नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला को परिभाषित करने वाले अपने 20 नवंबर 2025 के आदेश को फिलहाल स्थगित (In Abeyance) कर दिया है। अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए केंद्र सरकार और चार राज्यों (दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात) को नोटिस जारी किया है।
क्या है मुख्य विवाद?
विवाद की जड़ अरावली की नई परिभाषा है। 20 नवंबर को कोर्ट ने सरकार की सिफारिश मानते हुए कहा था कि केवल उन पहाड़ियों को अरावली माना जाएगा जिनकी ऊंचाई जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक है।
-
विरोध का कारण: पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का दावा है कि इस परिभाषा से अरावली का लगभग 90% हिस्सा संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा, जिससे वहां अंधाधुंध खनन और अतिक्रमण का रास्ता साफ हो जाएगा।
-
संरचनात्मक विरोधाभास: कोर्ट ने चिंता जताई कि दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के दायरे की शर्त रखने से कई महत्वपूर्ण छोटे हिस्से असुरक्षित हो सकते हैं।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
आज की सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने कई अहम सवाल उठाए:
-
पारिस्थितिक अखंडता: क्या परिभाषा को सीमित करने से अरावली की ‘इकोलॉजिकल कंटिन्यूटी’ (पारिस्थितिक निरंतरता) खतरे में नहीं पड़ जाएगी?
-
स्वतंत्र जांच की जरूरत: कोर्ट ने कहा कि किसी भी आदेश को लागू करने से पहले एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच अनिवार्य है। पिछली कमेटी में ज्यादातर सरकारी अधिकारी थे, जबकि अब इसमें विषय विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा।
-
खनन पर स्पष्टता: अदालत ने केंद्र से पूछा कि क्या इस नई परिभाषा से गैर-अरावली क्षेत्रों का दायरा जानबूझकर बढ़ाया गया है ताकि वहां खनन की अनुमति दी जा सके।
अरावली की पुरानी (पारंपरिक) परिभाषा
अरावली को लेकर लंबे समय तक कोई एक कानूनी परिभाषा नहीं थी, लेकिन 1992 की अरावली अधिसूचना (Aravalli Notification) और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों (जैसे MC मेहता केस) के आधार पर इसे समझा जाता था:
-
पारंपरिक दृष्टिकोण: अरावली को केवल ऊंची चोटियों के रूप में नहीं, बल्कि एक पूरी ‘पर्वत श्रृंखला’ (Mountain Range) के रूप में देखा जाता था। इसमें पहाड़ियां, उनके निचले हिस्से (Foothills), और विस्तार वाले क्षेत्र शामिल थे।
-
भूवैज्ञानिक आधार: जो भी संरचना भूवैज्ञानिक रूप से अरावली का हिस्सा थी, उसे संरक्षित माना जाता था, चाहे उसकी ऊंचाई कितनी भी हो।
-
विवाद का कारण: इसी स्पष्ट परिभाषा की कमी का लाभ उठाकर कई क्षेत्रों में निर्माण और खनन शुरू हो गया, जिसे बाद में अदालतों ने अवैध घोषित किया।
हरियाणा सरकार का पक्ष: ‘आर्थिक विकास और शहरीकरण’
हरियाणा सरकार (विशेषकर गुरुग्राम और फरीदाबाद के संदर्भ में) अक्सर अरावली के दायरे को सीमित करने की वकालत करती रही है:
-
PLPA (पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम): हरियाणा सरकार ने अपने कानूनों में संशोधन की कोशिश की ताकि अरावली के एक बड़े हिस्से को ‘वन क्षेत्र’ की श्रेणी से बाहर निकाला जा सके।
-
तर्क: सरकार का कहना है कि शहरीकरण और विकास के लिए जमीन की जरूरत है। यदि हर छोटी पहाड़ी या टीले को अरावली मानकर संरक्षित किया गया, तो गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों का विस्तार रुक जाएगा।
-
खनन राजस्व: हरियाणा के कुछ हिस्सों में पत्थर खनन राजस्व का एक बड़ा स्रोत है, इसलिए सरकार ‘खनन योग्य’ और ‘संरक्षित’ क्षेत्रों के बीच स्पष्ट विभाजन चाहती है।
राजस्थान सरकार का पक्ष: ‘खनन और रोजगार’
राजस्थान में अरावली का सबसे बड़ा हिस्सा आता है, और यहाँ का रुख मुख्य रूप से खनन पर केंद्रित है:
-
वैध खनन का बचाव: राजस्थान सरकार का तर्क रहा है कि अरावली की स्पष्ट परिभाषा न होने के कारण वैध खनन पट्टों (Mining Leases) पर भी संकट आ जाता है, जिससे हजारों लोगों का रोजगार प्रभावित होता है।
-
राजस्व की हानि: सरकार ने कोर्ट में दलील दी है कि अत्यधिक कड़े नियमों के कारण राज्य को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
-
अरावली का ‘गायब’ होना: हालांकि, कैग (CAG) की रिपोर्ट और खुद सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली की कई पहाड़ियों के पूरी तरह गायब हो जाने पर गंभीर चिंता जताई थी।
विवाद का मुख्य बिंदु (100 मीटर की शर्त)
हालिया विवाद तब बढ़ा जब केंद्र और राज्यों के सुझाव पर एक कमेटी ने कहा कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली नहीं माना जाना चाहिए।
-
राज्यों की सहमति: हरियाणा और राजस्थान इस परिभाषा से खुश थे क्योंकि इससे उन्हें खनन और रियल एस्टेट के लिए काफी जमीन मिल जाती।
-
सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति: कोर्ट ने अब माना है कि ऊंचाई के आधार पर परिभाषा तय करना वैज्ञानिक रूप से गलत हो सकता है क्योंकि अरावली एक पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) है, न कि केवल पत्थरों का ढेर।
अब आगे क्या होगा?
-
नई हाई-लेवल कमेटी: सुप्रीम कोर्ट अब डोमेन विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति बनाएगा जो अरावली की परिभाषा और इसके संरक्षण पर नई रिपोर्ट देगी।
-
यथास्थिति (Status Quo): अगली सुनवाई तक 20 नवंबर का फैसला लागू नहीं होगा और पुरानी स्थिति बनी रहेगी।
-
अगली सुनवाई: इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को तय की गई है।
‘गांधी जी की राजनीतिक यात्रा के कुछ पन्ने’ पुस्तक के बारे में जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें :
https://matribhumisamachar.com/2025/12/10/86283/
आप इस ई-बुक को पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर भी क्लिक कर सकते हैं:
https://www.amazon.in/dp/B0FTMKHGV6
Matribhumisamachar


