नई दिल्ली. अफगानिस्तान और ईरान की सेनाएं रविवार को बॉर्डर पर भिड़ गईं। दोनों देशों के बीच इस्लामिक रिपब्लिक बॉर्डर पर भारी गोलीबारी हुई। ये लड़ाई ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत और अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत की सीमा पर हुई। इसमें तालिबान के एक लड़ाके और ईरानी आर्मी के 3 सैनिकों की मौत हो गई। दोनों देशों के बीच हेलमंद नदी के पानी पर अधिकार को लेकर विवाद है। ईरानी मीडिया IRNA ने तालिबान को पहले गोलीबारी शुरू करने का जिम्मेदार ठहराया। वहीं तालिबान के मुताबिक, इस जंग की शुरुआत ईरान ने की थी। तालिबान के एक कमांडर हामिद खोरासानी ने कहा- अगर तालिबानी नेताओं ने मंजूरी दी तो हम 24 घंटे के अंदर ईरान पर जीत हासिल कर लेंगे।
अफगानिस्तान और ईरान की सेनाएं रविवार को बॉर्डर पर भिड़ गईं। दोनों देशों के बीच इस्लामिक रिपब्लिक बॉर्डर पर भारी गोलीबारी हुई। ये लड़ाई ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत और अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत की सीमा पर हुई। इसमें तालिबान के एक लड़ाके और ईरानी आर्मी के 3 सैनिकों की मौत हो गई। दोनों देशों के बीच हेलमंद नदी के पानी पर अधिकार को लेकर विवाद है। ईरानी मीडिया IRNA ने तालिबान को पहले गोलीबारी शुरू करने का जिम्मेदार ठहराया। वहीं तालिबान के मुताबिक, इस जंग की शुरुआत ईरान ने की थी। तालिबान के एक कमांडर हामिद खोरासानी ने कहा- अगर तालिबानी नेताओं ने मंजूरी दी तो हम 24 घंटे के अंदर ईरान पर जीत हासिल कर लेंगे।करीब एक महीने पहले ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने भी तालिबान को हेलमंद नदी में ईरान के जल अधिकारों का उल्लंघन नहीं करने की चेतावनी दी थी।
तालिबान अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल कर रहा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान इस लड़ाई में मिसाइल, तोपों और मशीन गन्स का इस्तेमाल कर रहा है। सोशल मीडिया पर जंग से जुड़े कई वीडियो वायरल हो रहे हैं। इनमें बॉर्डर के पास सड़कों पर बख्तरबंद गाड़ियां भी नजर आ रही हैं। इनमें से ज्यादातर हथियार 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिकी सेना वहां छोड़ गई थी।
ईरान का 97% हिस्सा सूखे की चपेट में है
UN के फूड और एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, ईरान में पिछले 30 सालों से सूखे की समस्या रही है, लेकिन पिछले कुछ सालों से हालात बदतर होते जा रहे हैं। ईरान में अब करीब 97% हिस्सा कुछ हद तक सूखे का सामना कर रहा है। ईरान में हर साल 240 से 280 मिलीमीटर ही बरसात हो पाती है। ये वैश्विक औसत 990 मिलीलीटर से काफ़ी नीचे है। ईरान में दुनिया की करीब एक फीसद आबादी रहती है, लेकिन यहां दुनिया के ताजा पानी का सिर्फ 0.3% ही है। वहीं बारिश से मिलने वाला 66% पानी भी नदियों में शामिल होने से पहले ही भाप बनकर उड़ जाता है।
साभार : दैनिक भास्कर
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं