नई दिल्ली. जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से जले नोटों की कथित बरामदगी पर जांच समिति ने कहा है कि जिस स्टोर रूम से नोट मिले उस पर जस्टिस और उनके परिवार के सदस्यों का गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे जस्टिस वर्मा के कदाचार का पता चलता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य जस्टिस शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय समिति ने 10 दिनों तक मामले की पड़ताल की। 64 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा कि मजबूत सबूतों से यह भी पता चलता है कि जली हुई नकदी को 15 मार्च 2025 की सुबह स्टोर रूम से निकाला गया था।
महाभियोग चलाने की सिफारिश
समिति ने 55 गवाहों से पूछताछ की। जस्टिस वर्मा के दिल्ली वाले आवास का दौरा भी किया। रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए भारत के पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की है।
‘कम हो सकता है जनता का विश्वास’
जांच समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि न्यायिक कार्यालय का अस्तित्व आम नागरिकों के विश्वास पर आधारित है। इस संबंध में कोई भी कमी जनता के विश्वास को खत्म कर सकती है, जिसे सख्ती से देखा जाना चाहिए। जस्टिस वर्मा ने पैनल के सामने सफाई दी कि स्टोर रूम CCTV निगरानी में था और वहां सुरक्षाकर्मी तैनात थे, इसलिए वहां नकदी रखी होना नामुमकिन है। लेकिन पैनल ने यह दलील खारिज कर दी। पैनल ने जस्टिस वर्मा की गवाही की भी आलोचना की है कि वह घटना से घबरा गए थे।
साभार : नवभारत टाइम्स
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