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कलकत्ता हाईकोर्ट ने दल-बदल कानून के अंतर्गत मुकुल रॉय की विधायकी रद्द की

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कोलकाता. कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को दलबदल विरोधी कानून के तहत तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता मुकुल रॉय की पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी। जस्टिस देबांगसु बसाक की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी और भाजपा विधायक अंबिका रॉय की याचिकाओं पर फैसला दिया।मुकुल रॉय मई 2021 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने थे लेकिन 11 जून 2021 को रॉय और उनके बेटे सुभ्रांशु TMC में शामिल हो गए थे। उन्होंने सीएम ममता बनर्जी और उनके सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी की उपस्थिति में करीब 4 साल बाद घर वापसी की थी। इससे पहले 2017 में वे TMC छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। इसके बाद 18 जून 2021 को सुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी को मुकुल की सदस्यता खत्म करने को लेकर अर्जी दी थी। उन्होंने दल बदल कानून के तहत सदन में रॉय की सदस्यता को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी।

दल बदल कानून क्या है?

1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली। उसके बाद से राजनीति में आया राम-गया राम की कहावत मशहूर हो गई। पद और पैसे के लालच में होने वाले दल-बदल को रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार 1985 में दल-बदल कानून लेकर आई। इसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी जॉइन कर लेता है तो वो दल-बदल कानून के तहत सदन से उसकी सदस्यता जा सकती है। अगर कोई सदस्य सदन में किसी मुद्दे पर मतदान के समय अपनी पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता है, तब भी उसकी सदस्यता जा सकती है। अगर किसी दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्य किसी दूसरे दल में विलय के पक्ष में हों, तो यह दल बदल नहीं माना जाएगा। यह निर्णय लोकसभा अध्यक्ष या विधानसभा अध्यक्ष (या राज्यसभा के मामले में उपसभापति) लेते हैं। उनके निर्णय को न्यायिक समीक्षा के लिए अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

कानून की शुरुआत

  • संविधान (52वां संशोधन), 1985 के तहत इसे लागू किया गया।
  • यह दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) के रूप में जोड़ा गया।
  • बाद में 91वां संशोधन (2003) के जरिए इसमें कुछ बदलाव किए गए।

प्रमुख नियम

अगर कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी छोड़ देता है या पार्टी के खिलाफ जाकर वोट देता है, तो उसकी सदस्यता रद्द हो सकती है। अगर कोई स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है, तो उसकी सदस्यता खत्म की जा सकती है। कोई नामांकित सदस्य (जैसे राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत राज्यसभा सदस्य) अगर नामांकन के छह महीने के अंदर किसी पार्टी में शामिल होता है तो मान्य है, लेकिन उसके बाद दल बदलने पर सदस्यता रद्द हो सकती है।

91वां संशोधन (2003) की अहम बातें

केंद्र या राज्य सरकार में मंत्री पदों की संख्या कुल सदन के सदस्यों के 15% से अधिक नहीं हो सकती। दल बदल करने वाले सदस्य को मंत्री या किसी राजनीतिक पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।

साभार : दैनिक भास्कर

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