लखनऊ. देश को दहला देने वाला सबसे सनसनीखेज निठारी हत्याकांड अब भी आपके दिलो दिमाग में याद होगा। दिसंबर 2006 में हुए इस कांड के खुलासे ने लोगों को हिला कर रख दिया था। यह एक ऐसा कांड था, जिसके खुलते ही देश भर में हलचल मच गई थी। आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा की मांग देश के कोने-कोने से उठी। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई ने शुरू की थी। निठारी कांड की जांच 11 जनवरी 2007 को सीबीआई ने पूरा केस अपने हाथ में ले लिया। 28 फरवरी और 01 मार्च 2007 को निठारी के नरपिशाच सुरेंद्र कोली ने दिल्ली में एसीएमएम के यहां अपने इकबालिया बयान दर्ज कराए थे। आज करीब 17 साल बाद निठारी कांड एक बार फिर चर्चाओं में है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा के चर्चित निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढेर को सोमवार को बड़ी राहत दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोली को 12 और मनिंदर सिंह पंढेर को दो मामलों में बरी करते हुए फांसी की सजा रद्द कर दी है। मनिंदर सिंह पंढेर की वकील ने इस बारे में जानकारी दी है। कई दिनों तक चली बहस के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। सोमवार को हाईकोर्ट ने सुरेंद्र कोली को दोषमुक्त कर दिया। गाजियाबाद सीबीआई कोर्ट ने दोनों को 10 महीने पहले फांसी की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोठी D-5 के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर को भी कोर्ट ने बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएएच रिजवी की अदालत ने यह फैसला सुनाया।
गौरतलब है कि सीबीआई ने निठारी कांड में 16 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से सुरेंद्र कोली को 14 मामलों में फांसी की सजा मिली थी, जबकि मनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ दो मुकदमे में ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। आइए, एक बार फिर बताते हैं राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर-31 के पास स्थित उस छोटे से गांव निठारी में हुए कांड के बारे में, जहां मासूम बच्चों की चीख-पुकार और आंखों में एक खौफनाक दृश्य अभी भी उभर जाता है। करोड़पति मोनिंदर सिंह की उस खूनी कोठी नंबर डी-5 को कौन भूल सकता है। इसी कोठी में इंसान के रूप में मौजूद भेड़ियों ने एक दो नहीं बल्कि 17 बच्चों को अपना शिकार बनाकर इसी कोठी में उन्हें दफन कर दिया था। इस कोठी में रहने वाले नरपिशाच बड़े ही शातिर ढ़ग से गांव के भोले-भाले मासूम बच्चों को किसी न किसी बहाने अपने पास बुलाते थे। इसके बाद उनके साथ हैवानियत की हदें पार कर उनकी हत्या करने के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नाले में बहा देते थे।
शव के टुकड़े कर पकाया, खाया
आरोपी मासूम बच्चों को अपनी कोठी में ले जाकर उसके साथ कुकर्म और फिर उसके बाद उनकी गला दबाकर हत्या कर देते थे। इतने से भी मन नहीं भरता था तो उनके शवों के छोटे-छोटे टुकड़े कर कुछ पकाकर खाए तो कुछ हिस्से को कोठी के पीछे नाले में बहा देते थे। यह खौफनाक सिलसिला करीब डेढ़ साल से ज्यादा समय तक चला। लेकिन किसी की नजर इस कोठी पर नहीं पड़ी। हां, इतना जरूर हुआ कि कोठी के पास स्थित पानी की एक टंकी के आसपास से बच्चों को गायब होने का शक जरूर हुआ था। हालांकि गांव वालों ने तो यहां तक मान लिया कि जरूर पानी टंकी के पास कोई भूत रहता है जो बच्चों को निगल जाता है। लेकिन दिसंबर 2006 में एक लापता लड़की के बारे में जांच के दौरान जब यह पता चला कि उसकी हत्या कोली ने की है तो पुलिस ने मामले को गहराई से जांचना शुरू किया। फिर क्या था…एक के बाद मामले खुलते गए और जांच दल को बड़े पैमाने पर बच्चों की नृशंस हत्याओं के बारे में पता चला। कोली जिस मकान में घरेलू नौकर की तरह काम करता था, उसके पास के एक नाले से बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे।
एक दर्जन से अधिक मामलों में मिली है फांसी की सजा
नोएडा के चर्चित निठारी कांड में निचली अदालत से कोली को एक दर्जन से अधिक मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। यह प्रकरण वर्ष 2005-06 के बीच का है। मामले का पर्दाफाश तब शुरू हुआ, जब नौकरी की तलाश में घर से निकली एक महिला की गुमशुदगी की रिपोर्ट नोएडा के सेक्टर-20 थाने में दर्ज कराई। पुलिस की जांच में दिल दहला देने वाला मामला प्रकाश में आया था। पुलिस ने निठारी में रहने वाले मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पीछे नाले से बच्चों और महिलाओं के दर्जनों कंकाल बरामद किए गए थे। पुलिस ने मोनिंदर सिंह और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को आरोपी बनाया था। पुलिस की विवेचना के बीच ही मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। सीबीआई ने दोनों के खिलाफ अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के कुल 16 मामले दर्ज किए थे।
फांसी के अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने लगा रखी है रोक
गाजियाबाद स्थित सीबीआई कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को एक दर्जन से अधिक मामले में फांसी की सजा सुनाई है। हालांकि, फांसी की सजा के क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है। फांसी की सजा के सभी आदेशों को कोली ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। लंबित अपील पर कई बार बहस भी हो चुकी है, लेकिन विभिन्न कारणों से सुनवाई पूरी नहीं हो पाई। मुंबई से आए कोली के वकील ने सुनवाई के पहले ही दिन अभियोजन की कहानी को सच्चाई से परे करार दिया था। कोली के वकील का तर्क था कि पुलिस की यातना के चलते कोली ने जुर्म स्वीकार किया था।
साभार : अमर उजाला
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