बीजिंग. दुनिया के मानचित्र पर एक ऐसा सैन्य ढांचा उभर रहा है जो समुद्र की लहरों पर नहीं बल्कि चीन की आक्रामक रणनीति पर तैर रहा है. इसे बीजिंग “फ्लोटिंग आर्टिफिशियल आइलैंड” कहता है. यह एक ऐसा विशाल स्टील-आर्मर वाला प्लेटफॉर्म है जिसके न्यूक्लियर ब्लास्ट-रेजिस्टेंट होने का दावा किया जा रहा है. यानी यह परंपरागत युद्ध ही नहीं परमाणु हमले का झटका भी झेल सकता है. चीन ने समुद्र में 78000 टन वजन का बेहद रहस्यमय स्ट्रक्चर बनाना शुरू किया है. इसे 4 महीने तक 238 लोग रहने के लिए तैयार किया जाएगा.
समंदर का शाकाल
विशेषज्ञों के अनुसार न्यूक्लियर ब्लास्ट भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे. इसे ‘समुद्र का शाकाल’ कहा जा रहा है, जो तकनीक और ताकत का अनोखा मिश्रण है. चीन का यह कदम ऐसे समय आया है जब वह पूरे दक्षिण चीन सागर को अपना बताकर उस पर हक जमाने में जुटा हुआ है. यही वजह है कि वियतनाम से लेकर फिलिपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया तक सभी में बेचैनी बढ़ रही है. यह सिर्फ तैरता ढांचा नहीं बल्कि बीजिंग का वह तैरता दावा है जो पूरे समुद्री संतुलन को हिला सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार न्यूक्लियर ब्लास्ट भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे. इसे ‘समुद्र का शाकाल’ कहा जा रहा है, जो तकनीक और ताकत का अनोखा मिश्रण है. चीन का यह कदम ऐसे समय आया है जब वह पूरे दक्षिण चीन सागर को अपना बताकर उस पर हक जमाने में जुटा हुआ है. यही वजह है कि वियतनाम से लेकर फिलिपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया तक सभी में बेचैनी बढ़ रही है. यह सिर्फ तैरता ढांचा नहीं बल्कि बीजिंग का वह तैरता दावा है जो पूरे समुद्री संतुलन को हिला सकता है.
क्या है यह आर्टिफिशियल आइलैंड?
चीन ने अपनी सरकारी मीडिया के जरिए बताया कि यह तैरता द्वीप दूर-दूर तक समुद्री मिशन चला सकता है. इसे किसी भी समुद्री लोकेशन पर तैनात किया जा सकता है. जहां जरूरत, वहीं इसे खड़ा किया जा सकता है. इसमें कमांड सेंटर, रडार सिस्टम, एंटी-मिसाइल शील्ड और भारी ठंड–गर्मी को झेलने वाला सुपर-आर्मर लगाया गया है. सबसे चौंकाने वाला दावा यह है कि प्लेटफॉर्म परमाणु हमले की स्थिति में भी परिचालन क्षमता बनाए रख सकता है. यह दावा क्षेत्रीय देशों के लिए उतना ही डराने वाला है जितना कि रणनीतिक रूप से उकसाने वाला. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि चीन समुद्र के बीच ऐसी चीज बना रहा है जिसे न तो मिसाइलें डराती हैं, न ही युद्ध.
चीन ने अपनी सरकारी मीडिया के जरिए बताया कि यह तैरता द्वीप दूर-दूर तक समुद्री मिशन चला सकता है. इसे किसी भी समुद्री लोकेशन पर तैनात किया जा सकता है. जहां जरूरत, वहीं इसे खड़ा किया जा सकता है. इसमें कमांड सेंटर, रडार सिस्टम, एंटी-मिसाइल शील्ड और भारी ठंड–गर्मी को झेलने वाला सुपर-आर्मर लगाया गया है. सबसे चौंकाने वाला दावा यह है कि प्लेटफॉर्म परमाणु हमले की स्थिति में भी परिचालन क्षमता बनाए रख सकता है. यह दावा क्षेत्रीय देशों के लिए उतना ही डराने वाला है जितना कि रणनीतिक रूप से उकसाने वाला. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि चीन समुद्र के बीच ऐसी चीज बना रहा है जिसे न तो मिसाइलें डराती हैं, न ही युद्ध.
क्यों बना है चीन का यह न्यूक्लियर-सेफ किला?
