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श्रीराम ने स्वअर्जित शासन में भी भाईयों को दिया हिस्सा

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– सारांश कनौजिया

भारत में राजशाही के अंतर्गत आदर्श राज्य व्यवस्था के अनुसार राजा का बड़ा बेटा ही अपने पिता की सत्ता को प्राप्त करने का अधिकारी होता है। यदि राजा के कई बेटे हैं, तो शेष बेटों को बड़े बेटे के आधीन ही काम करना पड़ेगा। इसी प्रकार बड़े बेटे के बड़े बेटे को ही सत्ता मिलती है, उसके चाचा के लड़के को सत्ता में कोई हिस्सेदारी नहीं मिलती। भारत में जब तक राजशाही रही, यही व्यवस्था चलती रही। किंतु हिन्दू मान्यताओं के अनुसार आज से लाखों वर्ष पूर्व श्रीराम ने अपने भाईयों को भी स्वतंत्र शासन के लिये स्वअर्जित सत्ता में से हिस्सा दिया। उन्होंने अपने दोनों बेटों को अलग-अलग शासन के लिये राज्य प्रदान किया। ठीक इसी प्रकार उनके भाईयों ने भी अपने सभी बेटों को शासन के लिये स्वतंत्र राज्य दिये।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब श्रीराम को पता चला कि लव-कुश उनके ही तेजस्वती पुत्र हैं, तो वो उन्हें पाने के लिये व्याकुल हो उठे। माता सीता भी यही चाहती थीं। किंतु श्रीराम के पुराने आदेश के अनुसार वो अयोध्या नहीं जा सकती थीं। इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों से श्रीराम को पूर्ण सहयोग करने का वचन लेकर धरती में प्रवेश करने का निर्णय लिया। लव-कुश श्रीराम के साथ अयोध्या के राजभवन में आ गये। कालचक्र के अनुसार श्रीराम का इस मृत्यु लोक से जाने का समय भी आ गया। उन्होंने अपने दोनों बेटों को अलग-अलग राज्य सौंप दिये। इससे पूर्व वे अपने जीवनकाल में अश्वमेध यज्ञ से अर्जित राज्यों में से कुछ को अपने भाईयों को दे चुके थे।

श्रीराम को जब वनवास हुआ था, तब यह आदेश मात्र उनके लिये था, इसके बाद भी पत्नी होने के कारण माता सीता ने उनके साथ जाने का निर्णय लिया। क्योंकि पत्नी को अर्धांगनी भी कहा जाता है। किंतु उनके साथ भ्राता लक्ष्मण भी चल पड़े। ऐसा माना जाता है कि वनवास के दौरान लक्ष्मण ने एक क्षण के लिये भी नींद नहीं ली, आराम नहीं किया। वो हमेशा श्रीराम की सेवा में लगे रहे। ऐसे समर्पण का संभवतः दूसरा कोई उदाहरण नहीं होाग। जब भरत अयोध्या वापस लौटे और उन्हें पूरे प्रकरण का ज्ञान हुआ, तो वो बहुत दुःखी हुए। उन्होंने पहले श्रीराम को वापस अयोध्या लौटने के लिये मनाने का प्रयास किया। इसमें असफल रहने के बाद भरत ने भी अयोध्या में रहते हुए वनवासी जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया। श्रीराम के तीसरे अनुज भ्राता शत्रुघ्न सबसे छोटे थे, इसलिए उन्होंने भरत का आदेश मानते हुए सत्ता की कई जिम्मेदारियां तो संभाल लीं, लेकिन श्रीराम के वापस आने तक उनका जीवन भी सादगी से भरा रहा। ऐसे भाईयों ने जब अपने पुत्रों को सत्ता सौंपने का निर्णय लिया होगा, तो श्रीराम से इस विषय में मार्गदर्शन न लिया हो, ऐसा नहीं हो सकता। इसलिए भाईयों के पुत्रों को भी सत्ता एक प्रकार से श्रीराम की कृपा से ही मिली।

मान्यताओं के अनुसार श्रीराम ने लव को शरावती और कुश को कुशावती राज्य सौंपा। लव को उत्तर भारत का राज्य दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि लाहौर की स्थापना लव के द्वारा ही की गई थी। कुश को दक्षिण भारत का कौशल राज्य मिला था। यद्यपि कुश ने राजधानी कुशावती को बनाया था, जो वर्तमान में बिलासपुर जिले के अंतर्गत आती है। श्री राम के अनुज लक्ष्मण ने ही आज के लखनऊ शहर की स्थापना की थी, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी है। लक्ष्मण के दो पुत्र अंगद और धर्मकेतु (चंद्रकेतु) थे। अंगद ने अंगदीयापुरी और धर्मकेतु ने कुशीनगर की स्थापना की थी। इसी प्रकार भरत के दो पुत्र थे। तक्ष और पुष्कल। तक्ष के पास तक्षशिला पुष्कल के पास पुष्करावती (पेशावर) का शासन था। श्रीराम ने शत्रुघ्न को मथुपुरी (मथुरा) का शासक बनाया था। मथुरा विजय शत्रुघ्न ने ही प्राप्त की थी, लेकिन वो ऐसा करने के लिए श्रीराम के प्रतिनिधि के रूप में वहां गए थे। शत्रुघ्न ने अपने पुत्र सुबाह को मथुरा और भद्रसेन को विदिशा का राजा बनाया था।

 लेखक मातृभूमि समाचार के संपादक हैं।

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