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वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट का पर्यावरण मंत्रियों का सत्र संपन्न

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अंतरराष्ट्रीय डेस्क (मा.स.स.). दो दिवसीय ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ के हिस्से के रूप में पर्यावरण मंत्रियों का सत्र कल वर्चुअल रूप से आयोजित किया गया। इस शिखर सम्मेलन का विषय “पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली के साथ विकास को संतुलित करना” था। इस सत्र में ग्लोबल साउथ के चौदह देशों के मंत्रियों ने भाग लिया।

केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, भारत सरकार, भूपेंद्र यादव ने उद्घाटन भाषण दिया। अपने संबोधन में यादव ने कहा कि ऐसी नीतियों को विकसित करने की जरूरत है जो समावेशी एवं टिकाऊ हों, ताकि असमानता को कम किया जा सके और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके तथा उनके सशक्तिकरण में योगदान दिया जा सके। उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं से निपटने में ग्लोबल साउथ की आवाज को समर्थन देने एवं उसे उठाने में भारत की भूमिका का उल्लेख किया।

यादव ने विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने में विकसित दुनिया की भूमिका पर प्रकाश डाला। जलवायु परिवर्तन के कारण छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (एसआईडीएस) के सामने आने वाली समस्याओं और इस संबंध में भारत द्वारा की गई गठबंधन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई), इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर रेजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (आईआरआईएस), इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आईएसए) आदि जैसी पहल का भी जिक्र किया गया। संस्थागत तंत्र के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के भारत के अनुभवों पर भी प्रकाश डाला गया। ग्लोबल साउथ के मंत्रियों को जी20 की अध्यक्षता और ब्लू इकोनॉमी, सर्कुलर इकोनॉमी तथा भूमि की बहाली से जुड़े विषयों के बारे में जानकारी दी गई।

केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने जोर देकर कहा कि दुनिया भर में बड़े पैमाने पर पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियां (लाइफ से जुड़ी गतिविधियां) हमारी साझा और एकमात्र धरती को बचाने में महत्वपूर्ण सकारात्मक योगदान दे सकती हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या से निपटने में मिशन लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट) के महत्व पर प्रकाश डाला।

ग्लोबल साउथ के मंत्रियों ने छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (एसआईडीएस) के समक्ष आने वाली विभिन्न समस्याओं को उठाया। उनके द्वारा उठाए गए कुछ साझा मुद्दों में खाद्य सुरक्षा, समुद्र स्तर में वृद्धि, तटीय क्षरण, कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक मंदी आदि शामिल थे। विकासशील तटीय देशों ने भी जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभावों के बारे में चर्चा की। कई विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित की जा रही अनुकूलन नीतियों की भूमिका पर प्रकाश डाला। विकासशील दक्षिणी देशों द्वारा उल्लिखित कुछ साझा प्रयासों में हरित ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, परिपत्र अर्थव्यवस्था, सतत विकास, जैव विविधता संरक्षण का उपयोग शामिल था। कई देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों और पहल पर प्रकाश डाला।

सभी देशों ने भारत को जी20 की अध्यक्षता के लिए बधाई दी और ब्लू इकोनॉमी, सर्कुलर इकोनॉमी तथा भूमि क्षरण से संबंधित विषयों पर सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की। मंत्रियों ने इस बात का उल्लेख किया कि जलवायु परिवर्तन की समस्या विकसित या विकासशील सभी देशों के लिए साझा है, लेकिन विकासशील देशों के लिए समाधान आसान नहीं है क्योंकि उनके पास तकनीकी और वित्तीय सहायता का अभाव है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में दक्षिण-दक्षिण सहयोग की भूमिका को रेखांकित किया।

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