मुंबई. अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी 11 जुलाई को सुनवाई टाल दी है। कोर्ट ने कहा है कि SEBI (सेबी) का एफिडेविट (हलफनामा) देखने के लिए हमें समय चाहिए। इससे पहले सेबी ने 10 जुलाई को कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान 41 पन्नों का एफिडेविटदाखिल किया था। इसमें कोर्ट को एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिशों की जानकारी दी गई थी। साथ ही कोर्ट से रिपोर्ट पर उचित आदेश देने का आग्रह भी किया था।
इससे पहले 15 मई को कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई थी। तब सेबी ने अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में अपनी जांच पूरी करने के लिए 6 महीने का अतिरिक्त समय मांगा था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना था कि SEBI 2016 से ही अडाणी ग्रुप की जांच कर रहा है, ऐसे में सेबी को और समय देना सही नहीं है। वहीं, सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट में बताया कि वो 2016 से अडाणी ग्रुप की कंपनियों की कोई जांच नहीं कर रही है और ऐसे सभी दावे तथ्यात्मक रूप से निराधार (फैक्चुअली बेसलेस) हैं। हालांकि सरकार ने 2021 में लोकसभा में कहा था कि सरकार अडाणी ग्रुप की जांच कर रही है।
समझें क्या है पूरा मामला?
सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए कहा कि वो अडाणी ग्रुप के खिलाफ 2016 से कोई जांच नहीं कर रही है। ऐसे में उसे जांच के लिए और समय चाहिए। इसके बाद कांग्रेस के महासचिव और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने ट्वीट किया। इस ट्वीट में उन्होंने कहा कि वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने 19 जुलाई 2021 को लोकसभा में कहा था कि सेबी अडाणी ग्रुप के खिलाफ जांच कर रही है। लेकिन अब सेबी कह रही है कि वो अडाणी ग्रुप के खिलाफ कोई जांच नहीं कर रही। उन्होंने सवाल किया कि क्या ज्यादा खराब बात है, संसद को गुमराह करना या फिर उस वक्त सोए रहना जब लाखों निवेशकों के साथ ठगी की गई? क्या ऊपर से कोई रोक रहा था? ’जयराम रमेश ने वित्त राज्यमंत्री द्वारा संसद में दिए गए लिखित जवाब को भी अपने ट्वीट में अटैच किया है, जो वित्त राज्यमंत्री ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के सवाल के जवाब में दिया था।
सरकार अपने जवाब पर अब भी कायम: वित्त मंत्रालय
वित्त मंत्रालय ने ट्वीट कर इस मामले में कहा है कि केंद्र सरकार ने 19 जुलाई 2021 को लोकसभा में जो जवाब दिया था, वो उस पर अभी भी कायम है। मंत्रालय ने कहा कि ये जवाब सभी संबंधित विभागों से मिले इनपुट के बाद दिया गया था। वित्त मंत्रालय ने कांग्रेस के महासचिव और कम्यूनिकेशन विभाग के प्रमुख जयराम रमेश के ट्वीट के जवाब में ये बातें कही हैं।
सेबी जांच के लिए मांग रहा अतिरिक्त समय
सेबी की तरफ से दाखिल जवाब में कहा गया कि ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट्स (GDRs) जारी करने के मामले में जांच पूरी करने के बाद कानूनी प्रोसेस के तहत एक्शन लिया जा चुका है। अडाणी ग्रुप की कोई भी लिस्टेड कंपनी 2016 की इस जांच का हिस्सा नहीं है, जिसमें 51 भारतीय कंपनियां शामिल हैं। उसे जांच पूरी करने के लिए अतिरिक्त समय चाहिए।
जांच का समयपूर्व निष्कर्ष न्याय के हित में नहीं होगा
सेबी ने कोर्ट से यह भी कहा कि उसकी जांच का कोई भी गलत या समय से पहले निष्कर्ष न्याय के हित में नहीं होगा और कानूनी रूप से अस्थिर होगा। रेगुलेटर ने बताया कि मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग के मामले में 11 विदेशी नियामकों से पहले ही संपर्क किया जा चुका है। ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या अडाणी ग्रुप ने अपने पब्लिकली अवेलेबल शेयरों के संबंध में किसी भी मानदंड का उल्लंघन किया है या नहीं।
विदेशी रेगुलेटर्स से जानकारी के लिए कई आवेदन भेजे गए हैं
सेबी ने बताया कि इन सभी विदेशी रेगुलेटर्स से जानकारी देने के लिए कई आवेदन भेजे गए हैं और सबसे पहला आवेदन 6 अक्टूबर 2020 को भेजा गया था। इसके साथ ही अडाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच कर रही स्वतंत्र कमेटी को जांच की इस प्रोग्रेस के बारे में जानकारी भी दे दी गई है।
ट्रांजैक्शंस की जांच के लिए कई सोर्सेज से जानकारी जमा करनी होगी
हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए 12 ट्रांजैक्शंस के आरोप पर मार्केट रेगुलेटर ने कहा कि जिन ट्रांजैक्शंस की बात की गई है, वो काफी जटिल हैं और उनके साथ कई सब-ट्रांजैक्शंस जुड़े हुए हैं। इन ट्रांजैक्शंस की जांच के लिए घरेलू और इंटरनेशनल बैंकों समेत अलग-अलग सोर्सेज से जानकारी जमा करनी होगी। अलग-अलग सोर्स से जुटाई गई जानकारी का एनालिसिस करने के बाद ही अंतिम निर्णय पर पहुंचा जा सकता है। अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में 4 जनहित याचिकाएं दायर हुई थीं। एडवोकेट एम एल शर्मा, विशाल तिवारी, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सोशल वर्कर मुकेश कुमार ने ये याचिकाएं दायर की थीं। मामले में पहली सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने 10 फरवरी को की थी।
सेबी को तीन महीने का समय दे सकता है कोर्ट
चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम 6 महीने का समय नहीं दे सकते हैं। काम में थोड़ी तेजी लाने की जरूरत है। हम अगस्त के मध्य में मामले को लिस्ट कर सकते हैं। आप 3 महीने में अपनी जांच पूरी करें और हमारे पास वापस आएं। इसके बाद बेंच ने कहा था कि वह 15 मई को टाइम एक्सटेंशन के लिए सेबी के आवेदन पर अपना आदेश सुनाएगी।
कोर्ट ने 2 मार्च को बनाई थी 6 सदस्यीय कमेटी
सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई है, उसके हेड रिटायर्ड जज एएम सप्रे हैं। उनके साथ इस कमेटी में जस्टिस जेपी देवधर, ओपी भट, एमवी कामथ, नंदन नीलेकणि और सोमशेखर सुंदरेसन शामिल हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच ने कमेटी बनाने का यह आदेश 2 मार्च को दिया था।
कमेटी के अलावा सेबी इन 2 पहलुओं पर जांच कर रही है…
- क्या सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन रूल्स के नियम 19 (A) का उल्लंघन हुआ?
- क्या मौजूदा कानूनों का उल्लंघन कर स्टॉक की कीमतों में कोई हेरफेर हुआ?
मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग से जुड़ा है नियम 19 (A)
कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन रूल्स का नियम 19 (A) शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों की मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग से जुड़ा है। भारतीय कानून में किसी भी लिस्टेड कंपनी में कम से कम 25% शेयरहोल्डिंग पब्लिक यानी नॉन इनसाइडर्स की होनी चाहिए।
अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी विदेश में शेल कंपनियों को मैनेज करते हैं। इनके जरिए भारत में अडाणी ग्रुप की लिस्टेड और प्राइवेट कंपनियों में अरबों डॉलर ट्रांसफर किए गए। इसने अडाणी ग्रुप को कानूनों से बचने में मदद की।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे ये निर्देश
- सेबी के चेयरपर्सन को एक्सपर्ट कमेटी को सभी जरूरी जानकारी देनी होगी
- केंद्र सरकार से जुड़े एजेंसियों को कमेटी के साथ सहयोग करना होगा
- कमेटी अपने काम के लिए बाहरी विशेषज्ञों से परामर्श ले सकती है
- कमेटी मेंबर्स का पेमेंट चेयरपर्सन तय करेंगे और केंद्र सरकार वहन करेगी
- केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक सीनियर ऑफिसर को नॉमिनेट करेंगी
- ये कमेटी को लॉजिस्टिकल असिस्टेंस देने के लिए नोडल ऑफिसर के रूप में काम करेंगे
- कमेटी के सभी खर्चों को केंद्र सरकार ही वहन करेगी
याचिकाओं में FIR दर्ज करने और जांच की मांग की गई थी
- मनोहर लाल शर्मा ने याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नाथन एंडरसन और भारत में उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने और FIR की मांग की थी। इसके साथ ही इस मामले पर मीडिया कवरेज पर रोक की भी मांग की गई थी।
- विशाल तिवारी ने SC के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली एक कमेटी बनाकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग की थी। तिवारी ने अपनी याचिका में लोगों के उन हालातों के बारे में बताया था जब शेयर प्राइस नीचे गिर जाते हैं।
- जया ठाकुर ने इस मामले में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की भूमिका पर संदेह जताया था। उन्होंने LIC और SBI की अडाणी एंटरप्राइजेज में भारी मात्रा में सार्वजनिक धन के निवेश की भूमिका की जांच की मांग की थी।
- मुकेश कुमार ने अपनी याचिका में SEBI, ED, आयकर विभाग, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस से जांच के निर्देश देने की मांग की थी। मुकेश कुमार ने अपने वकीलों रूपेश सिंह भदौरिया और महेश प्रवीर सहाय के जरिए ये याचिका दाखिल कराई थी।
SC ने केस के मीडिया कवरेज पर रोक से इनकार किया था
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि वह मीडिया को रिपोर्टिंग से नहीं रोक सकता। वहीं कोर्ट ने कहा था कि वह इस मामले की जांच के लिए कमेटी के गठन को लेकर अपना फैसला सुरक्षित कर चुका है और जल्द ही इसे सुनाया जाएगा।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से निवेशकों को नुकसान
याचिकाओं में दावा किया गया था कि हिंडनबर्ग ने शेयरों को शॉर्ट सेल किया जिससे ‘निवेशकों को भारी नुकसान’ हुआ। इसमें ये भी कहा गया है कि रिपोर्ट ने देश की छवि को धूमिल किया है। यह अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। इसके साथ ही रिपोर्ट पर मीडिया प्रचार ने बाजारों को प्रभावित किया है।
हिंडनबर्ग ने लगाए थे शेयर मैनिपुलेशन जैसे आरोप
24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी ग्रुप को लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। रिपोर्ट में ग्रुप पर मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर शेयर मैनिपुलेशन जैसे आरोप लगाए गए थे। रिपोर्ट के बाद ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली थी। हालांकि, बाद में इसमें रिकवरी आई।
साभार : दैनिक भास्कर
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं