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मैंने सोचा नहीं था, कांग्रेस में मेरा ऐसा हाल होगा : मणिशंकर अय्यर

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नई दिल्ली. नौकरशाह से नेता बने मणिशंकर अय्यर ने अपनी किताब के जरिए आलोचकों को कड़ा जवाब दिया है। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने खुद को अंग्रेजीवादी कहे जाने वालों पर निशाना साधते हुए कहा कि मुझे ‘मैकाले की औलाद’ होने पर खुशी है, लेकिन मैं बहुत ही गौरवान्वित भारतीय हूं। अपनी आत्मकथा ‘मेमोयर्स ऑफ ए मेवरिक – द फर्स्ट फिफ्टी इयर्स (1941-1991)’ की लॉन्चिंग के बाद अय्यर ने कहा कि उन्हें यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि उन्होंने 50-60 वर्षों में काफी कुछ हासिल किया है।

कांग्रेस में पद न मिलने पर दुख जाहिर किया

अय्यर ने राजनीति में अपनी वर्तमान स्थिति का वर्णन करने के लिए एक क्रिकेट सादृश्य का भी उपयोग किया। अय्यर ने एक विशेष साक्षात्कार में पीटीआई से कहा, मैंने अच्छी पारी खेली थी लेकिन अब मुझे पवेलियन वापस भेज दिया गया है। हालांकि मैं पूरी तरह तैयार हूं और अगर मुझे बल्लेबाजी के लिए बुलाया जाता है तो मैं बल्लेबाजी करने के लिए तैयार हूं।”

किताब में अय्यर की जीवन यात्रा

जगरनॉट बुक्स द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक, वेल्हम प्रिपरेटरी स्कूल से लेकर दून स्कूल और फिर सेंट स्टीफंस कॉलेज और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कई बड़े कार्यभार संभालने वाले एक शीर्ष राजनयिक से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रमुख सहयोगी बनने तक, मणिशंकर अय्यर की जीवन यात्रा का वर्णन करती है। अय्यर 1985-1989 तक राजीव गांधी के पीएमओ का हिस्सा थे।

‘मैकाले की औलाद होने पर मुझे खुशी’

कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने आगे कहा कि मैंने स्कूल में जो कुछ भी आत्मसात किया, उसे बरकरार रखता हूं। उन्होंने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि मैं ‘मैकाले की औलाद’ होने के साथ एक भारतीय हूं, लेकिन मेरे भारत के साथ अब क्या किया जा रहा है, यह देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है। दरअसल, लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है और अय्यर को अंग्रेजीवादी के साथ मैकाले की औलाद कहा जाता रहा है।

कांग्रेस में अपनी स्थिति पर जताई नाराजगी

मणिशंकर अय्यर ने कहा कि पिछले सात वर्षों से मैं राज्यसभा से बाहर हूं और मैं पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस में बिना किसी पद के हूं। मैंने इसकी आशा नहीं की थी। मैंने सोचा था कि शुरुआत में मुझे 10 साल तक कोई पद नहीं मिलेगा और शायद उसके बाद मुझे पहचाना जाएगा, लेकिन मेरे मामले में यह विपरीत निकला।

साभार : दैनिक जागरण

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