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श्रीराम और वनवासी हनुमान

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– सारांश कनौजिया

हनुमान जी रूद्रावतार थे और श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार। लेकिन यदि हम इनके पृथ्वी के स्वरूपों की ही बात करें तो श्रीराम रघुकुल वंशज राजकुमार थे तो केसरी नंदन हनुमान जी कपिक्षेत्र के राजकुमार थे। हनुमान जी का राज्य एक वनवासी क्षेत्र था। अतः उन्हें भी वनवासी भी कहा जा सकता है। हनुमान जी ने अपने जीवन का एक बड़ा भाग श्रीराम की सेवा में व्यतीत कर दिया। उन्होंने श्रीराम को स्वामी और स्वयं को सेवक समझा। पुराने समय में दास जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती है। सेवक स्वामी की सेवा अपनी इव्छा से करते थे। किसी को बंधक बनाकर सेवा करवाना खराब माना जाता था।

ऐसी मान्यता है कि जब हनुमान जी का जन्म हुआ, तो उनके मुंह से पहला शब्द ‘श्रीराम’ ही निकला था। वे अपने बचपन में ही भगवान शंकर के साथ श्रीराम से मिलने गये थे। इसलिए उन्हें श्रीराम का साथ भले ही बहुत बाद में मिला हो, लेकिन उन दोनों का जुड़ाव हनुमान जी के जन्म से ही था। श्रीराम की सेवा को ही सब कुछ समझने वाले हनुमान जी के बारे में श्रीराम क्या मानते थे। यह भी जानने की आवश्यकता है। वनवास के समय जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था। तब उनकी सेवा में अनुज लक्ष्मण और हनुमान जी दोनों थे और श्रीराम दोनों को ही बराबर मानते थे।

अपहरण के बाद माता सीता को खोजते हुए श्रीराम इधर-उधर भटक रहे थे। इस बीच हनुमान जी को माता सीता के आभूषण मिले थे, जो रावण के द्वारा उन्हें ले जाते समय गिर गये थे। इसके बाद जब श्रीराम और हनुमान जी की पहली भेंट हुई है, तो श्रीराम साधु वेश में थे, इसलिए हनुमान जी उन्हें पहचान नहीं सके। उन्हें तो सुग्रीव की चिंता थी। हनुमान जी श्रीराम और लक्ष्मण से अपना भेष बदल कर मिले। इसके बाद भी श्रीराम ने उन्हें पहचानकर गले से लगा लिया। जब हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में आये और उनका परिचय लक्ष्मण को पता चला। तब भी लक्ष्मण को यह विश्वास नहीं हुआ की श्रीराम एक वनवासी वानर को इतना प्रेम दे रहे हैं।

ऐसा कई अवसरों पर हुआ, जब श्रीराम ने लक्ष्मण की तरह हनुमान जी को भी अपने अनुज भ्राता की तरह ही प्रेम किया। यह प्रेम एक तरफा नहीं था। हनुमान जी भी लक्ष्मण की तरह ही श्रीराम की सेवा के लिये हमेशा तैयार रहते थे। कभी-कभी तो लक्ष्मण को भी इस बात से ईर्ष्या होने लगती थी कि हनुमान जी के होते हुए वो अपने ज्येष्ठ भ्राता की सेवा नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन श्रीराम कभी हनुमान जी से नाराज नहीं हुए।

एक अन्य धार्मिक कथा भी मिलती है। रावण का वध कर श्रीराम अयोध्या वापस आ चुके थे। अब माता सीता, श्रीराम की सेवा में अपना संपूर्ण समय देना चाहती थीं। लक्ष्मण भी इस बात को समझते थे और वे अपनी पत्नी को समय दे रहे थे। अभी भी हनुमान जी अयोध्या में ही थे। वे पूर्व की तरह ही श्रीराम की सेवा में लगे हुए थे। माता सीता इससे पहले श्रीराम के लिये कुछ कर पाती, हनुमान जी उसे पूरा भी कर देते थे। इस बात से माता सीता बहुत दुःखी थीं। उन्हें श्रीराम के साथ व्यतीत करने के लिये समय ही नहीं मिलता था। इतना सब होने के बाद भी श्रीराम कभी भी हनुमान जी से नाराज नहीं हुए। धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भेष बदल कर हनुमान जी को जब यह बात अप्रत्यक्ष रूप से बताई, तब जाकर हनुमान जी ने अपने आप को इतना सीमित कर लिया कि माता सीता को श्रीराम के साथ रहने के लिये पर्याप्त समय मिलने लगा।

श्रीराम विष्णु अवतार थे। वो चाहते तो अयोध्या से सहायता लेकर भी रावण वध कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यदि श्रीराम, हनुमान जी को इतना सम्मान नहीं भी देते, तो भी वो उनकी उतनी ही सेवा करते। इसके बाद भी एक वनवासी को श्रीराम ने अपने छोटे भाई की तरह ही समझा और हनुमान जी को वही स्थान दिया, जो उन्होंने अपने भाईयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न को दिया।

लेखक मातृभूमि समाचार के संपादक हैं।

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