नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी महिला की सिर्फ तस्वीर खींचना या मोबाइल फोन से उसकी सहमति के बिना विडियो बनाना दूसरे की निजी गतिविधियों में गुप्त रूप से ताकझांक करने (Voyeurism) का अपराध नहीं बनता है। अदालत ने कहा कि किसी महिला के निजी गतिविधियों में ताकझांक हो, तभी भारतीय दंड संहिता की धारा 354C (वॉयरिज्म) का अपराध बनता है।
सुप्रीम कोर्ट ने उक्त व्यवस्था देते हुए उस शख्स को आरोपमुक्त कर दिया जिस पर शिकायतकर्ता को डराने धमकाने और उसकी सहमति के बिना उसकी तस्वीरें और विडियो शूट कर उसकी निजता भंग करने और उसकी मर्यादा का अपमान करने का आरोप था। जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की अगुवाई वाली बेंच ने 2 दिसंबर को दिए आदेश में आरोपी को आरोपमुक्त कर दिया। यह मामला पश्चिम बंगाल का है।
आरोपी ने उन्हें रोककर डराया धमकाया
19 मार्च 2020 को शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ता आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। मामला आईपीसी की धारा 341, 354C और 506 के तहत दर्ज हुआ। आरोप था कि 18 मार्च 2020 को जब वह अपनी मित्र और कुछ मजदूरों के साथ संपत्ति में प्रवेश करने लगी तो आरोपी ने उन्हें रोककर डराया धमकाया। यह भी आरोप था कि आरोपी ने उनकी सहमति के बिना उनकी तस्वीरें और विडियो बनाए, जिससे उनकी निजता भंग हुई और उनकी मर्यादा आहत हुई।
कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ केस को खारिज कर दिया
जांच के बाद पुलिस ने 16 अगस्त 2020 को उक्त धाराओं में चार्जशीट दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ केस को खारिज कर दिया और उसे आरोपमुक्त कर दिया। अदालत ने पाया कि वॉयरिज्म के अपराध के आवश्यक तत्व इस मामले में पूरे नहीं होते, क्योंकि शिकायतकर्ता कोई निजी कार्य नहीं कर रही थी, जिसके दौरान उनकी गोपनीयता में दखल दी गई हो।
354C IPC का अपराध साबित नहीं होता
अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 354C IPC में वॉयरिज्म को परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ऐसी स्थिति में किसी पुरुष द्वारा किसी महिला को निजी कृत्य करते देखना या उसकी तस्वीर लेना, जहां सामान्यतः उसे देखे न जाने की अपेक्षा होती है। मामले को लेकर अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि FIR और चार्जशीट में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि शिकायतकर्ता को किसी निजी कृत्य में संलग्न होने के दौरान देखा गया या रिकॉर्ड किया गया। कोर्ट ने कहा, इसलिए धारा 354C IPC का अपराध साबित नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने याची की अपील स्वीकार कर ली और उसे आरोपमुक्त कर दिया।
मंशा के आधार पर कोर्ट देखेगा अपराध
भारत में निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और किसी की निजता का उल्लंघन मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता का कहना है कि अगर सार्वजनिक जगह पर भी किसी की तस्वीर या फिर विडियो बनाया जाता है तो ऐसा विडियो या तस्वीर लेने वाले का इंटेशन देखा जाएगा। तथ्यों और परिस्थितियों को कोर्ट देखेगा कि फोटो लेने वाले का इंटेशन क्या है। देखा जाए तो सार्वजनिक जगह पर सीसीटीवी 24 घंटे सबको कैप्चर कर रहा होता है और वह पब्लिक में होता है। भारत में सार्वजनिक जगह पर फोटो लेने या विडियो बनाने के मामले में कोई अलग से रेग्युलेशन नहीं है लेकिन यह केस टु केस निर्भर करेगा कि फोटो या विडियो बनाने वाले की मंशा क्या है और वह आपराधिक मंशा है या नहीं यह तो कोर्ट तय करेगा।
साभार : नवभारत टाइम्स
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