क्वेटा. पाकिस्तान इस समय महाशक्तियों के बीच अखाड़ा बनता जा रहा है। अमेरिका और चीन पाकिस्तान में पूरी जोर आजमाइश कर रहे हैं। चीन पाकिस्तान को लेकर एक नया क्षेत्रीय समूह बनाने की कोशिश कर रहा है। बीती 19 जून को चीन ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक की थी, जो इसी दिशा में पहला कदम था। इसमें श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान को भी जोड़ने की कोशिश हो रही है। वहीं, जून में ही एक आश्चर्यजनक कदम के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की वॉइट हाउस में मेजबानी की थी। इन सबके बीच सवाल उठता है कि ऐसा अभी क्यों हो रहा है?
खनिज शीत युद्ध की शुरुआत
इसके पीछे पाकिस्तान का वो खजाना है, जो उसके अशांत बलूचिस्तान में छिपा हुआ है। बलूचिस्तान में 6 से 8 ट्रिलियन डॉलर की कीमत की खनिज संपदा होने का अनुमान है। इसमें रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण डिस्प्रोसियम, टर्बियम और यिट्रियम जैसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements) शामिल हैं। ये दुर्लभ मृदा तत्व एडवांस इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा प्रणालियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिसके चलते इन पर कब्जे की जंग खनिज शीत युद्ध का रूप ले रही है। भारत की भौगोलिक स्थिति इसे REE प्रतिस्पर्धा के केंद्र में रखती है।
अमेरिका और चीन की खजाने पर नजर
अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान के सबसे बड़े और सबसे पिछड़े प्रांत बलूचिस्तान में 17 ज्ञात खनिज स्रोतों में से 12 मौजूद हैं। अमेरिका और चीन दोनों की नजर इस खजाने पर है। लेकिन इस क्षेत्र में आजादी के लिए चल रहा संघर्ष बड़ी बाधा है। अमेरिकी कंपनियां और राजनयिक पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में सावधानी से कदम उठा रहे हैं। इसके उलट चीन अधिक मुखर होकर सामने आया है। चीन ने इस इलाके में भारी निवेश किया है, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) प्रमुख है। चीन अपने उपक्रमों को निजी सुरक्षा और स्थानीय सैन्य समर्थन से सुरक्षित रखने की कोशिश करता है, लेकिन 62 अरब डॉलर का चीनी प्रोजेक्ट बलूच विद्रोहियों के निशाने पर है। बलूच विद्रोही इसे एक नव-औपनिवेशिक परियोजना मानते हैं, जिसका उद्येश्य संसाधनों का दोहन करते हुए स्वदेशी अधिकारों का दमन करना है।
खतरा भी कम नहीं
अमेरिका और चीन के बीच दुर्लभ मृदा खनिजों पर नियंत्रण की रेस ने पाकिस्तान को महत्वपूर्ण बना दिया है। वर्तमान में REE की ग्लोबल मार्केट पर चीन हावी है, जबकि पश्चिमी देश वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहे हैं। पाकिस्तान इस नए भू-राजनीतिक समीकरण में बलूचिस्तान के संसाधनों का लाभ उठाने की कोशिश में है। लेकिन यहां पर सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं। खासकर बलूच अलगाववादी समूहों से जो स्थानीय संसाधनों के विदेशी दोहन के विरोध में हैं। क्षेत्र में जारी हिंसा के बीच यहां पर खनन जोखिम भरा है।
साभार : नवभारत टाइम्स
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