दक्षिण चीन सागर दुनियाभर के व्यापार के लिए बेहद अहम है. दुनिया का लगभग 30% समुद्री व्यापार इसी मार्ग से होकर गुजरता है. चीन लंबे समय से “नाइन-डैश लाइन” के आधार पर इस क्षेत्र पर दावा करता रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय अदालत ने खारिज कर दिया था. लेकिन बीजिंग की रणनीति अलग है. जहां कोई दावा न माने, वहां वास्तविकता बदल दो. यानी समुद्र में आर्टिफ़िशियल आइलैंड बनाओ, वहां सैन्य ठिकाने तैनात करो और उपस्थिति इतनी मजबूत कर दो कि बाकी देश सिर्फ विरोध कर सकें, रोक न सकें.
दक्षिण चीन सागर दुनियाभर के व्यापार के लिए बेहद अहम है. दुनिया का लगभग 30% समुद्री व्यापार इसी मार्ग से होकर गुजरता है. चीन लंबे समय से “नाइन-डैश लाइन” के आधार पर इस क्षेत्र पर दावा करता रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय अदालत ने खारिज कर दिया था. लेकिन बीजिंग की रणनीति अलग है. जहां कोई दावा न माने, वहां वास्तविकता बदल दो. यानी समुद्र में आर्टिफ़िशियल आइलैंड बनाओ, वहां सैन्य ठिकाने तैनात करो और उपस्थिति इतनी मजबूत कर दो कि बाकी देश सिर्फ विरोध कर सकें, रोक न सकें.
फ्लोटिंग आइलैंड इस रणनीति का मोस्ट एडवांस्ड वर्जन है—
– इसे डूबाना मुश्किल
– मिसाइलों से नष्ट करना कठिन
– और हर मौसम में सक्रिय
– इसे डूबाना मुश्किल
– मिसाइलों से नष्ट करना कठिन
– और हर मौसम में सक्रिय
वियतनाम क्यों सबसे ज्यादा परेशान?
दक्षिण चीन सागर में चीन से सबसे पुराना विवाद वियतनाम का है. उसके समुद्री दावों पर बीजिंग पहले ही कई बार आक्रामक कार्रवाई कर चुका है. उसने वियतनामी नावों को रोका, तेल खोज मिशन बाधित किए, स्प्रैटली द्वीपों के पास निर्माण गतिविधियां बढ़ाईं. अब चीन के पास एक तैरता हुआ, आर्मर्ड, न्यूक्लियर-रेज़िस्टेंट ढांचा होगा. यानी चीन चाहे तो इसे वियतनाम के आर्थिक समुद्री क्षेत्र (EEZ) के बेहद करीब ले जाकर तैनात कर सकता है. वियतनाम इसे खुली चुनौती के रूप में देख रहा है.
दक्षिण चीन सागर में चीन से सबसे पुराना विवाद वियतनाम का है. उसके समुद्री दावों पर बीजिंग पहले ही कई बार आक्रामक कार्रवाई कर चुका है. उसने वियतनामी नावों को रोका, तेल खोज मिशन बाधित किए, स्प्रैटली द्वीपों के पास निर्माण गतिविधियां बढ़ाईं. अब चीन के पास एक तैरता हुआ, आर्मर्ड, न्यूक्लियर-रेज़िस्टेंट ढांचा होगा. यानी चीन चाहे तो इसे वियतनाम के आर्थिक समुद्री क्षेत्र (EEZ) के बेहद करीब ले जाकर तैनात कर सकता है. वियतनाम इसे खुली चुनौती के रूप में देख रहा है.
वियतनाम की विपक्ष में ‘क्वाड’ है क्या?
दिलचस्प बात यह है कि दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ने के बावजूद वियतनाम ने अभी तक किसी बड़े गठबंधन में औपचारिक रूप से शामिल होने से बचा है. वह अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया यानी क्वाड के साथ अच्छे संबंध रखता है लेकिन किसी एंटी-चाइना ब्लॉक का हिस्सा नहीं बनना चाहता, लेकिन चीन के इस नए कदम ने समीकरण बदल दिए हैं. वियतनाम अब जापान व अमेरिका के साथ डिफेंस एक्सपेंशन पर काम कर रहा है. हनोई यह संदेश देना चाहता है कि वह चीन के दबाव में नहीं झुकेगा.
