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आलाकमान से नाराज चल रहे हैं झारखंड के कई कांग्रेस विधायक

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रांची. प्रचलित कहावत है कि अकेला चना भांड नहीं फोड़ता। राज्य में हुई राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद पुरानी टीम पर दांव लगाने की कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की पहल इस कहावत को प्रमाणित करती है, जब हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था तो इसकी प्रबल संभावना थी कि नए मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की टीम में कांग्रेस की तरफ से नए चेहरे शामिल होंगे।

इस बाबत पार्टी के विधायकों की तरफ से पूर्व से ही दबाव बनाया जा रहा था। विधायकों को एकजुट रखने के लिए जब हैदराबाद ले जाने की पहल हुई तब भी उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि उनकी भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा। इससे रेस में चल रहे विधायकों में यह आशा जगी थी कि फेरबदल में उन्हें मौका मिलेगा, लेकिन शुक्रवार को जब पुरानी सरकार में शामिल रहे तीनों विधायकों को ही राजभवन में शपथ ग्रहण के लिए बुलाया गया तो चूक गए विधायकों में हड़कंप मचा।

आनन-फानन में लगभग एक दर्जन विधायक इकट्ठा हुए और विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। ऐसी एकजुटता अगर पूर्व में प्रदर्शित की गई होती तो नजारा कुछ अलग होता। दरअसल, पूर्व में मंत्रिमंडल में जगह पाने की लालसा में ज्यादातर कांग्रेस विधायक अलग-अलग लॉबिंग कर रहे थे। ऐसे में जोखिम इस बात का था कि टीम चंपई में एक-दो को जगह देने से ज्यादा परेशानी होती। तब मंत्री बनने से वंचित रहे विधायक ज्यादा बवाल करते। यही वजह है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पुरानी टीम को ही दोहराना बेहतर समझा। इसे लेकर अंतिम समय तक सस्पेंस बनाए रखा गया ताकि किसी प्रकार की अड़चन नहीं आए।

अभी भी मिल सकता है मौका

कांग्रेस नेतृत्व ने विधायकों को आश्वस्त किया है कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। वे आपस में नाम तय कर बात आगे बढ़ा सकते हैं। परेशानी यह है कि पद कम हैं और दावेदार अधिक। हालांकि, नाराज विधायकों का कहना है कि वे नाम देने की पहल करेंगे, लेकिन यह टेढ़ी खीर है।गलाकाट महत्वाकांक्षा उन्हें ऐसा करने से रोकेगी। वरीय नेताओं ने इन्हें आश्वस्त किया है कि आपस में अगर ये सहमति बनाकर आएं तो अभी भी देर नहीं हुआ है। आवश्यकता पड़ी तो बदलाव किया जाएगा। एक सीट अभी भी रिक्त है।

दबाव में कटा बैद्यनाथ राम का नाम

लातेहार के झामुमो विधायक बैद्यनाथ राम का पार्टी कोटे से मंत्री बनना तय हो गया था। राजभवन को उनका नाम भी प्रेषित कर दिया गया था, लेकिन अंतिम समय में कांग्रेस की तरफ से इस पर आपत्ति की गई। संदेश दिया गया कि 12वां मंत्री का पद पूर्व से ही रिक्त है। इस पर निर्णय लेने के लिए आपस में सहमति अनिवार्य है। कांग्रेस की आपत्ति को देखते हुए झामुमो के शीर्ष नेतृत्व ने प्रस्ताव वापस ले लिया।

साभार : दैनिक जागरण

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