जयपुर. वक्फ संशोधन कानून 8 अप्रैल से देशभर में लागू हो गया है और इसके लागू होने के साथ ही देशभर में इस पर राजनीतिक और धार्मिक बहस छिड़ गई है. जहां एक ओर कुछ मुस्लिम वर्ग और धार्मिक नेता इस कानून का विरोध कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसके समर्थन में भी खुलकर सामने आए हैं. इस कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना बताया गया है.
अजमेर दरगाह दीवान के बेटे नसरुद्दीन चिश्ती ने इस कानून का समर्थन करते हुए इसे जरूरी बताया है. उनका कहना है कि वक्फ संपत्तियों पर कई वर्षों से लैंड माफिया और रसूखदार लोगों का कब्जा है, जो कौड़ियों के दाम पर वक्फ की संपत्तियां हड़पे बैठे हैं. उन्होंने कहा कि नया कानून इन कब्जों को हटाकर वक्फ संपत्तियों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करेगा. नसरुद्दीन चिश्ती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का समर्थन किया जिसमें वक्फ की पवित्रता बनाए रखने की बात कही गई थी. उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वे इस कानून को गलत न समझें, क्योंकि इससे नुकसान नहीं, बल्कि फायदा होगा.
वहीं दूसरी ओर, अजमेर दरगाह से जुड़ी खादिम संस्था अंजुमन सैयद जादगान ने इस कानून का विरोध किया है. संस्था के सचिव सरवर चिश्ती ने इसे एक सांप्रदायिक एजेंडा बताते हुए कहा कि यह कानून मुसलमानों के खिलाफ है और यह उनकी धार्मिक संपत्तियों को निशाना बनाता है. उन्होंने आरोप लगाया कि मस्जिदों और दरगाहों के नीचे मंदिर तलाशे जा रहे हैं और सरकार इस पर चुप है. उन्होंने वक्फ कानून को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसमें टेंपरेरी स्टे की मांग की है. सरवर चिश्ती ने यह भी कहा कि 1935 और 2002 में भी इसी तरह के वक्फ कानून का विरोध किया गया था और अब फिर से सभी मुस्लिम संगठनों को एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस पर अंतिम निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करेगा.
साभार : जी न्यूज
भारत : 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि) व/या भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं