रायपुर. छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के दूरस्थ वनांचलों में ‘चमत्कारी इलाज’ और ‘प्रार्थना से चंगाई’ के बहाने मतांतरण का खेल तेजी से फल-फूल रहा है। भोले-भले आदिवासियों को गंभीर बीमारियों से मुक्ति दिलाने का दावा कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है, जिससे स्थानीय ग्रामीणों और पारंपरिक रीतियों को मानने वाले समाज में भारी आक्रोश व्याप्त है।
बीमारी की आड़ में धर्म का प्रचार
बस्तर के अंदरूनी इलाकों जैसे नारायणपुर, कोंडागांव और सुकमा के गांवों में सक्रिय कुछ मिशनरी और प्रचारक ऐसे परिवारों को निशाना बना रहे हैं, जो लंबे समय से बीमार हैं या आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें अस्पताल जाने के बजाय ‘विशेष प्रार्थना’ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाता है और दावा किया जाता है कि इससे कैंसर, लकवा और मानसिक रोगों जैसी बीमारियां ठीक हो जाएंगी।
परंपरा बनाम परिवर्तन: बढ़ता सामाजिक तनाव
इस प्रक्रिया के कारण बस्तर के गांवों में सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है। मतांतरित होने वाले लोग अपनी पारंपरिक देवी-देवताओं की पूजा छोड़ रहे हैं, जिससे ‘पेन गुड़ी’ (देव स्थल) और पारंपरिक त्योहारों को लेकर विवाद बढ़ गया है। कई गांवों में तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि ग्रामीणों ने बाहरी प्रचारकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है।
प्रशासन और पुलिस की चुनौती
हाल के महीनों में बस्तर के विभिन्न जिलों में मतांतरण को लेकर हिंसक झड़पें भी देखने को मिली हैं। स्थानीय हिंदू संगठनों और आदिवासी समाज के प्रमुखों का कहना है कि यह “आस्था का विषय नहीं, बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र” है। वहीं, पुलिस प्रशासन का कहना है कि वे हर शिकायत की जांच कर रहे हैं, लेकिन ‘स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन’ और ‘प्रलोभन’ के बीच के फर्क को साबित करना एक बड़ी कानूनी चुनौती बनी हुई है।
“आदिवासियों की सादगी का फायदा उठाकर उन्हें भ्रमित किया जा रहा है। चमत्कारी इलाज के नाम पर धर्म बदलवाना न केवल अवैध है, बल्कि यह हमारी प्राचीन संस्कृति पर हमला है।” — बस्तर के एक स्थानीय समाज प्रमुख
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