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सोलर रेडिएशन के पूरी दुनिया की 6000 हवाई उड़ाने प्रभावित, भारत में यह संख्या लगभग 400

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नई दिल्ली. एयरबस (Airbus) के अलर्ट के बाद सुरक्षा कारणों से भारत में करीब 400 विमान प्रभावित हैं. इसके पीछे सोलर रेडिएशन (Solar Radiation) बड़ी वजह बताई जा रही है. दुनियाभर में 6,000 विमानों पर इसका असर हुआ है. सोलर रेडिएशन के चलते फ्लाइट कंट्रोल डेटा प्रभावित होने की आशंका के बाद DGCA ने प्रभावित विमानों के EAC यानी एलेवेटर ऐलेरॉन कंप्यूटर को बदने का आदेश जारी किया है. बताया जा रहा है कि अपडेशन जारी है और 30 नवंबर की सुबह तक सिस्‍टम दुरुस्‍त कर लिया जाएगा. सोलर रेडिएशन होता क्‍या है, ये कितना खतरनाक है, ये विमानों के पायलट्स को कैसे प्रभावित करता है और फ्लाइट्स पर इसका कैसा असर पड़ता है… इन तमाम बातों को हम यहां समझने की कोशिश करेंगे.

क्‍या होता है सोलर रेडिएशन? 

सोलर रेडिएशन को दरअसल सूर्य द्वारा उत्‍सर्जित होने वाले कणों जैसे इलेक्‍ट्रॉन, प्रोटॉन वगैरह और सूर्य की अल्‍ट्रावायलेट किरणों का एक मिश्रण कहा जा सकता है. ये विद्युत चुंबकीय तरंगें होती हैं, जो विमानों(फ्लाइट्स) के इलेक्‍ट्रॉनिक सिस्‍टम के लिए खतरा बन सकती है. जब सोलर रेडिएशन यानी सौर विकिरण तेज होता है, जैसे कि सौर तूफानों के दौरान या सोलर फ्लेयर्स के दौरान तो फ्लाइट बहुत ऊंचाई में रहने के दौरान इस रेडिएशन की चपेट में आ जाते हैं. काफी ऊंचाई पर वायुमंडल की अलग संरचना होती है, जिसके चलते रेडिएशन और विमान के बीच कोई बाधा या अवरोध नहीं होता है और ये रेडिएशन, सीधे विमानों के उपकरणों तक पहुंच सकता है. एयरबस ने ऐसे ही खतरे को लेकर 28 नवंबर, शुक्रवार को अलर्ट जारी किया.

पायलट और फ्लाइट पर कैसा असर 

इस बार का मामला मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक डेटा करप्‍शन यानी डेटा करप्‍ट होने या नष्‍ट होने (Data Corruption) से जुड़ा है. हालांकि इसके स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी जोखिम भी होते हैं. बार-बार ज्‍यादा ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले पायलट, क्रू मेंबर्स ज्‍यादा सोलर और कॉस्मिक रेडिएशन का सामना करते हैं. इसका असर यात्रियों पर भी पड़ सकता है. लंबे समय तक इस तरह के एक्सपोजर से कैंसर, मोतियाबिंद और अन्य रेडिएशन-जनित रोगों का खतरा बढ़ सकता है. हालांकि इसके लिए जरूरी सावधानियां बरती जाती हैं.

0 और 1 का फेर समझ लीजिए 

समस्या उस समय सामने आई, जब एयरबस ने बताया कि सोलर विकिरण से फ्लाइट कंट्रोल से जुड़े कंप्यूटर मेमोरी में ‘बिट फ्लिप’ (bit-flip) हो सकता है. इस ऐसे समझिए कि फ्लाइट के कंप्यूटर की मेमोरी में डेटा बायनरी फॉर्मेट में स्‍टोर होता है. यानी जो भी डेटा इनपुट होता है, उसे कंप्‍यूटर 0 और 1 के रूप में एक्‍सेस और प्रोसेस करता है. सरल शब्‍दों में कंप्‍यूटर और सॉफ्टवेयर को 0 और 1 की भाषा ही समझ आती है.

यही डेटा पायलट या ऑटोपायलट कमांड को फ्लाइट कंट्रोल लेयर्स (जैसे एलिवेटर, ऐलेरॉन) तक पहुंचाता है. सोलर रेडिएशन के चलते बिट फ्लिप होने का मतलब है कि ये डेटा 0 से 1 या 1 से 0 में अचानक बदल सकती है. अगर ऐसा हो जाए, तो फ्लाइट का कंट्रोल सिस्‍टम गलत कमांड दे सकता है.

पिछले हादसे से सबक 

बाइनरी गड़बड़ी यानी 0 या 1 की गड़बड़ी पर गलत कमांड जाना खतरनाक होता है. जैसे कि बिना पायलट के आदेश दिए ‘पिच डाउन’ या ‘नोज डाउन’ (nose-down) हो जाना, या फिर कंट्रोल लेयर्स जैसे एलिवेटर का अचानक मूव करना. ऐसा पहले हो भी चुका है. इसी साल 30 अक्‍टूबर को एक जेटब्‍लू एयरवेज का विमान अचानक पिच-डाउन हो गया था, जिसने विमान को कुछ हजार फीट नीचे जाने पर मजबूर किया. इस घटना में 15 यात्री घायल हुए थे. बाद में जांच में सोलर रेडिएशन-संबंधी डेटा करप्‍शन को इस घटना का मुख्य कारण माना गया.

यानी स्‍पष्‍ट है कि सोलर रेडिएशन के चलते अगर इलेक्ट्रॉनिक डेटा करप्‍ट हो जाए और कंट्रोलिंग यूनिट को गलत कमांड चला जाए तो विमान पर नियंत्रण खोने, दुर्घटना या विमान में क्षति जैसे खतरे हो सकते हैं. संरचनात्मक क्षति जैसे गंभीर खतरे पैदा कर सकता है. ये बड़ी विमान दुर्घटना का भी कारण बन सकता है.

एयरबस ने पाया कि दुनियाभर में करीब 6,000 A320 सीरीज के विमान हैं, जिनमें A319, A320, A321 शामिल हैं. इनमें वही संवेदनशील ELAC (Elevator-Aileron Computer) कॉन्फिगरेशन है, जो सोलर विकिरण से प्रभावित हो सकती है.

क्या यात्रियों की जान पर भी खतरा?

ताजा मामले में एहतियातन कदम उठा लिए गए. इस घटना में न तो कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ और न ही कोई क्षति. हालांकि इस तरह की गलती भविष्य में किसी गंभीर दुर्घटना का कारण बन सकती है. इसलिए विमानन कंपनियों और नियामकों ने तुरंत कदम उठाया है.

अब विमानन सुरक्षा केवल ईंजन या ऑपरेशन तक सीमित नहीं है, बल्कि अंतरिक्ष मौसम (space weather) तक उड़ान सुरक्षा में शामिल हो गया है. इसलिए, विमान निर्माता, एयरलाइंस और नियामक एजेंसियों (जैसे EASA और भारत में DGCA) इस तरह के खतरों को ध्यान में रखते हुए नियम, डिजाइन और उड़ान प्रोटोकॉल में समय-समय पर बदलाव करते रहे हैं.

साभार : एनडीटीवी

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