नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने चुनाव बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। चुनावी साल में सरकार को यह बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने कहा कि है कि जनता को सूचना का अधिकार है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया साल 2023 के अप्रैल महीने से लेकर अब तक की सारी जानकारियां चुनाव आयोग को दे और आयोग ये जानकारी कोर्ट को दे।
दोनों फैसले सर्वसम्मत
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवी चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में सुनवाई कर रहे सभी जजों ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया है। केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं – एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं।
फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। इस फैसले पर जजों की राय है।
चुनावी बॉन्ड को रद्द करना होगा: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने आगे कहा, चुनावी बॉन्ड योजना, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा।
सीजेआई ने क्या कुछ कहा?
- सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है।
- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं।
- सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।
- सीजेआई ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को तीन हफ्ते में सारी जानकारी देनी होगी।
- कोर्ट ने कहा- काले धन को रोकने के लिए दूसरे रास्ते भी हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बैंक तत्काल चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें।
…तो इसलिए मैंने याचिका दायर की: जया ठाकुर
चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने कहा, “अदालत ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को कितना पैसा और कौन लोग देते हैं इसका खुलासा होना चाहिए। 2018 में जब यह चुनावी बॉन्ड योजना प्रस्तावित की गई थी तो इस योजना में कहा गया था कि आप बैंक से बॉन्ड खरीद सकते हैं और पैसा पार्टी को दे सकते हैं जो आप देना चाहते हैं लेकिन आपका नाम उजागर नहीं किया जाएगा, जो कि सूचना के अधिकार के खिलाफ है।
इन जानकारियों का खुलासा किया जाना चाहिए। इसलिए मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें मैंने कहा कि यह पारदर्शी होना चाहिए और उन्हें नाम बताना चाहिए और राशि, जिसने पार्टी को राशि दान की।”
कोर्ट ने असीमित योगदान को भी खत्म कर दिया: प्रशांत भूषण
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वकील प्रशांत भूषण ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है और इसे लागू करने के लिए किए गए सभी प्रावधानों को रद्द कर दिया है। उन्होंने कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जा रहे असीमित योगदान को भी खत्म कर दिया है।”
मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, चुनावी बॉन्ड से जुड़ी राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है।
सरकार ने कोर्य में क्या दी दलील?
केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा कि धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। सरकार ने आगे तर्क दिया कि दानदाताओं की पहचान गोपनीय रखना जरूरी है, ताकि उन्हें राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना न करना पड़े।
साभार : दैनिक जागरण
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