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कैमरून में राष्ट्रपति पॉल बिया के दोबारा चुने जाने के विरोध प्रदर्शनों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 48 की मौत

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याउंडे. मध्य अफ्रीकी देश कैमरून में राष्ट्रपति पॉल बिया के दोबारा चुने जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है। बात इतनी बढ़ गई कि विरोध प्रदर्शनों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 48 नागरिकों की मौत हो गई है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के दो सूत्रों ने एक न्यूज एजेंसी को दी। सूत्रों के मुताबिक, अधिकतर लोगों की मौत गोलियों से हुई, जबकि कुछ की मौत लाठियों और डंडों से पिटाई के कारण हुई चोटों से हुई। हालांकि अभी तक 92 वर्षीय पॉल बिया की सरकार ने मृतकों की संख्या नहीं बताई है और इस पर कोई आधिकारिक बयान भी नहीं दिया गया है।

बता दें कि पिछले हफ्ते चुनाव आयोग ने पॉल बिया को 53.66% वोट के साथ विजेता घोषित किया, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी और पूर्व मंत्री इस्सा त्चिरोमा बकारी को 35.19% वोट मिले। हालांकि 12 अक्तूबर को हुए चुनावों के बाद त्चिरोमा ने खुद को विजेता घोषित किया था, जिसके बाद देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

अमेरिकी सीनेटर ने पॉल बिया पर लगाए आरोप

अमेरिकी सीनेटर जिम रिश ने बिया की सरकार पर धांधली भरे चुनाव कराने, राजनीतिक विरोधियों का दमन करने और अमेरिकी नागरिकों को अवैध रूप से हिरासत में लेने का आरोप लगाया है। रिश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा कि कैमरून अमेरिका का भरोसेमंद साझेदार नहीं है। यह हमारे आर्थिक और सुरक्षा हितों के लिए खतरा बनता जा रहा है। इस रिश्ते पर फिर से विचार करने का समय आ गया है।

नागरिक संगठन ने 23 लोगों को मौत का किया दावा

वहीं ‘स्टैंड अप फॉर कैमरून’ नामक एक नागरिक संगठन ने पिछले हफ्ते कहा था कि पुलिस कार्रवाई में कम से कम 23 लोग मारे गए हैं। यूएन के अनुसार, कुल मौतों में से लगभग आधी लिटोरल क्षेत्र में हुईं, जहां देश का प्रमुख बंदरगाह दौआला शहर स्थित है और यही प्रदर्शन सबसे ज्यादा हिंसक थे। दौआला में तीन सैनिकों की मौत की भी पुष्टि हुई है।इसके अलावा, उत्तर क्षेत्र (राजधानी गरोआ, जो त्चिरोमा का गृहनगर है) में दस लोगों की मौत दर्ज की गई। हालांकि अब विरोध प्रदर्शन काफी हद तक शांत हो गए हैं, लेकिन त्चिरोमा ने सोमवार से तीन दिन के राष्ट्रीय बंद का आह्वान किया है, जिसमें उन्होंने लोगों से कामकाज रोककर घरों में रहने की अपील की है।

साभार : अमर उजाला

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यह भी पढ़ें : 1857 का स्वातंत्र्य समर : कारण से परिणाम तक

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