नई दिल्ली. भारतीय वायुसेना (IAF) के दो टॉप ट्रेनर जल्द ही ब्रिटेन में रॉयल एयर फोर्स (RAF) के फाइटर पायलटों को ट्रेनिंग देते नजर आएंगे. यह पहली बार होगा जब भारतीय वायुसेना के अधिकारी ब्रिटिश वायुसेना के पायलटों को प्रशिक्षित करेंगे. वह भी उसी देश में, जिसने कभी भारतीय वायुसेना की नींव रखी थी.
एक मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि दोनों भारतीय ट्रेनर ब्रिटेन के नॉर्थ वेल्स के तट से दूर एंगल्सी द्वीप पर स्थित आरएएफ वैली के नंबर-4 फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल में तैनात होंगे. यहीं पर ब्रिटेन की अगली पीढ़ी के फाइटर पायलटों को बीएई हॉक टीएमके-2 जेट पर हाईटेक ट्रेनिंग दी जाती है. दोनों भारतीय प्रशिक्षक ‘हॉक-क्वालिफाइड फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर’ होंगे, जो तीन साल तक ब्रिटेन में रहकर आरएएफ के अधिकारियों को एडवांस फाइटर जेट ट्रेनिंग देंगे.
ट्रेनर्स को सैलरी देगा भारत
रिपोर्ट के मुताबिक, एक वरिष्ठ आरएएफ अधिकारी ने बताया कि इस कार्यक्रम की शुरुआत अक्टूबर 2026 के बाद ही होगी. इसके लिए भारतीय ट्रेनर्स को पहले ब्रिटेन में एक साल तक की ‘फैमिलियराइजेशन और ट्रेनिंग’ दी जाएगी, जो उनके अनुभव के आधार पर कम भी हो सकती है. उन्होंने यह भी बताया कि प्रशिक्षकों का वेतन भारत सरकार देगी, जबकि ब्रिटेन का रक्षा मंत्रालय उनके रहने की व्यवस्था करेगा.
यह सहयोग दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को नई ऊंचाई देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. आरएएफ सूत्रों ने बताया कि ‘यह पहल भारतीय वायुसेना के साथ मजबूत संबंध स्थापित करने और व्यापक स्तर पर यूके के सैन्य और राजनीतिक लक्ष्यों को समर्थन देने की रणनीति का हिस्सा है.’
35 करोड़ पाउंड के रक्षा समझौते
इस समझौते की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह मुंबई में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की यात्रा के दौरान की थी. इसी मुलाकात में दोनों देशों के बीच 35 करोड़ पाउंड के रक्षा समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए, जिसके तहत ब्रिटेन भारत को हल्के मल्टीरोल मिसाइल सिस्टम मुहैया कराएगा. वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिट्री एयरक्राफ्ट के मुताबिक, भारत की वायुसेना अमेरिका और रूस के बाद दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर वायुसेना है. वहीं ब्रिटेन की वायुसेना आठवें स्थान पर है.
आरएएफ के अनुसार, भारतीय ‘क्वालिफाइड फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर्स’ की भागीदारी दोनों देशों के बीच न केवल तकनीकी सहयोग बढ़ाएगी, बल्कि आपसी विश्वास और सैन्य सामंजस्य को भी गहरा करेगी. इससे न केवल पायलट ट्रेनिंग की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि दोनों देशों के बीच युद्धक रणनीति, तकनीकी ज्ञान और उड़ान प्रक्रियाओं के आदान-प्रदान से वैश्विक स्तर पर रक्षा साझेदारी और मजबूत होगी.
साभार : न्यूज18