दिलचस्प बात यह है कि दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ने के बावजूद वियतनाम ने अभी तक किसी बड़े गठबंधन में औपचारिक रूप से शामिल होने से बचा है. वह अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया यानी क्वाड के साथ अच्छे संबंध रखता है लेकिन किसी एंटी-चाइना ब्लॉक का हिस्सा नहीं बनना चाहता, लेकिन चीन के इस नए कदम ने समीकरण बदल दिए हैं. वियतनाम अब जापान व अमेरिका के साथ डिफेंस एक्सपेंशन पर काम कर रहा है. हनोई यह संदेश देना चाहता है कि वह चीन के दबाव में नहीं झुकेगा.
समुद्री विवादों में चीन का सबसे बड़ा कार्ड “स्थायी सैन्य उपस्थिति”
चीन समझ चुका है कि कूटनीति, वार्ता और अंतरराष्ट्रीय कानूनी आदेश उसके दावों को मजबूत नहीं कर सकते. ऐसे में वह उन जगहों पर डिफैक्टो कंट्रोल बनाने में लगा है जिन पर वह दावा करता है. आर्टिफ़िशियल आइलैंड, मिसाइल बेस, नौसैनिक रनवे और अब तैरता हुआ सैन्य प्लेटफ़ॉर्म यह सब इसी रणनीति का हिस्सा है. यहां संदेश स्पष्ट है कि हम समुद्र पर अपनी चीजें तैनात कर देंगे ताकि कोई आगे आने की हिम्मत ही नहीं कर पाए.
चीन समझ चुका है कि कूटनीति, वार्ता और अंतरराष्ट्रीय कानूनी आदेश उसके दावों को मजबूत नहीं कर सकते. ऐसे में वह उन जगहों पर डिफैक्टो कंट्रोल बनाने में लगा है जिन पर वह दावा करता है. आर्टिफ़िशियल आइलैंड, मिसाइल बेस, नौसैनिक रनवे और अब तैरता हुआ सैन्य प्लेटफ़ॉर्म यह सब इसी रणनीति का हिस्सा है. यहां संदेश स्पष्ट है कि हम समुद्र पर अपनी चीजें तैनात कर देंगे ताकि कोई आगे आने की हिम्मत ही नहीं कर पाए.
क्या बढ़ेगा दक्षिण चीन सागर में सैन्य तनाव?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन इस तरह के कई फ्लोटिंग आइलैंड तैनात करता है तो यह क्षेत्र कभी शांत नहीं रहेगा. वियतनाम इसका जवाब मिसाइल-डिटेरेंस बढ़ाकर दे सकता है. फिलिपींस अमेरिका की मदद से अपनी नौसेना बढ़ा रहा है. भारत भी वियतनाम को ब्रह्मोस देने पर विचार कर चुका है. अंतरराष्ट्रीय समुद्री नियमों के बीच यह सीधे-सीधे एक मसल पॉलिटिक्स का खेल है, जिसके केंद्र में चीन है और आसपास घिरा पूरा दक्षिण-पूर्व एशिया.
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन इस तरह के कई फ्लोटिंग आइलैंड तैनात करता है तो यह क्षेत्र कभी शांत नहीं रहेगा. वियतनाम इसका जवाब मिसाइल-डिटेरेंस बढ़ाकर दे सकता है. फिलिपींस अमेरिका की मदद से अपनी नौसेना बढ़ा रहा है. भारत भी वियतनाम को ब्रह्मोस देने पर विचार कर चुका है. अंतरराष्ट्रीय समुद्री नियमों के बीच यह सीधे-सीधे एक मसल पॉलिटिक्स का खेल है, जिसके केंद्र में चीन है और आसपास घिरा पूरा दक्षिण-पूर्व एशिया.
आगे क्या?
चीन का यह तैरता प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ सैन्य इंजीनियरिंग का कमाल नहीं बल्कि भू-रणनीति की नई चाल है. यह बीजिंग को समुद्र में स्टैटिक नहीं बल्कि मोबाइल ताकत देता है. यह ताकत ही दक्षिण चीन सागर को आने वाले महीनों में नया हॉटस्पॉट बना सकती है, जहां हर कदम, हर निर्माण और हर तैनाती क्षेत्रीय शक्तियों के बीच नया विवाद खोल सकती है.
चीन का यह तैरता प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ सैन्य इंजीनियरिंग का कमाल नहीं बल्कि भू-रणनीति की नई चाल है. यह बीजिंग को समुद्र में स्टैटिक नहीं बल्कि मोबाइल ताकत देता है. यह ताकत ही दक्षिण चीन सागर को आने वाले महीनों में नया हॉटस्पॉट बना सकती है, जहां हर कदम, हर निर्माण और हर तैनाती क्षेत्रीय शक्तियों के बीच नया विवाद खोल सकती है.
साभार : न्यूज18
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