की कांग्रेस में एंट्री कराई गई है।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समकक्ष कांग्रेस में दूसरा बड़ा चेहरा टीएस सिंहदेव हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार को चार साल से ज्यादा हो गया, लेकिन बघेल और सिंहदेव की अनबन में कभी कमी नहीं आई। इन चार वर्षों के दौरान ढाई-ढाई साल का फॉर्म्यूला लगातार चर्चा में रहा। साल 2023 के अंत में एक बार फिर से विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस पार्टी अंदरूनी रूप से तैयारियों में जुट गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भेंट मुलाकात कार्यक्रम के जरिये लगभग सभी जिलों का दौरा भी पूरा कर लिया है। इस बीच टीएस सिंहदेव कई बार मुख्यमंत्री बनने की इच्छा भी जाहिर कर चुके हैं। सूत्रों की माने तो सरगुजा क्षेत्र में इस बार कांग्रेस पार्टी कई बड़े उलटफेर कर सकती है। कुछ इसी तरह के उलटफेर का नतीजा भाजपा के सरगुजिया नेता नंदकुमार साय की कांग्रेस में एंट्री है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस साल होने वाले चुनाव में कांग्रेस पार्टी का पलड़ा अभी भले भारी दिख रहा हो, लेकिन जीत की की राह आसान नहीं है। बघेल इसका ध्यान रखते हुए राजनीतिक बिसात बिठाने में लगे हैं। सरगुजा, बस्तर, रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर संभागों के 90 विधानसभा सीटों पर क्या खेल खेला जाना है, इसकी योजना भी बनने लगी है। नंद कुमार साय की कांग्रेस में एंट्री इसी का एक हिस्सा है।
यह तय है कि टिकट बंटवारे के दौरान नंदकुमार साय सरगुजा क्षेत्र में अपने समर्थकों के लिए टिकट की मांग करेंगे। इससे टीएस सिंहदेव को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अब तक इस इलाके में वे पार्टी के अकेले प्रभावशाली नेता थे। सिंहदेव के समर्थकों की संख्या जितनी कम होगी, सीएम पद के लिए उनकी दावेदारी उतनी कमजोर होगी।
साभार : नवभारत टाइम्स
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं