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परषोत्तम रूपाला ने राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र में उष्ट्र उत्पाद प्रसंस्करण उपयोग एवं प्रशिक्षण प्रखंड का उद्घाटन किया

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जयपुर (मा.स.स.). केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परोषत्तम रूपाला ने कल बीकानेर, राजस्थान का दौरा किया और वहां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्र में ‘उष्ट्र उत्पाद प्रसंस्करण उपयोग एवं प्रशिक्षण प्रखंड’ का उद्घाटन किया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – बीकानेर एक प्रमुख अनुसंधान केंद्र है, जो कृषि और किसान मंत्रालय के अधीन कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के तहत स्वायत्तशासी संगठन के तौर पर काम करता है। शुष्क और अर्ध-शुष्क इलाकों में सामाजिक-आर्थिक विकास में ऊंट के महत्त्व पर विचार करते हुये भारत सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्त्वावधान में पांच जुलाई, 1984 को बीकानेर में उष्ट्र परियोजना निदेशालय की स्थापना की थी, जिसे बाद में 20 सितंबर, 1995 को राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र के रूप में उन्नत कर दिया गया था।

बीकानेर के महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थलों में इस केंद्र की पहचान बन गई है और इसे पर्यटन-पुस्तिका में भी शामिल कर लिया गया है। ऊंटों से सम्बंधित एक संग्रहालय भी चल रहा है, जहां रेगिस्तानी इको-प्रणाली में ऊंटों के विकास तथा अनुसंधान पक्षों से पर्यटकों को अवगत कराया जाता है। हर वर्ष हजारों विदेशी और भारतीय पर्यटक केंद्र का दौरा करते हैं। इस सेक्टर में मौजूद अपार संभावनों को मद्देनजर रखते हुये केंद्र के उत्पाद प्रसंस्करण उपयोग एवं प्रशिक्षण प्रखंड का उद्घाटन किया गया है। अपने दौरे के दिन, परोषत्तम रूपाला ने अनुसंधान केंद्र पर पशुपालकों और पशुपालक समुदाय से बातचीत की। इसके अलावा रूपाला ने संस्थान की सुविधाओं का भी अवलोकन किया तथा विज्ञानियों और सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों से चर्चा की। इस उत्पाद प्रसंस्करण प्रखंड की शुरूआत होने के महत्त्व पर तथा इससे कैसे पशुपालक समुदाय को फायदा होगा, इन विषयों पर भी विस्तार से चर्चा की गई।

प्रशिक्षण प्रखंड का उद्घाटन करते हुये परोषत्तम रूपाला ने कहा, “पशुपालन सेक्टर आर्थिक विकास और ग्रामीण आय वृद्धि के विविध प्रेरकों में से एक उभरता हुआ सेक्टर है, जिसके मद्देनजर यहां प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल, सार्वजनिक निवेश और नीतिगत सुधारों की जरूरत है।” उन्होंने कहा कि यह केंद्र न सिर्फ राजस्थान के पशुपालक समुदायों के लिये, बल्कि पूरे भारत के लिये फायदेमंद है। रूपाला ने कहा कि उनका मंत्रालय पशुधन सेक्टर के निरंतर विकास के लिये हितग्राहियों के साथ मिलकर काम करना चाहता है। परोषत्तम रूपाला ने राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में उपस्थित विभिन्न गणमान्यों से बात की। उन्होंने कहा, “ऐसे आयोजन एक-दूसरे के साथ बातचीत करने का अच्छा अवसर देते हैं और हर क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठित और अनोखी संस्कृति प्रकट होती है। ये कार्यक्रम विभिन्न कार्य-क्षेत्रों के लोगों को एक मंच पर साथ लाते हैं, जहां वे अपने विचार, नेटवर्क साझा करते हैं तथा एक-दूसरे से सीखते हैं।”

उद्घाटन सत्र के बाद, रूपाला ने एक अन्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का भी दौरा किया, जिसका आयोजन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने किया था। राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव, भारत का राष्ट्रीय संस्कृति उत्सव है, जिसकी अवधारणा 2015 में भारत सरकार ने तय की थी, ताकि हमारे अतुलनीय देश की परंपरा, संस्कृति, धरोहर और विविधता में एकता की भावना को दर्शाया जा सके। इस बड़े उद्देश्य के अलावा भारतीय भावना की धरोहर के संरक्षण, प्रोत्साहन और लोकप्रियता का भी इस केंद्र का लक्ष्य है, ताकि नई पीढ़ी हमारी संस्कृति से दोबारा जुड़े। साथ ही, इसका लक्ष्य विविधता में एकता की हमारी शक्ति को पूरे देश-दुनिया के सामने प्रस्तुत करना भी है।

महोत्सव में भारत की पारंपरिक, जनजातीय, शास्त्रीय और लोक कला शैलियों का भव्य प्रदर्शन किया गया। इसमें एक हजार से अधिक कलाकारों और शिल्पकारों (जिनमें स्व-सहायता समूह और अपने-अपने स्टार्ट-अप पेश करने वाले उद्यमी शामिल थे) ने हिस्सा लिया। फड़ चित्रकारी (देवनारायणजी, पाबूजी, रामदेवजी और करणी माता) की विशेष प्रदर्शनी लगाई गई थी, जो महोत्सव का प्रमुख आकर्षण थी। पद्म हंस राज हंस, मालिनी अवस्थी, मैथिली ठाकुर, गुलाबो सपेरा जैसे प्रमुख कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन भी किया।

 

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