चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय ने क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को भारतीय कानून के तहत एक संपत्ति के रूप में मान्यता दी है. हाई कोर्ट ने शनिवार को कहा कि क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को भारतीय कानून के तहत प्रॉपर्टी माना जाएगा, जिस पर मालिकाना हक हो सकता है और इसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है.
जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी एक इनटैंजिबल चीज है और लीगल टेंडर नहीं है, लेकिन इसमें प्रॉपर्टी की जरूरी खासियतें हैं. कोर्ट का ये फैसला WazirX पर एक निवेशक की याचिका पर आया है, जिसके XRP होल्डिंग्स को साइबर हमले के बाद फ्रीज कर दिया गया था. कोर्ट ने ये भी कहा कि क्रिप्टोकरेंसी वर्चुअल डिजिटल एसेट है और इस पर टैक्स लगता है.
कोर्ट ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी स्पेक्यूलेटिव वाला ट्रांजैक्शन नहीं माना जाता. ऐसा इसलिए है क्योंकि यूजर द्वारा किया गया इन्वेस्टमेंट क्रिप्टोकरेंसी में बदल जाता है. स्टोर, ट्रेड और बेचा जा सकता है. क्रिप्टोकरेंसी को एक वर्चुअल डिजिटल एसेट कहा जाता है और ये इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 2(47A) के तहत आता है.
क्या है पूरा मामला?
एप्लीकेंट ने जनवरी 2024 में WazirX एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर ₹1,98,516 का निवेश कर 3,532.30 XRP कॉइन खरीदे थे. उसे एक पोर्टफोलियो अकाउंट आवंटित किया गया था, जो उसके मोबाइल नंबर और ईमेल पते से रजिस्टर्ड था. एप्लीकेंट का कहना है कि उसकी ये एसेट्स चोरी हुए एथेरियम टोकन से पूरी तरह अलग थीं और WazirX ने इन्हें कस्टोडियन के रूप में ट्रस्ट में रखा हुआ था. इसी आधार पर उसने कंपनी को उसका पोर्टफोलियो दोबारा बांटने या री-एलोकेट करने से रोकने के लिए आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 9 के तहत अंतरिम आदेश की मांग की थी.
जनमई लैब्स और उसके निदेशकों, जिनमें निश्चल शेट्टी भी शामिल हैं, ने इस याचिका का विरोध किया. कंपनी ने कहा कि उसकी मूल कंपनी, सिंगापुर स्थित ज़ेटाई प्राइवेट लिमिटेड ने साइबर हमले के बाद पुनर्गठन की कार्यवाही शुरू कर दी है. बार एंड बेंच के मुताबिक, सिंगापुर उच्च न्यायालय ने एक व्यवस्था योजना को मंजूरी दी और सभी यूजर्स को नुकसान साझा करने का आदेश दिया.
साभार : जी न्यूज
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