नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है. राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को संसद में बताया कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 217(1)(b), 218 और 124(4) के तहत नोटिस मिला है. धनखड़ ने बताया कि नोटिस पर राज्यसभा के 50 से ज्यादा सदस्यों ने सिग्नेचर किए हैं. इसके साथ ही संख्या की शर्तें पूरी हो गई हैं. इतना ही नहीं, लोकसभा के 152 सांसदों ने भी इसी पर नोटिस दिया है. अब इस नोटिस के आधार पर एक कमेटी गठित की जाएगी, जो जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच करेगी.
धनखड़ ने बताया कि अगर दोनों सदनों में एक ही दिन नोटिस दिया जाता है तो उसकी प्रक्रिया अलग होती है, लेकिन इस मामले में अलग-अलग दिनों पर नोटिस आया है. इसी आधार पर उन्होंने राज्यसभा के महासचिव को निर्देश दिया है कि वे अगली कार्रवाई शुरू करें. संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217(1)(b) के तहत, किसी हाईकोर्ट जज को मिस विहैवियर या इनकैपिसिटी यानी अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है. इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना आवश्यक होता है.
जस्टिस वर्मा कौन हैं, क्या आरोप?
जस्टिस वर्मा पर आरोप मार्च 2025 में उस समय सामने आए, जब दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई. मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक इन-हाउस कमेटी बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में धन छिपाने और न्यायिक मर्यादा के उल्लंघन की बात कही. रिपोर्ट में इसे गंभीर अनियमितता बताया गया. हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें जांच प्रक्रिया को अवैध और पक्षपातपूर्ण बताया गया है। उन्होंने इन-हाउस रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है.
दुर्लभ मामला क्यों
भारत में किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया बहुत दुर्लभ रही है, लेकिन कुछ मामलों में यह स्थिति सामने आई है, जिनमें संसद तक मामला पहुंचा या प्रक्रिया शुरू की गई. जैसे जस्टिस वी. रमास्वामी का मामला लोकसभा में प्रस्ताव लाया गया, बहस भी हुई. कांग्रेस के वॉकआउट के कारण प्रस्ताव पारित नहीं हो सका. पहला असफल महाभियोग प्रस्ताव इसे कह सकते हैं. जस्टिस सौमित्र सेन पर नोटिस राज्यसभा में पारित हो गया था, लेकिन लोकसभा में वोटिंग से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिससे प्रक्रिया रुक गई. जस्टिस पी.डी. दिनाकरण के मामले में प्रक्रिया शुरू हुई थी, लेकिन उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया.
साभार : न्यूज18
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